Sunday, August 4, 2019

तिरुवनदाति

हे भगवान!
வணக்கம் .நம்மாழ்வார் அருளிய பெரிய திருவந்தாதியினை (2585-2681) அண்மையில் நிறைவு செய்தார் .. நம்மாழ்வார் அருளிய பெரிய திருவந்தாதியினை (2585-2681) அண்மையில் நிறைவு செய்தவர் முனைவர் பி .ஜம் புலிங்கம் .
அவரின் தமிழ் விளக்கத்தை ஹிந்தியில் மொழிபெயர்த்துள்ளேன் .
जो हिंदी जानते हैं वे अपनी रायें प्रकट करें।
तिरुवान्दाति नम्माल्वार नामक वैष्णव संत कृत भक्ति ग्रथ हैं।
भगवान के सम्बोधन में :-
आपके सद्गुणों से प्रभावित हम।
आपका यशोगान गा रहे हैं।
एक ही कमल चरण में
सारी पृथ्वी नाप डाली।
आपके सुंदर रूप के दर्शन अपूर्व ।
आपके समीप आने का मार्ग भी न जाना।
आपपर हमारीश्रद्धा प्रेम कैसे जागे।
आप खुद पहचानकर अनुग्रह कीजिए।
मन को सम्बोधित :-
हे मन !भगवान दुग्ध सागर में लेटते हुए बढ़ते जा रहे हैं।
वह सागर की लहरें शोर मचाती हुई भगवान के तन -चरण को छू रही हैं। वह तो अपने लाल चक्षुओं को बंद कर लेटा हुआ है.
उस सद्गुणी ईश्वर के सद्गुणों की चर्चा या बोलने से हमारे दुःख दूर हो जाते हैं। इसलिए उनकी श्रेष्ठता की कोई कमी नहीं होती।
इसको तुम प्रत्यक्ष पहचान लो।
संसार लोग जो चाहे करें ,व्यापित इस दुनियाँ को सुधारने हम कौन ?मेरे कष्टों को दूर कर रक्षा करनेवाले तो नित्य सूर्य के नेता श्री कृष्ण ही है। उन्हीं के कारण मेरे दुःसाध्य दुखों को दूर कर लिया।
हे मन ! मन में और कुछ न सोचो। हमेशा तुलसी माला पहने भगवान का स्मरण कर। उसे छोड़कर अन्य विषयों पर ध्यान न देना। और असंभव उनके शिव और कोई नहीं। उनको न पकड़ो तो नाश हो जा। पुरातन विस्तृत इस संसार नरक में शिव भगवान के हमारी सुरक्षा के लिए और कोई नहीं है। जहां में कहीं भी खोजो
और कोई नहीं है।
भगवान की कृपा मुझपर अत्यधिक है। मेरे सदा चाहक हैं। वे तटस्थ हैं ,ये चोदे ये बड़े ये सद गुणी ,ये बद गुणी आदि नहीं देखते। रात -दिन के अंतर न देखकर सदा मेरी रक्ष के लिए अपनाया है।
अनुवादक एस। अनंतकृष्णन। तमिलनाडु हिंदी प्रचारक /स्नातकोत्तर अध्यापक (अवकाश प्राप्त )

1 comment:

  1. அன்புடையீர், வணக்கம். நாலாயிரத் திவ்யப் பிரபந்தம் : தொகுதி 3
    (உரையாசிரியர்: முனைவர் இரா.வ.கமலக்கண்ணன், வர்த்தமானன் பதிப்பகம், 21, இராமகிருஷ்ணா தெரு, தியாகராய நகர், சென்னை 600 017, முதற்பதிப்பு 2011) நூலிலிருந்து நான் தினமும் வாசிப்பதில் சிலவற்றை என் வலைப்பூவில் எழுதியிருந்தேன். அதன் மொழிபெயர்ப்பினை தங்கள் வலைப்பூவில் இந்தியில் எழுதியமையறிந்து மகிழ்ச்சி.

    ReplyDelete