Tuesday, May 16, 2023

तमिल और संस्कृत –

 यह “भक्ति द्राविड उपजी ” सर्वमान्य युक्ति है । पर भक्ति की मूल भाषा संस्स्कृत  कैसी बनी। यह देव भाषा आ सेतु हिमाचल तक  बहुत बडा चमत्कार कर दिया । मुगल आये तो कबीर की मिश्रित अरबी, पारसी,देशी भाषाओं  की शैली आयी । उर्दू का प्रभाव उपन्यास सम्राट प्रेमचंद की कहानियों में देख सकते है। संस्कृत शब्द भंडार  जयशंकर प्रसाद के  ऐतिहासिक नाटकों की शोभा बढाते हैं । आ सेतु हिमाचल की प्रांतीय भाषाओं के साहित्यों में रामायण,महाभारत,रघुवंश,नल दमयंती,शकुंतला  आदि प्रसिद्ध है । वास्तव में  संस्कृत में दिव्य जादू भरी चमत्कार है ।

तमिल और संस्कृत –
तमिल और संस्कृत  का विशिष्ट संबंध है। तमिल के अधिकांश नीति ग्रंथ जैन मुनियों की देन है ।
जगत प्रसिद्ध तिरुक्कुरल भी जैन मुनि की देन माननेवाले हैं । तमिलं के प्रसिद्ध  पंच महाकाव्य  के नाम संस्कृत  भाषा के हैं । अर्द्धमागधि जैन धर्म की साहित्यिक भाषा है ।उनके नैतिक साहित्य का प्रभाव तमील  साहत्य पर पडा है ।
१.शिल्प +अधिकार -शिलप्पधिकार–शिलंबु = ँघुँघरु तमिल में कहते हैं।-जैन काव्य
२. मणिमेखलै–कमर का आभूषण –बौदध
३.कुंडलकेशी –  कान का आभूषण,घुंघरेलु बाल– बौद्ध
४.जीवकचिंतामणि–चिंतामणि—मुकुट का पन्ना /चिंतन कापन्ना जैन
५.वलैयापति –वलय  चूडियाँ–जैन
इन ग्रंथों की मूल रचित भाषा प्राकृत/संस्कृत.
संघ काल- संग +कालम ये  दोनों  शब्दों  का प्रयोग  आ सेतु हिमाचल में होते हैं, पर तमिल नाडू की प्रांतीय राजनीति  संस्कृत का विरोध करती है ।
संस्कृत की बेटी  हिंदी और तमिल का नाता-
पहचानिए
सोचिए।
भारतीय एकता की पक्की नींव  ः–
तत्सम-तद्भव शब्द—-
अवश्य–अवसियम
अनावश्यक–अनावसियम्
आनंद –आनंदम्
अधिक–अतिकम् ,अधिकम्
अल्प-  अल्पम्
आदी -आदी
अंत =  अन्तम्
हठ — अडम्
अतृप्त –अतिरुप्ति
अंध-अन्तकन्
आत्मा–आन्मा
आहार —आहारम्
आकार–आकारम्
आधार —आधारम्
आकाश–आकायम्
अष्टमा सिद्धि–अट्टमा सित्ति
अधर्म—अधर्मम्
अखंड– अकंड
ऐसे तुलनात्मक   शब्दों के तोड मरोड से  हर भारतीय प्रांतीय भाषाएँ एक दूसरे से की निकटता स्पष्ट दीख पडेगी ।

   पाँच  महा काव्य की भाँति  तमिल के  प्रसिद्ध  लघु  काव्य भी  जैन काव्यों के आधार पर  लिखे गये हैं । तमिल भाषा के लघु पंच महा काव्य  भी आ सेतु हिमाचल तक समझ में आनेवाली  भाषा है ।
नागकुमार कव्य, उदय कुमार काव्य, यशोधरा काव्य ,नील केशी,चूलामणि आदि ।
 तमिल - संस्कृत  का  अविच्छिन्न संबंध ।
स्वचिंतक एस.अनंतकृष्णन

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