Thursday, March 15, 2018

शरणागति

भगवान से प्रार्थना
सुना, देखा, भोगा,
अनु भव किया,
अनुभूति मिली,
तू है भक्तवत्सल,
तू है  शरणागतवत्सल,
लौकिक माया मोह,
तुझसे हमें दूर ही रखते हैं,
परिणाम हम भोगते हैं दुख.
लौकिकता  में  कांचन, कामिनी,
पद, अधिकार, अहंकार, लोभ, क्रोध,
मनुष्यता के कुचलना,
मद मस्त हाथी समान,
उठाकर बार बार फेंक देते.
तेरे शरण में आने नहीं देते.
ईश्वर! तू तो अति चतुर,
रोग,  बुढापा, मृत्यु अटल नियम,
सब दुर्भावना मिटाकर,
अंतिम समय प्रायश्चित्त रूप
तेरे चरण में लाने विवश कर देते.
मैं तो  किसी की चिंता न करता.
तेरे नाम लेता रहता,
अतः मेरी अपनी कोई चिंता नहीं
जानता हूँ मैं जग में,
सब हीं नचावत राम गोसाई.
ऊँ गणेशाय नमः ऊँ कार्तिकेयाय नमः ऊँ नमः शिवाय ओम दुर्गयैा नमः

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