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Sunday, October 12, 2025

भक्त कौन?

 कहते हैं  सब


  मैं हूँ भक्त।


कैसे ?पूछा


मैंने  तो सौ  लिटर  दूध का


किया  अभिषेक।


ठीक ! और कौन भक्त हैं ?


आगे सवाल किया ?


वह व्यापारी बड़ा भक्त हैं।


कैसे मेरे सवाल जारी रहा.


कहा -वह व्यापारी दस लाख रूपये दान में दिया।


वह नेता दस करोड़ के  हीरे के मुकुट दान में दिया।


वह मंत्री श्रेष्ठ  सौ  किलो का सोना दान में दिया।


मैंने और नया सवाल किया--


पर भक्तों की सूची  में न  नेता का नाम.


न वह व्यापारी का नाम।


न वह मंत्री का नाम।


वाल्मीकि का नाम तभी प्रसिद्ध


जब वह सर्वत्र त्याग राम नाम को रटने लगा।


एशिया  की ज्योति बुद्ध का नाम


सर्वत्र त्यागकर भिक्षुक बनने के बाद ही


भक्तों की सूचि  में जुड़ा।


यों  ही भर्तुगिरि ,पट्टीणत्तार  ,तुलसी ,


अरुणगिरि ,रैदास ,कबीर ,


भक्त त्यागराज ,रमण  महर्षि  और


हज़ारों के नाम आज भी अमीर है.


श्रद्धा भक्ति से सब के सब नाम लेते हैं ;


उनकी कृतियाँ पढ़कर आज भी सब के सब


ईश्वर के दर्शन की अनुभूति करते हैं।


आण्डाल ,मीरा का तो अनुपम भकताओं में।


भक्त कौन ?धनी ? उसको धन कैसे आया ?


सोचा कभी ?!


अब बोलो -भक्त कौन ?


स्वरचित -अनंतकृष्णन


आज मेरे मन में उठे विचार।

कविता

 काव्यमराथान सातवां दिन।

प्रसिद्ध कवि, गायक,मंच संचालक,मुरली वादक श्री ईश्वर करुण द्वारा प्रेरित नामोदित मैं  अनंत कृष्णनअपनी सातवीं कड़ी लिख रहा हूं।


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सात संख्या के महत्त्व अति विशेष जानिए


 एक जन्म में सीखी शिक्षा 


सात जन्मों तक साथ देगी,।


तो सीखिए बगैर कसर करके, 


सीखने के बाद उनका अक्षरशः पालन कीजिए।


 कछुए समान अपने पंचेंद्रियों को काबू में रखिए।


सात जन्मों तक सुखी रहिए।।


सप्त कन्याओं के नाम ब्रह्मि,वराही,कौमारी,महेश्वरी,इंदिरानी, वराही,चामुंडीश्वरी नाम लेने से होगा लाभ।


सप्त ऋषि परंपरा ,सप्त ऋषियों के नाम,सप्त ऋषि मंडल


सप्त सागर,सप्त लोक सात संख्या का विशिष्ट महत्त्व।


वशिष्ट, विश्वामित्र,कण्व,भारद्वाज,अत्रि,वामदेव,शौनिक


सनातन धर्म के गोत्र प्रसिद्ध।सात संख्या का महत्त्व ।


सप्त गिरीश्वर श्री वेंकटेश्वर कलियुग देव ,


सात संबंधित देश,देवी, ऋषियों-मुनियों के स्मरण


सात जन्मों का संकट मोचन,जानिए, समझिए,समझाइए।


स्वरचित स्वचिंतक एस.अनंतकृष्णन,चेन्नै।

मिट्टी के टीले

  रेत के टीले

 एस . अनंतकृष्णन, चेन्नई 

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  रेत प्रधान धरती,

  रेतीले रेगिस्तान 

 हवा के बहने से मिट्टी के टीले।

 पुल पर दोनों ओर  मिट्टी के टीले।

 श्मशान में मिट्टी के गोद

 शव गाड़ने के बाद मिट्टी के टीले।

 बीज बोने के बाद मिट्टी के टीले।

 पौधै लगाने के बाद 

 मिट्टी के टीले।

 कुएँ खोदने के बाद 

 वहाँ कीचड़ मिट्टी के टीले।

 बुनियाद  के लिए 

 खोदने के बाद 

 कीचड़ मिट्टी के टीले।

 बोरवेल खोदने के बाद 

 मिट्टी के टीले।

 कोयले, स्वर्ण, हीरे के खान खोदते खोदते मिट्टी के टीले।

नदी के बहाव में मिट्टी के टेले।

 भिड के अंडे देने

 छोटे छोटे मिट्टी  के ठेले।

 दीमक के बिल के टीले 

 दर्जी में मिट्टी के टीले के अनेक रूप।

 कुएँ, झील, तालाब में 

 भरे मिट्टी  के खोदने से मिट्टी के टीले।

 मिट्टी में समा है

 संडे फल पौधै पत्ते 

 मृत्यु जानवर मनुष्य।

 सब के सब  मिट्टी में मिलकर  टीले बन जाते हैं।

 मिट्टी में समा जाना,

 मिट्टी में पलना जीना

 धरती का धर्म है।

 हवा में उड़ने वाले रेत चट्टान या अन्य रोक के कारण केला बनते हैं।

 

  

 



 

  


 

 

  

 


 

Thursday, October 9, 2025

जीवन धन

 


 जीवन धन

एस. अनंत कृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक 

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 मानव जीवन के लिए 

 धन आवश्यक है।

 कैसा धन यही सवाल है?

 आर्थिक संपत्ति अस्थाई,

 संसार की सृष्टियाँ अस्थाई।

 लक्ष्मी तो चंचला,

 नाते रिश्ते अस्थाई 

 हमारा जीवन भी अस्थाई

 तब तो जीवन धन क्या है?

 जीवन धन तो ज्ञान।

 उस में  भी आत्मज्ञान।

 आत्मबोध   अखंडबोध।

 चंचल मन का दमन।

 मानवता का पालन।

परोपकार  , सद्विचार 

 चरित्र निर्माण,

 अंत तक स्वास्थ्य रक्षा।

 अपने दायरे में सद्नाम।

 साहित्य निर्माण।



 


 

 

 



 


 


 


उम्मीद

 आशाओं का दीप

 एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई 

9-10-25.

  मानव   जीवन में 

 भावी जीवन का भय।

दूर होने आशा का दीप।

 माता-पिता   अभिभावक से

 आर्थिक  सहायता की आशा।

 बडे होने पर व्यापार में 

 लाभ की आशा।

 घाटा होने पर

 फिर आगे की आशा।

 

 छात्र जीवन में परीक्षा 

फल और अंक।

 अच्छे महाविद्यालय में 

भर्ती की आशा।


 शिक्षा के बाद नौकरी।

 फिर योग्य वर या वधु।

  आर्थिक कठिनाइयां,

 पदोन्नति का प्रयत्न।

संतान की तरक्की की आशा

 इन सब का सामना 

     करना है तो   एक ही मार्ग 

 आशा का दीप जलाना।

 नर होने से निराशा  से

 बचने   आशा ही बल है।

 माता-पिता पर भरोसा,

  दोस्तों पर भरोसा,

 नौकरों पर भरोसा

 डाक्टर की इलाज 

   पर भरोसा।

 विमान चालक पर भरोसा।

 कदम कदम पर मानव को क्रियाशील 

बनने की प्रेरणा।

 काम करने का ताकत

 आशा पर ही निर्भर है।

 उम्मीद न तो मानव

 उत्साह खो जाता।

 निष्क्रिय बन जाता।

 आशा का दीप ही शक्ति है।

 आशा ही सोच विचार 

 खोज आदि प्रेरणा का मूल।

 

 


 


Wednesday, October 8, 2025

विश्वास घाती,

विश्वासघात 


 एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।

8-10-25

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मानव ही सर्वा हारी,

 स्वार्थी  , ईर्ष्यालु,  प्रतिशोध लेनेवाला,

 छद्मवेशी, सद्यःफल के लिए अपने मित्र को

 शत्रु बनाकर शत्रु को मित्र 

 बनानेवाला चली, ठगी।

 आस्तीन का साँप होता है।

 भारत की पौराणिक कथाओं में भी 

विश्वास घाती छद्मवेशी ज़्यादा है।

   दल-बदलने वाले राजनीतिज्ञ,

 सिद्धांत बदलनेवाले राजनीतिज्ञ,

 मजहब बदलनेवाले भारतीय,

 भ्रष्टाचारी रिश्वतखोरों के प्रशासन,

 नशीली चीजों को 

 कालेज के छात्रों को 

 खिलानेवाले देशद्रोही,

 चित्रपट, अखबारों में 

अश्लील हास्य व्यंग चित्रपट,

 गीत गानेवाले सब

 एक प्रकार के विश्वासघाती ही हैं!

 भारत के इतिहास में 

 सभी देशों के वासी

 विरले आकर विश्वासघातियों की

 मदद से शासक भी बन गये।

 उनके चाँदी के टुकड़ों के लिए 

 भारतीय  विश्वासघातियों ने अपनी  संस्कृति छोडी,

 भाषाएँ छोड़ी,

 पोशाक बदलीं,

 भारतीय जलवायु के विरुद्ध, 

 बंद कपड़े पहनने लगे।

 नशीली पदार्थ अपनाने लगे।

 पगड़ी बदलकर पगड़ी उतारने लगे।

 मुट्ठी भर के अंग्रेज़ी 

 उनके नौकर बनकर 

 सिपाही बनकर 

 अपने ही देशवासियों को

 मारने पीटने लगे।

 ये भी देशद्रोही,

 विदेशियों को सलाम करनेवाले दो हाथ जोड़कर नमस्कार करना भी छोड़ दिया।

 एक हाथ में सलाम,

 अभीवादन प्रणालियाँ भी बदल दी।

वेदाध्ययन के ब्राह्मण के बच्चे वेद, संध्या वंदन कहने पर   नहीं  जानते ।

 वेदना की बात  है,

 ब्राह्मण  लडकियाँ

 प्रेम  के चक्कर में फ़ँस जाती।

 ब्राह्मण लड़कियों को फंसाने विश्वासघाती 

 प्रशिक्षण दे रहे हैं।

 सब स्नातकोत्तर, डाक्टर,अभियंता,

 खूब कमाते हैं 

 सम्मिलित परिवार में 

 रहना नहीं चाहते।

 वीरगाथाकाल, भक्ति काल ,रीतिकाल में 

 देश में अखंड भारत की कल्पना नहीं,

 भारतीय विश्वासघातियों  के कारण देश बना गुलाम।

 आज़ादी  के संग्राम में 

 भारत की एकता देखने को मिली।

 उसमें भी नरम दल गर्म दल।

  सुभाष चंद्र बोस, सरदार पटेल नेता बनकर भी बन न सके।

  हमें इतिहास से सीखना है, भारतीयों में निस्वार्थ देशभक्ति चाहिए।

 भक्ति क्षेत्र में भी विश्वासघात।

 भक्ति बन गई व्यापार।

 नकली संत नकली मंत्र

   अंध भक्ति को व्यापार बनाने ,

 इत्र तत्र सर्वत्र  कदम कदम पर मंदिर।

 शिव भगवान,

राम , कृष्ण के छद्मवेशी 

 भीख माँगते।

 क्या भगवान देनेवाले हैं 

 या लेनेवाले।

 भक्त रैदास, त्याग राज,की कहानी सुनकर भी भगवान को भिखारी बनाने साहस , विश्वास घाती।

 जागो इन  विश्वासघातियों से सतर्क रहो।

 एकता ही निस्वार्थता ही

 मानवता ही

 देश में भेदभाव, राग-द्वेष 

 मिटाकर  आनंद देंगे, 

 शांति देंगे। संतोष देंगे।

 कदम कदम पर  विश्वास घाती।

 वामन के रूप में ‌विष्णु,

 शिव भक्त संन्यासी के रूप में रावण,

   श्री कृष्ण का मायाजाल में कितने षड्यंत्र।

 धर्म क्षेत्रे कुरुक्षेत्र नहीं,

 आरंभ से अंत तक विश्वास घाती। 

 सावधान!  फूँक फूँककर आगे बढ़ना।

 काशी में, रामेश्वर  में 

 कदम रखा तो ज्ञानी को 

 भी ठगनेवाले भिखारी।

 ये भी एक तरह से विश्वास घाती।

 सावधान! सावधान! सावधान!


एस. अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना

काव्य मराथन में  आज तीसरा दिन। चेन्नई के सुप्रसिद्ध कवि श्री ईश्वर करुण जी ने मुझे नामित किया और इसी कड़ी में मैं आज  कविताएं  लिख रहा हूँ।


कविता -3 

आसमान -आकाश धरती -वसुंधरा


आसमान  धरती से देखते हैं ,

सूर्य की गर्मी ,चन्द्रमा का शीतल

तारों का टिम टिमाना

धरती को निकट से छूकर देखते हैं।

जलप्रपात से गिरते नीर में नहाकर देखते हैं

बहती नदी में डुबकियाँ लगाकर देखते हैं

कुएँ  में कूदकर तैरते हैं ,

मिट्टी के खिलौने बनाकर ,

पेड़ पौधे लगाकर ,

प्रिय पालतू जानवर को गाढ़कर

अंतिम संस्कार कर देखते हैं ,

यहीं स्वर्ग -नरक का अनुभव करते हैं

पर यहीं कहते हैं स्वर्ग है आसमान पर।

जिसे किसीने न देखा है.

बचपन का दुलार ,लड़कपन के दुलार

जवानी का दुलार ,बुढ़ापा का दुःख

दौड़ना -भागना जवानी ,बुढ़ापा सोच सोचकर आँसू

नरक तुल्य कोई कोइ खोया जवानी।

आसमान के स्वर्ग -नरक की चिंता में

जवानी का स्वर्ग -बुढ़ापे का नरक भूल

मानव तन समा जाता मिट्टी में।

आसमान धरा की चिंता कहीं नहीं

यहीं भोग प्राण पखेरू उड़जाते।

कहते हैं धरा नरक आसमान स्वर्ग।

एस। अनंतकृष्णन ,चेन्नै।

Sunday, October 5, 2025

समय

 नमस्ते वणक्कम्।

 वक्त/समय/पल 

 बूँद बूंद में सागर भरता।

 पल पल में आयु बढता।

 समय पर काम करना है।

 भाग्य निर्माता हैं वक्त।

 जन्म लेने में वक्त  ही प्रधान।

 एक ही दिन में जन्म,

 जन्म कुंडली के अनुसार 

 एक राजा, एक भिखारी।

 ज्योतिष शास्त्र क्या करता।

 तभी वक्ता जन्म दिन या

 गर्भ उत्पादन के दिन।

 सिरों रेखा लिखकर ही मानव जन्म।

 एक ही खानदान,

 एक वीर  एक कायर।

  पाँच मिनट पहले जन्म लेता तो

 मैं राजा बन जाता।

 यही वक्त का महत्व।

 समय किसी की परवाह न करता।

एस. अनंत कृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक