Monday, March 19, 2018

आजादी के बाद हिंदी प्रचार


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Anandakrishnan Sethuraman was live.
46 mins

खर्च, पर न कोई शुभ परिणाम.
कविता वाचन में अपने प्रिय मित्रों को
जितना समय देते हैं,
उच्च अधिकारियों के
खुशामद में कितना बोलते हैं,
उनको कितना पैसे देते हैं,
अहिंदी प्रांत के सच्चे हिंदी प्रचारक के
व्यवहारिक हिंदी प्रचार की बातें,
मैदानी समस्याओं, विरोध, इन सब के बीच,
हिंदी प्रचार के संकटकाल में,
दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा की नींव
हिल रही थी, संख्या घट रही थी,
तब रात दिन एक करके,
हिंदी प्रचार में लगे प्रचारकों को
कोई प्रोत्साहन नहीं,
वृद्ध प्रचारकों को सम्मान,
आहा, उ़न प्रचारकों से 600 /- रुपये सम्मान लेकर,
डेढ रुपये के खर्च लेकर,
इस सम्मान देने जो मुख्य अतिथि अाते हैं,
उनको बहुमूल्य वस्त्र, यशोगान,
बिसनस क्लास वायुयान की खर्च,
मैं दिन रात करके हिंदी के असल प्रचार में,
मेरे रुपये, मेरे खरच,
मेरे प्रयत्न हिन्दी प्रचार की बातें सुनने कोई नहीं,
हर एक के भाषण में स्वार्थ की चरम सीमा ऐसे लूटने की संगोष्ठी को दूर से सलाम,
स्वार्थ मय हिंदी के नाम, जीने वाले हिंदी अधिकारी,
हिंदी प्रचार सभा के अहाते में
धन लूटने का अंग्रेजी माध्यम स्कूल,
इनके समर्थक की बुद्धि धिक्कार, मधुशाला के समर्थक, अंग्रेज़ी माध्यम स्कूल के
समर्थक दोनों ही देश के
संक्रामक रोग फैलाने वाले कीट समान,
हाल ही में कडप्पा संगोष्ठी कितना स्वार्थ ,तमिलनाडु से आये तीन लोगों में कितना अपमान.
ऐसे स्वारथ के रहते
न होगा देशी भाषाओं की विकास.
स्वार्थ मय हिंदी अधिकारी, का चमचा गिरी छोड समाज की, देश की भलाई के ध्यान ही श्रेष्ठ.

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