तमिलनाडु के महावीर चेंबगारमण पिल्लै
भारत की स्वतंत्रता संग्राम में तमिलनाडू आगे रहा. तत्कालीन स्वतंत्रता सेनानियों का परिचय देना हर
भारत की स्वतंत्रता संग्राम में तमिलनाडू आगे रहा. तत्कालीन स्वतंत्रता सेनानियों का परिचय देना हर
भारतीय देश भक्त का कर्तव्य है. देश की आजादी आसानी से नहीं मिली. कई लोगों ने अपने प्राण त्यागे.
देश की आजादी ही उनका प्रधान लक्ष्य रहा. ऐसे शहीदों में जय हिन्द चेन्बगारमन ,महावीर चेंबगारामन से
देश की आजादी ही उनका प्रधान लक्ष्य रहा. ऐसे शहीदों में जय हिन्द चेन्बगारमन ,महावीर चेंबगारामन से
प्रसिद्ध शहीद की जानकारी देना ही इस लेख का उद्देश्य है, जिसे लिखने की प्रेरणा निस्वार्थ सेवक श्री
तमिलनाडु हिन्दी अकादमी के अध्यक्ष ,जैन विद्या शोध प्रतिष्ठान के महासचिव डा . श्री एस .कृष्णचंद चोरडिया
द्वारा मिली. उनके प्रति मैं आभारी हूँ.
चेन्बगरामन विदेश में रहते हुए भारतीय स्वतंत्रता की लड़ाई में ठोस काम किया था. आपका जन्म १५ सितम्बर १८९१ ई. में तिरुवनन्दपुरम के निकट पुत्तन विल्लै नामक गाँव में हुआ .आपके पिता का नाम चिन्न स्वामी पिल्लै था और माता का नाम नगम्माल था.उनके पिता पुलिस विभाग में चौकीदार थे.
चेन्बगम पिल्लै बचपन से ही लाठी चलाना (शिलाम्बम ) और तलवार चलाने में सिद्धहस्त निकले.
उनकी पाठशाला की शिक्षा तिरुअनंतपुर के राजा कालेन में और उच्च शिक्षा इत्ताली और जर्मन में हुईं.
चेन्बगरामन विदेश में रहते हुए भारतीय स्वतंत्रता की लड़ाई में ठोस काम किया था. आपका जन्म १५ सितम्बर १८९१ ई. में तिरुवनन्दपुरम के निकट पुत्तन विल्लै नामक गाँव में हुआ .आपके पिता का नाम चिन्न स्वामी पिल्लै था और माता का नाम नगम्माल था.उनके पिता पुलिस विभाग में चौकीदार थे.
चेन्बगम पिल्लै बचपन से ही लाठी चलाना (शिलाम्बम ) और तलवार चलाने में सिद्धहस्त निकले.
उनकी पाठशाला की शिक्षा तिरुअनंतपुर के राजा कालेन में और उच्च शिक्षा इत्ताली और जर्मन में हुईं.
वे यूरोप के कई भाषाओं के पंडित थे. बर्लिन कालेज में इन्जनीरिंग की पढाई की.
जब वे छठवीं फार्म (आज कल की दसवीं कक्षा ) पढ़ रहे थे , तब बालगंगाधर तिलक, महाकवि भारती ,व.उ .
चिदबम्बरम पिल्लै आदि नेताओं ने जोर दार से भारतीय आजादी की क्रांती शुरू कर दी. उन सब के प्रोत्साहन
के द्वारा चेंबगारामन ने भारत माता युवक संघ की स्थापना की .वन्देमातरम का नारा लगाया.
उन्होंने ही पहली बार “जय हिन्द “ का नारा लगाया. अंग्रेज़ी सरकार की जांच नज़र उनपर पडी.
उस समय सर वाल्टर विल्लियम नामक जर्मनी जासूसी भारत आये. उनसे मिलकर अंग्रेजों की कार्रवाई पर ध्यान देने लगे| वाल्टर विल्लियम की सहायता से वे जर्मन चले गए.
जब चेंबगारामन स्विट्ज़रलैंड में छात्र थे, तभी उन्होंने वहाँ प्रवासी भारतीयों को इकट्ठा करके
अंग्रेजों के अत्याचार की व्याख्या की. रूस .चीन आदि देशों की यात्रा करके वहां के भारतीयों में
आजादी के महत्त्व को समझाया.
जर्मन भी अपने स्वार्थ के कारण चेंबगारामन की सहायता की . चेंबगारामन ने काबुल में अंग्रेजों के विरुद्ध
अपने राज्य चलाने की योज़ना बनायी. राजा महेंद्र प्रताप को अधिपति बनाया और मौलाना बरकत को राजा बनाया. खुद वे विदेशी मंत्री बन गए.
प्रथम विश्व युद्ध में जर्मन ने एमिटन नामक पनडुब्बी का इस्तेमाल किया. इसका जहाज अभियंता चेंबगारामन ही थे .
हिटलर और चेंबगारामन का निकट संपर्क था. एक बार हिटलर ने कहा --भारतीय गुलामी में रहने ही लायक
है. भारतीयों में शासन करने की क्षमता नहीं. यह सुनकर देश भक्त चेंबगारामन क्रोधित होकर बड़ी कुशलता से हिटलर से तर्क किया. अंत में हिटलर ने माफी माँगी. हिटलर के सामने बोलने सब लोग डरते थे.
चेंबगारामन की साहसी से सब हैरान थे.
नाजिक लोगों को अपने नेता का माफी माँगना अच्छा न लगा. उन्होंने चेंबगाराम ओ विष पिलाकर मारने की कोशिश की. चंद दिनों के इलाज के बाद जरा चंगा हुए तो नाज़िकों ने मरकर घायल किया. फिर शय्याशायी होकर २६ मई 1९३४ सदा के लिए आँखें बंद कर लीं.
उन्होंने अपने वसीयत में लिखा था-- उनकी म्र्य्तु के बाद उनके भस्म को अपनी माँ के भस्म विसर्जन की नदी जो तिरुवानान्दपुरम में बहती है ,वही विसर्जन करना चाहिए. बाकी भस्म को नान्जिल देश के खेतों में छिड़क देना चाहिए.
उनकी पत्नी झांसी ने तीस साल तक उस भस्म को सुरक्षित रखा. जब वह भारत आयी ,तब १९६६ को अपने पति की विरासत के अनुसार विसर्जन किया और खेतों पर छिडकाया.
आज शहीदों का दिन २३ मार्च है. उस दिन में उनकी श्रद्धांजलियाँ समर्पित हैं.
ऐसे शहीदों की जीवनी पढना, उनका अनुयायी बनना ही उनके प्रति हमारी श्रद्धा होगी.
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