Friday, August 9, 2019

माँ

नमस्कार।
प्रणाम।
सुप्रभात।
  माँ-बाप  दोनों  को नमस्कार।
 पुत्र  -पुत्री  का जन्म  देना
 माँ  का काम।
ज्ञानी बनाना पिता  का काम।
माँ  ममतामयी,
कितनी बडी निस्वार्थ  सेवा।
जहाँ  भी रहो वहाँ  सुखी रहो।
स्वास्थ पर ध्यान  रखना।
समय पर बुला बुलाकर
खाना खिलाती।पुत्र पुत्रियों की
शादी के बाद  भी
उसको आराम नहीं।
बाप का खर्च  कम।
मेहनत अधिक।
पर हमारी  हर माँग माँ  से।
पिता कमाने के कोल्हू बैल।
अधिकांश  खाना बाहर।
माँ   सही नहीं  तो
 नरक तुल्य जीवन।
माँ  की सेवा अतुलनीय।
माँ  नहीं  तो जीवन  मेरा
हिंदी  क्षेत्र  नहीं।
माँ  ने मुफ्त  का
हिंदी प्रचार किया।
निष्काम सेवा  का फल
हमें  बल दिया।
माँ  पढी लिखी हो तो
दोनों  हाथों  में  लड्डू।
ऐसी माँ  को वृद्धावस्था में
वृद्धाश्रम  में  छोडना,
आजकल की नौकरी  का प्रभाव।
देखिए  सोचिए देश रक्षक वीर  जवानों   का महान त्याग,
जिनके कारण हम निर्भय
शांति  से बैठकर
कविता  के
शब्द  ढूँढ रहे हैं।
सैनिक  शत्रुओं द्वारा
जमीन पर गाढे बमे
ढूँढ  रहे हैं।
खाई में  खडे होकर
शत्रु के प्रवेश रोक रहा है।
आज वीरों को प्रसवित
पूजनीय  माँ को करेंगे प्रणाम।
 स्वरचित स्वचिंतक
यस।अनंत कृष्णन।

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