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Sunday, October 14, 2018

आज मेरे मन में उठे विचार

विविध विचार ,
विविध सोच
भिन्न रंग ,भिन्न देश
विभिन्न मौसम
सभी में विविधता तो
एकता कहाँ ?
न भाषा में एकता
न बोली में एकता
न जीवन शैली में एकता,
न खान पान में एकता
न  पहनावे में एकता।
न मिट्टी में एकता।
जो माता पूजनीय हैं तो
गो माँस  खाने चाहते लोग।
फिर भी एकता हैं ,तो
आध्यात्मिक चिंतन।
ईश्वर से  दिए गए ज्ञान।
भाव -मनोविकार।
करुणा ,श्रद्धा-भक्ति ,प्रेम
भय ,क्रोध ,हास्य ,भक्ति ,वात्सल्य।
थोड़े में कहें तो इंसानियत।
दान-धर्म के चाहक।
स्वार्थ -लोभी से अलग
जिओ और जीने दो.
वही मनुष्य है
जो दूसरों के लिए
जिए -मरे.
आधुनिक यातायात के साधन।
प्राकृतिक प्रकोप।



आश्रम देगा -ॐ शांति।

कहते हैं आसानी से।
दो  पुस्तकाकार  तेरी रचनाओं  को.
कहते हैं नाम मिलेगा।
कोई नहीं कहता  दाम मिलेगा।
किसीने कहा ,हम प्रकाशित करेंगे
पत्रिका प्रकाशित करने के लिए दान दो।
उनका प्रयत्न स्तुत्य है,पर
हिंदी की किताबें कितनों तक पहुँचेगी।
कोई  राजा -महाराजा नहीं ,
हिंदी प्रेमियों की रचनाओं को
पुस्तकाकार देने  तैयार।
इसलिए नेहरू जैसे बड़े नेताओं ने
मातृभाषा छोड़ अंग्रेज़ी को अपनाया।
प्रधान बने तो अंग्रेज़ी को प्रधानता दी।
न मातृभाषा के माध्यम को प्रोत्साहित करने नौकरी।
ये अमीरों के पढ़ाने ,धनी ही पढ़ने
विदेशी भेजने स्नातक स्नातकोत्तर की तैयारी।
पैसे हैं तो पढ़ो ,उड़ो।
नहीं तो यही छोटी  मोटी नौकरी।
राजनैतिक बनो ,न चाहिए पढ़ाई -लिखाई।
न तो बनो आश्रम के साधू संत।
जिओ ,जीने दो।
आश्रम देगा -ॐ शांति।

भगवान है एक ज्योति स्वरूप.

नाम है भिन्न
सोना एक, मिट्टी एक!
रूप अनेक.
मूल एक.
सोचा नहीं किसीने
जब जहाज डूबा,
न अल्ला ने बचाया.
न ईसा ने बचाया.
न शिव -विष्णु ने बचाया.
सब के सब लाखों की ढेरी.
न अंतिम क्रियाएं मज़हबी.
गाढा गए एक साथ.
न भेद देखता सुनामी.
न भेद देखता भूकंप.
न भेद देखता ज्वालामुखी.
न भेद देखता जंगली नदी बाढ.
स्वार्थ  ही ईश्वर का रूप रंग देकर
मूल मज़हब को टुकडा करके
तिलक में भी  भेद बनाकर
एक को अनेक बनाकर
इनसानियत को गाढ़ता गढ़वाकर
बेचैनी कर देता संसार को.
भगवान है एक ही.
गांधी को एक मंदिर
सोनिया खान गांधी कोएक मंदिर
यम. जी. आर को एक मंदिर.
मायावती को पराशक्ति का रूप.
यह तो मानव लीला.
कृष्ण भगवान है तो
षडयंत्र की हत्या क्यों?
ईसा को शूली क्यों?
मुहम्मद  को पत्थर का मार क्यों?
सत्यवान  को  श्मशान में नौकरी क्यों?
शैतानियत की शक्ति बडी तो
ईश्वर कैसे सर्वशक्तिमान ?
सूक्ष्म ईश्वर एक.
न रूप न रंग
वह है ज्योति  स्वरूप.
बाकी आकार मानव सृष्टित.
ईश्वर तो निराकार.
पाप को न देता
षडयंत्र का वध.
पत्नी को अपहरण के लिए
छोड आदर्श  न दिखाया जान.
ईश्वर एक ज्योति  स्वरूप. 
 बाकी सब  मानव सृष्टित
ईश्वर खुद अवतार  लेकर
अधर्म से जीता युद्ध. तो
ये अवतारी  अधर्मी  ईश्वर कैसे?
अवतारी पुरुष को कष्ट झेलने है तो
धर्म की स्थापना  कैसी?
 ज्योति स्वरूप भगवान
सब को जिलाता,
सब को जलाता.
सब से बराबर व्यवहार  करता.
न अर्जुन के लिए
एकलव्य को निकम्मा  करता.
ये सब मानव निर्मित कहानियाँ.
खलनायक खलनायिका  होती.
बाघ हिरन का शिकार  करता.
बडी मछली छोटी को निगलती.
जिसकी लाठी उसकी भैंस की नीति चलती.
सिद्ध  भक्त इन  अवतारों  को न मानता.
ऐसे ही गाती कबीर -सा
चारी भुजा के भजन में भूले पडे सब संत
कबीला पूजा तासु को
जिनका भुजा अनंत.
जानो-पहचानो. समझो-जागो
समझाओ- जगाओ
भगवान एक ज्योति स्वरूप.
सूर शशि समान ,
रोशनी पहुँचाना में भेद नहीं.








अनंत काल

अनंत काल  आनंद से  जीने
अनंत पाप जोड़ने ,
पाप से जुड़ने तैयार।
काल  तो तत्काल आएगा  तो
शनैः शनैः दस साल में
बचपन ,जवानी ,प्रौढ़ावस्था, बुढ़ापा ,
जिंदगी खतम।
अस्थायी दुनिया ,अस्थायी जीवन ,पर
तहखाने में अनंत धन।
 सांसदों ,विधायकों ,मंत्रियों !
आप  मंदिर में करते हैं
विशेष  मुख्य अतिथि दर्शन।
फिर भी आप बूढ़े ,असाध्य रोगी ,
मानसिक असंतोष ,
बेचैनी जीवन ,चुनाव में वोट के भिखारी।
मान -अपमान -शाप  सहकर जीने तैयार।
आजादी के बाद ,आजादी के पहले ,
विदेशियों के आने के पहले देश की तरक्की एक
शासक ने सोचा ,काम किया ,
दुसरे ने देश द्रोही बना.
ऐसी ही आज भी कश्मीर विदेशी षड्यंत्र का  शिकार।
तमिलनाडु ें विदेशी धन प्रगति योजना की बाधा।
 अलगवादी की आवाज़ इधर -उधर।
राष्ट्रीय झंडे का  जलन.
पुलिस अधिकारी चोर डाकू के साथ।
बदमाश नायिका के आकर्षण से नायक।
क़ानून की रक्षा वही करता ,ऐसी पैट-कथा.
भारत की आजादी सोउ तक रहना दुष्कर।
किसीने भविष्वाणी  दी.
सुनो ,समझो युवकों ! आजादी और अनंत आनंद से
जीना है तो अपने ही जान-पहचान के प्रतिनिधि चुनो।
कोई अभिनेता-अभिनेत्री  जिसकी बुद्धि
निदेशक के संकेत पर ,
वोट धनियों  के धन देखकर मत दो।
धन लेकर मत दो;
भ्रष्टाचारियों के चढ़ावा पूजा-पाठ देकर मत दो.
इंसान की इंसानियत देकर दो.

Saturday, October 13, 2018

व्यवहारिक सीख.

आज के विचार.
जिंदगी  जीकर
 मरने के लिए.
काल कब आएगा ,
पता नहीं.
असत्य बोलकर
कर्तव्य पथ से
 फिसलकर
नाम जोड,
 धन जोड
ठगकर -ठगाकर
पद पाकर
धन पाकर 
पैसे ही प्रधान मान
असत्याचरण अत्याचार  द्रोही के धन,
 मन, पद, उन्हें  कभी
 शान्ति संतोष, आनंद प्रद रहता नहीं।

अकेले में अपने की अशांति पर

अपने पर ही अपमानित
दुखित रहेगा ही।
यह अनुभव महसूस  करके
न सुधरेगा तो  आत्मदुखी हो
तडपकर मरेगा भले ही
धन हो, पद हो, प्रशंसकों की भीड़ हो.
देखो इंदिरा खान परिवार,
जया की मृत्यु,
करुणा की अतुल संपत्ति,
 लाल, माया  का करतूत.
न चैन, न सम्मान फिर भी चलते
सर तानकर ,
मन में हैं नरक वेदना.
 यही हालत सामान्य को भी.
नरक तो हर कोई
मरने के पहले  भूलोक में
 भोगकर ही मरता.
दशरथ, राम, कृष्ण,रावण,
हिरण्य कश्यप,
 सब की कहानी  की सीख है  यही..
(स्वयं चिंतक -स्वरचित -यस। अनंतकृष्णन। )

Friday, October 12, 2018

जितेंद्र

यथार्थ जानने  से ही
सच्चे आदर्श पर पहुँच सकते हैं।
क्या यह भी संभव है ?
गाडी आयी ; टकराई ; मर गया ;
  हमें बहुत सोचना पड़ेगा।
गलती चालक  की है  या  पादचारी की है ?
चालक ने पीकर चलाई  कार।
परिणाम यह दुर्घटना।
पादचारी पियक्कड़ है ,इसलिए यह दुर्घटना।
कार में ब्रेक नहीं  इसलिए ;
असावधानी से तेज़ चलायी ,
असावधानी से पार कराया।
अब कितनी सीख मिली ,
एक दुर्घटना कितनी बातें सिखाती।
कार  चलाते पीना नहीं ,
पीकर कार चलाना नहीं ;
पीकर सड़क पर  चलना नहीं ;
सावधान से पैदल चलिए।
इतने आदर्श  का मूल है
दुर्घटना।
*******
 बलात्कार
बलात्कार हो गया ;
लड़की की हत्या।
वह अकेले रात को क्यों घर से बाहर आयी ?
वह अर्द्धनग्न पोशाक पहनकर क्यों आयी ?
उसने बलात्कार करने से क्यों न रोका?
एक  धर्माचार्य का कहना ,
लड़की को अनुनय विनय करना है
मुझे बहन समझो।
कुछ लोग अपने दोस्तों से
बोलते हैं  मेरे दादा-नाना सम लिंगी।
सोते समय जांघ से रगड़कर शुक्ल गिराते।
मेरी चाची ने मुझसे बलात्कार किया ;
कितनी बातें ,शर्म की बातें
जिन्हें अभिव्यक्ति करने संकोच कर
लज्जावश प्रकट नहीं करते
अब अभिव्यक्ति कर रहे हैं।
अध्यापक -अध्यापिकाकी प्रेम लीला पाठशाला में ;
अध्यापिका  और छात्र की कामलीला   ;
अब समाज में सहज ;
कारण  तो दूर संचार साधन।
निर्लज्जता।
शिक्षा में अनुष्ठान ,संयम की शिक्षा की कमी.
हमारे सिद्ध ब्रह्मचर्य पर ज़ोर  देते।
अंग्रेज़ी  और  उनके पूर्व शासक
पतिव्रता ,पंचेन्द्रिय नियंत्रण नहीं जानते;
कामांधकार को भूख कहते;
पर भारतीय परंपरा आध्यात्मिक चिंतन।
संयम पर    ,ब्रह्मचर्य पर जोर देकर
कामावेश को स्वास्थ्य बिगड़ने का भय दिखाते ;
आज कल संयम ,आत्म नियंत्रण कोई नहीं बोलते।
यही युवकों की दुर्बलता ,तलाक और आत्महत्या के मूल।


जग देखा ,कोई जगाता नहीं।

ॐ हरिनारायण हरिनारायण  ॐ

आज मेरे मन में उठे विचार।
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स्वचिंतक - स्वरचयिता --यस। अनंतकृष्णन
++++++++++++++++++++++++++
जग देखा ,कोई जागता नहीं ;
जग देखा ,कोई जगाता नहीं।
जगाने के प्रयत्न  में लगे लोग ,
जग की दृष्टि  में हैं पागल।

राम राज्य  की स्थापना ,
राग अलापते लोग।
राम राज्य में थे राक्षस।
राम राज्य में थे स्त्री मोही ;
राम राज्य में थे कामांधकारिणी।
राम राज्य में थे ऐसे धोबी ,
सीता का हँसी  उड़ाया;
राम के गुण  पर कलंक लगाया।
अग्निप्रवेश सीता पर आरोप।
जग को आदर्श दिखाने
भेज दिया वन वास ;
अश्वमेध यज्ञ  अपने अधिकार जमाने
अड़ोस -पड़ोस के राजाओं को
डराने -धमकाने।
अपने ही पुत्रों के साथ लड़ाई।
_---------------
राम राज्य में भी गुह ,शबरी जैसे
निम्न जाति  के लोग;
उनको गले लगाने ,
जूठा खाने  में दिखाई  अपनी महानता।
नतीजा रामायण काल के
मनुष्य -मनुष्य के
भेद मिटा नहीं ,
और बढ रहा है आज भी।

आरक्षण की  माँग  जाट कर रहे हैं ,
कई लोग अपने को निम्न जातियों की सूची में
जुड़ने ,जुड़ाने तैयार।गौरवान्वित ;

छात्र वृत्ति ,उद्योग ,पद ,स्कूल ,कालेज की भर्ती
अपने को हरिजन प्रमाण पत्र ,
एन केन प्रकारने  लेने तैयार।
और कोई हरिजन कहने पर
कारावास बिना पूछ-ताछ के।
खुद अपने को अनुसूचित कहकर
प्रमाणित करने में मानते सम्मान।
**********
जग देखा ,कोई जागता नहीं ,
जग देखा, कोई जगाता नहीं ;
********************
शासक का धन ज़माना,
अंतःपुर में दासियाँ ज़माना
कायरों को लूटकर धन जोड़ना
इसीको आदी  काल से कहते हैं वीरता;

राजा के सुख देख खुश रहना
राजा को देव तुल्य मानना ,
गुलाम -बेगार रहना ,
आज कल लोकतंत्र के नाम से भी चल रहा है ,
कोई जागता नहीं ,कोई जगाता नहीं।
-------
मजदूर  तो कई,
 समाज कल्याण के लिए ;
पर धनी वही मज़दूर
राम के युग से  आज तक;
आत्म-ह्त्या की सेना;
कहीं जीने की सेना नहीं।
हत्या करने की कूली  सेना;
उनको तो राजनैतिक समर्थन।
कितने निर्दयी लक्ष्मी के
गुलाम बन
धन जोड़ रहे हैं ;
कोई जागता नहीं ,कोई जगाता नहीं ;
**********
भ्रष्टाचारियों का आदर -सम्मान।
सद्यः फल के लिए धन का गुलाम।
धन दो ,दान दो , धन जोड़ो ,
मनमाना करो.
कितने भ्रष्टाचारियों के नाम प्रकट।
पूछ-ताछ के आयोग दिखावा।
इन आयोगों के खर्च ,
भ्रष्टाचारियों के लूटने से ज़्यादा।
पर परिणाम आज तक न मिला दंड.
लोग तो  भुलक्कड़। फिर वही कुर्सी पर।
नशीली चीजों की आमदनी से चलती सरकार।
कोई जागता नहीं ,कोई जगाता नहीं।

सच बोलने का साहस नहीं,क्यों?
उसके लिए एक कहानी की रचना की ;
सत्य हरिश्चंद्र ; उसीके आदर्श में  पले
मोहनदास ने इंदिरा फरोज़  खान को
इंदिरा गाँधी बनाकर पति के नाम जुड़ने के
भारतीय परम्पराको तोड़  डाला।
सोचो ,राजा का श्मशान की पहरेदारी करना
क्या किसी में सत्य बोलने का साहस।
नबी को पत्थर मारा,ईसा को शूली पर चढ़ाया।
क्या किसी में क्रांति का साहस।
****
भगवान का नाम लो ,प्रायश्चित के नाम लूटो।
पापि यों को बचने दो ,यदि वह आमिर हो तो.
गरीब हो तो प्रायश्चित्त करने पैसे नहीं ,दंड भोगो।

कोई समझता नहीं ,कोई समझाता नहीं ,
कोई जगता नहीं ,कोई जगाता नहीं।
********
फिर भी इन सब को जगाने कहीं न कहीं ,
कोई जिसे लोग पागल ,नालायक ,
बेचारा भला आदमी कह कर हँसी  उड़ा  रहे हैं
वही एक ऐसी छोटी -सी चिनगारी  छोड़ रहा हैं ,
वह भी चिंगारी शनैः  शनैः हर एक के
जीवन में जलकर कफन के रूप धारण कर रही हैं।
कोई समझता नहीं ,समझाता नहीं ,
जागता नहीं ,जगाता नहीं।

नश्वर जगत में मनमाना
रंग मंच के खेल
चल रहा है;
कोई जागता नहीं ,कोई जगाता नहीं ;
कोई समझता नहीं ,समझाता नहीं ;
अनश्वर नाटक धरती के मंच पर खेला जा रहा है.