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Sunday, June 29, 2025

प्रकृति का प्रकोप।

 प्रकृति का प्रकोप।

एस. अनंत कृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु 

30-6-25.

प्रकृति पंच तत्वों  से बनी है,

 एक तत्व न तो जीना दुश्वार।

प्राकृतिक संतुलन बनाए रखना 

मानव मानव का कर्तव्य।

हवा है उससे 

 फैलते हैं

 संक्रामक रोग।

 पानी से फैलती बीमारियाँ।

भूमि भी  अपनी 

संतुलन खो बैठती।

आकाश भी 

कलंकित हो जाता।

गरमी बढ़ती ,

 पंच तत्वों को

 साफ़ साफ़ रखना 

न तो

प्राकृतिक प्रकोप

 बढ़ जाता।

जंगलों को काटने से

 भूमि स्खलन,

 वायु की स्थिति बदलना,

 भूकंप, 

 कारखानों के धुएँ से

वायु प्रदूषण,

 कारखानों के रसायनिक अवशेषों से  भूतल के पानी प्रदूषण 

 आवागमन  साधनों से

 ध्वनी प्रदूषण,

धुएँ से वायु प्रदूषण।

प्रकृति प्रकोप से

अतिवृष्टि अनावृष्टि।

भूकंप, सुनामी,

 समुद्र प्रकोप,दावानल,

ज्वालामुखी पहाड़ जलन।


 इन प्राकृतिक

 प्रकोपों से बढ़कर 

अति भयंकर 

विचारों का प्रदूषण।।

अश्लील नाच गाना 

 गोद संगणिक खेल।

इन सब से न बचें तो

प्राकृतिक प्रकोप।

 बचने जंगलों को 

नगर विकास के नाम से

 नष्ट न करवाना।

झीलों को नदारद करना।

भारतीय ऋषि मुनि 

वन महोत्सव मनाते थे,

हवन यज्ञ करते थे।

अब जंगल नगर

 बन रहा है।

अब वृक्ष लगाना है,

पानी में नदियों में 

 विषैले वायु को 

साफ़ करना

रसायनिक खादों के बदले

 प्राकृतिक खादों का प्रयोग करना,

रसायनिक विषैले पानी अवशेषों को साफ करना,

नदियों में मिश्रित होने से रोकना।

 कूड़ों को कूड़ेदानों में डालना,

 खुद बचना और संसार को बचाना

ज्ञान चक्षु प्राप्त मानव का

 कर्तव्य है जान।।

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