Thursday, June 19, 2025

उल्लास यात्रा

 पिकनिक/ वन महोत्सव वन भोज।

एस. अनंतकृष्णन, चेन्नई 

19-6-25.

मानव मन में 

 प्राकृतिक शोभा

 अति आनंद प्रद और संतोषप्रद।

 अपने नगरीय जीवन  से

ऊबकर समुद्र तट पर,

 जलप्रपात  में 

घने जंगल के छायादार में 

 एक दल के साथ जाना,

  जल प्रपात में नहाना,

समुद्र तट पर घूमना,

 वन में ऊंचे छायादार पेड़,

रंग-बिरंगे फूल,  पक्षी,

 हिरनों का चौकड़ी भरना,

 कितना मनोरम्य स्थान।

यह उल्लास यात्रा,

 घर से बनाये खुराक व्यंजन,

 विविध दोस्तों के घर से

 बनाये विविध पकवान।

 नागरीय जीवन से प्रदूषण से बचकर आनंद जीवन।

 स्वस्थ जीवन 

 वास्तव में पिकनिक में 

प्राकृतिक विश्रांति।

 एस. अनंत कृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु

Wednesday, June 18, 2025

संस्कृत पढ़कर धंधा करनेवाले ही आय के लिए ठगते हैं। आय जो है मानव बुद्धि को भ्रष्ट करती है। सद्यःफल के कारण ठगना न्याय सिद्ध हो जाता है। जैसे नोट देकर ओट पाते हैं। भ्रष्टाचारी फिर सांसद विधायक बनता है। वह राजशासन है तो यह धर्म शासान हैं। दक्षिण कला उत्तर कला के नाम से ऐयंकार बीच सड़क पर तू तू मैं मैं करते हैं। अदालत में मुकदमा लड़ते हैं। शिवा भक्त अपने अपने अलग संप्रदाय से मानव मानव में भेद। दीक्षा देने कम से कम दस हज़ार लेते हैं। वैसे ही विष्णु भक्त, राघवेन्द्र भक्त तिलक बदलकर अपनी विशिष्टता दिखाते हैं। तिलक बड़ा या ईश्वरत्व बड़ा

 संस्कृत पढ़कर धंधा करनेवाले ही आय के लिए ठगते हैं।

 आय जो है मानव बुद्धि को भ्रष्ट करती है।  सद्यःफल के कारण 

 ठगना न्याय सिद्ध हो जाता है। जैसे नोट देकर ओट पाते हैं। भ्रष्टाचारी  फिर सांसद विधायक बनता है। वह राजशासन है तो यह धर्म शासान हैं।

 दक्षिण कला उत्तर कला के नाम से ऐयंकार बीच सड़क पर तू तू मैं मैं करते हैं। अदालत में मुकदमा लड़ते हैं।

शिवा भक्त अपने अपने अलग संप्रदाय से मानव मानव में भेद। दीक्षा देने कम से कम दस हज़ार लेते हैं।

वैसे ही विष्णु भक्त,

 राघवेन्द्र भक्त तिलक बदलकर अपनी विशिष्टता दिखाते हैं।

 तिलक बड़ा या ईश्वरत्व बड़ा पता नहीं।

Tuesday, June 17, 2025

आत्मा परमात्मा

 आत्मविश्वास 

18-6-25.


एस . अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।


विधा --अपनी हिंदी 

          अपने विचार। अपनी पूर्ण स्वतंत्र शैली भावाभिव्यक्ति 

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 नश्वर शरीर में 

 अनश्वर आत्मा।

परमात्मा का वास।

 भगवान  का अंश

 माया  शक्ति और मन

 दिव्य शक्ति पर 

डालता पर्दा।

मन माया के चक्कर में 

 विषय वासना में फँस जाता।

परिणाम दुख ही दुख झेलता।

 बाद में आत्मा परमात्मा का स्मरण आता।

 तभी आत्मज्ञान

 पुण्य पूर्व जन्म के कारण जागता।

  मोहनदास करमचंद गांधी लिखते हैं,

 मेरे बुरे व्यसनों से 

 मुक्ति ईश्वर से मिली।

 तब मन आत्मा में विलीन होता।

 आत्मा सत्य असत्य ,

 पाप पुण्य के भेद जानती।

 आत्मा, अपने बल को पहचान जाता।

अपने बोध ही ईश्वरीय अखंड बोध।

 आत्मज्ञान से आत्मविश्वास बढ़ जाता।

 नर नहीं, परमात्मा शक्ति तुझ में,

 दधिची का स्मरण दिलाता।

 निराशा आशा में बदलता।

 विचार तरंगें तम जाता।

 परिणाम आत्म विश्वास,

 दृढ़ निश्चय असंभव को संभव बना लेता।

 अपने को पहचानना ही

 आत्मविश्वास का पहला सोपान।

 वह भी ईश्वरीय देन।

 आत्मविश्वास मनुष्य को

 आत्मोन्नति के शिखर पर ले जाता।

  एस.अनंतकृष्णन।

18-6-25.



 




Saturday, June 14, 2025

आत्मनियंत्रण

 S.Anandakrishnan

एस. अनंत कृष्णन चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक का नमस्कार वणक्कम्।

 15-6-25.

शीर्षक --आत्मनियंत्रण।

 विधा --अपनी हिंदी 

          अपने विचार 

      

अपनी स्वतंत्र शैली         भावाभिव्यक्ति 

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आत्मनियंत्रण आसान नहीं,

 समाज के डर से

 कानून के डर से

 नियम पालन में 

 आत्म नियंत्रण।।

शरीर और जगत मिथ्या।

माया इस पर प्रकाश डालती।

माया हटाने आत्मज्ञान।

 सत्य असत्य न्याय अन्याय का पहचान।

 सुंदरता के पीछे मन।

 वासनाओं के पीछे मन।

सद्यःफल के पीछे मन।

 मन का नियंत्रण,

 मनका नाश

 वही  आत्म नियंत्रण।।

जितेंद्रता भी आत्मनियंत्रण।

आत्मनियंत्रण न तो

 अनुशासन की कमी।

 काम, क्रोध,मंद, लोभ का तेज।

परिणाम चरित्र निर्माण में बाधा।

आदर्श नाम के लिए 

 आत्मनियंत्रण की आवश्यकता।

एस. अनंत कृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना।

तमिल भाषा नीति

 बुढापा।

 ईश्वर ने दी।

 शारीरिक शिथिलता 

 मन में भूत वर्तमान भविष्य की तरंगें।

हिंदी विरोध वातावरण में 

 हिंदी का जीवन।

 सोचता हूँ, 

तमिलनाडु राजनीति में 

 हिंदी विरोध 1937से।

 यह राजनीति तमिल के नाम पर कितनों की जानें ली।

तनित तमिऴ् अलग तमिल 

 संस्कृत‌ रहित।

 वह असफल।

चिन्ह बना उदय सूर्य।

विपरीत शब्द तमिऴ् में 

 उसकी मूल भाषा पता नहीं,

 हिंदी में भी।

 मुख  मुखम् कहते हैं

 मुख के लिए तमिल शब्द नहीं।

 षण्मुख को आरुमुकम् कहते हैं।

वाद विवाद तर्क

 भारत भर में आम शब्द।

अलग तमिऴ् आंदोलन 

अब why this कोलैवॆऱि में।

फल  तमिल में पऴम्।

जितना सोचता हूँ,

 बगैर संस्कृत के

 तमिल का निर्वाह नहीं।

 निपुणता नहीं।

 श्रीरंगम् तिरुअरंगम्

रंग अरंग  तमिल कैसै?

 यह राजनीति द्रमुक दिलवाले सोचते क्यों नहीं।

तेलुगू कन्नड़ मलयालम् में 

 संस्कृत का प्रभाव।

 तेलंगाना तेलुगू में 

 दक्खिनी हिन्दी का प्रभाव।

 क्यों तमिल राजनीति 

 जानकर भी विपरीत विचार में।

एस. अनंत कृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना 

 



Friday, June 6, 2025

विचार रोपण

 


नमस्ते,

वणक्कम्।


 युवकों के मन में 

विचार रोपण करना है।

केवल हिंदी क्षेत्र के

 मुनाफाखोर ही नहीं 

अन्य क्षेत्रों के हिंदी के प्रति

नफ़रत खोरों में भी।

विचार प्रदूषण मिटाना होगा।

सुविचार रोपण करना होगा।




जिनको हिंदी से जिंदगी मिली है,

जो हिंदी द्वारा जी रहे हैं,

 हिंदी के गुण गान से  कुछ नाम, दाम मिल रहे हैं है

 वे ही हिंदी दिवस,

 हिंदी के विकास में 

 कुछ कर्तव्य और नाम के वास्ते कुछ कर रहे हैं,

 बाकी लोग अंग्रेज़ी सीखकर मज़े में रहते हैं 

न उनमें हिंदी के प्रति या अपनी मातृभाषा के प्रति 

 लगाव नहीं हैं।

 उनमें हिंदी या भारतीय भाषाओं के प्रति ,

प्रेम और श्रद्धा के विचारोपन करना है।

 उसके लिए चाहिए 

जीविकोपार्जन का स्रोत।।

वह दिन ब दिन सूखता जा रहा है।

  आम जनता में 

 अंग्रेज़ी माध्यम का मोह बढ़ रहा है।

सरकार शिक्षा के खर्च कम करने अंग्रेज़ी माध्यम स्कूल की अनुमति देती जा रही है।

मातृ भाषा माध्यम पढ़ना 

 अपमान की चरम सीमा 

 अधोगति की ओर ले जाना है।

 हिंदी और भारतीय भाषाओं के प्रति श्रद्धा, प्रेम, लगाव के बीजोरोपन बोना है,

जीविकोपार्जन का जल सींचना हैं।

 जीविकोपार्जन की नदियाँ सूखती जा रही हैं।

 स्रोत की संभावना  कम दीख रही है।

 हिंदी गौरव समारोह 

 स्वतःपूंजी अपनी प्रशंसा 

में करने दान देने वालों के लिए।

 पैसा दो सम्मान पाओ

 यह हिंदी सामान व्यवसाय भी बढ़ रहा है।

 विचार रोपण  प्रेम का करना है, विचार प्रदूषण करना है।

 एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।

Thursday, June 5, 2025

संस्मरण

 मानसरोवर  साहित्य अकादमी को  

एस. अनंत कृष्णन का नमस्कार।

  विधा --संस्मरण 

  विषय ≠वो बाग बगीचे।

 +++++

  अब 75वर्ष का बूढ़ा हूँ।   15 साल के  नाबालिग से पच्चीस साल की जवानी में, प्रौढ़ावस्था में  से वो बाग बगीचे की हरियाली में पहला करता हूँ।  कितना मानसिक अंतर, कितना  शारीरिक और सांसारिक  वैचारिक, दार्शनिक अंतर।  नाबालिग में निश्चिंत घूमना, जवानी में प्राकृतिक उत्तेजना  विपरीत लिंग के आकर्षण, असफल प्यार, चिंतित मन, तितली की तरह मानसिक परिवर्तन, रंग-बिरंगे फूलों के आकर्षण, अंत में बड़ों के आग्रह से अनजान अपरिचित लड़की से शादी,  जाने अनजाने पारिवारिक  रीति-रिवाज, एक ओर मायके  दूसरी ओर   ससुराल दोनों तरफ़ से पीटा जाता।

 अब भी बाग भी टहला करता हूंँ, न जवानी और नाबालिग का प्राकृतिक विश्रांति। मानसिक बोझ, 

 दुविधा साँप छछूँदर की गति सा घूम रहा हूँ। 

 निस्सार   नीरस टहलना। अभी अभी मन  

आध्यात्मिक चिंतन की ओर मुड़ने लगा।

जब मानसिक  उलझनें बढ़ती जाती हैं,

 तभी अमानुष्य शक्ति या ईश्वरीय शक्ति 

आत्मज्ञान देकर जगत् मिथ्या, शरीर मिथ्या,

 लौकिक वासनाओं से दूर अखंड बोध देकर

 मन नाश हो जाता  है,  मन आत्मा में लीन होकर 

 अद्वैत भावना उत्पन्न होती है।

 अब 75साल की उम्र में टहला करता हूँ।

 न नाबालिग विचार, न जवानी का  लौकिक प्रेमोल्लास केवल परमानंद, ब्रह्मानंद आत्मसुख, आत्मानंद। हर मानव के  जीवन का परिवर्तन रूप दुख सुख का नाश वही आत्मबोध ।

वह परमानंद ब्रह्मानंद वर्णनातीत शब्द रहित 

 वही दुखों से मुक्ति और ईश्वरीय मिलन।

तब पुनर्जन्म का स्थान नहीं।

एस. अनंत कृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना 

शिव दास, भारतीय भाषा प्रेमी।


 


 

 


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