मानसरोवर साहित्य अकादमी को
एस. अनंत कृष्णन का नमस्कार।
विधा --संस्मरण
विषय ≠वो बाग बगीचे।
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अब 75वर्ष का बूढ़ा हूँ। 15 साल के नाबालिग से पच्चीस साल की जवानी में, प्रौढ़ावस्था में से वो बाग बगीचे की हरियाली में पहला करता हूँ। कितना मानसिक अंतर, कितना शारीरिक और सांसारिक वैचारिक, दार्शनिक अंतर। नाबालिग में निश्चिंत घूमना, जवानी में प्राकृतिक उत्तेजना विपरीत लिंग के आकर्षण, असफल प्यार, चिंतित मन, तितली की तरह मानसिक परिवर्तन, रंग-बिरंगे फूलों के आकर्षण, अंत में बड़ों के आग्रह से अनजान अपरिचित लड़की से शादी, जाने अनजाने पारिवारिक रीति-रिवाज, एक ओर मायके दूसरी ओर ससुराल दोनों तरफ़ से पीटा जाता।
अब भी बाग भी टहला करता हूंँ, न जवानी और नाबालिग का प्राकृतिक विश्रांति। मानसिक बोझ,
दुविधा साँप छछूँदर की गति सा घूम रहा हूँ।
निस्सार नीरस टहलना। अभी अभी मन
आध्यात्मिक चिंतन की ओर मुड़ने लगा।
जब मानसिक उलझनें बढ़ती जाती हैं,
तभी अमानुष्य शक्ति या ईश्वरीय शक्ति
आत्मज्ञान देकर जगत् मिथ्या, शरीर मिथ्या,
लौकिक वासनाओं से दूर अखंड बोध देकर
मन नाश हो जाता है, मन आत्मा में लीन होकर
अद्वैत भावना उत्पन्न होती है।
अब 75साल की उम्र में टहला करता हूँ।
न नाबालिग विचार, न जवानी का लौकिक प्रेमोल्लास केवल परमानंद, ब्रह्मानंद आत्मसुख, आत्मानंद। हर मानव के जीवन का परिवर्तन रूप दुख सुख का नाश वही आत्मबोध ।
वह परमानंद ब्रह्मानंद वर्णनातीत शब्द रहित
वही दुखों से मुक्ति और ईश्वरीय मिलन।
तब पुनर्जन्म का स्थान नहीं।
एस. अनंत कृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना
शिव दास, भारतीय भाषा प्रेमी।
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