Thursday, May 25, 2023

देवनागरी लिपि और हिंदी के पक्ष-विपक्ष में तमिलनाडू

 देवनागरी लिपि और हिंदी के पक्ष-विपक्ष में तमिलनाडू

            मेरा जन्म आजाद भार में १९५० में तमिलनाडू में मदुरै जिला के पलनी शहर में हुआ।1960 में दस साल का 
लडका था । मेरे दादा महात्मा गाँधीजी के तीव्र अनुयायी थे । काका राजाजी के भक्त थे । नाना के परिवार में स्वतंत्रता संग्राम के त्यागी थे । बच्चों में संस्कार पहले घरवालों से बाद को समाज से बनता है ।तब से आज तक 
देवनागरी और हिंदी के पक्ष-विपक्ष और तमिलनाडू की मनोदशा की परिस्थिति पर अपने दायरे से शुरु करता हूँ।

देवनागरीलिपि और तमिलनाडू ---
    देवनागरी लिपि देव से संबंधित है । मेरे नाना तमिल और संस्कृत के विद्वान थे । मेरे दादा के परिवार में लक्ष्मी की कृपा थी,पर धन के घमंड से शिक्षा पर ध्यान नहीं े था । परिणाम  मेरा बचपन गरीबी में बीता । मेरे नाना संस्कृत को 
देवनागरी लिपि में न सीखी, ग्रंथ लिपि में। पर दवनागरी लिपि जानते थे ।
 यहाँ के पुजारी,पंडित वेद मंत्र को श्रवण से सीखा ।तमिल की लिपी से ही पढते थे। सहस्रनाम ,अष्टोत्र,शादी के मंत्र,
वैवाहिक मंत्र  तमिल लिपि के ग्रंथों से। आज भी यहाँ के  अधिकांश पुरोहितों में  देवनागरी लिपी का ज्ञान नहीं था ।
यही वास्तविक हालत है ।  क,ख,ग, घ ,ड.--क१ क२  क ३ क ४  इन चारों का उच्चारण श्रवण से ही जानते हैं ।
 यहाँ की महिलाएँ  ललिता सहस्रनाम,विष्णु सहस्रनाम,नारायणीयम जैसे  ग्रंथों को भी तमिल लिपी नें ही खीखती हैं,
सिखाती हैं । देवनागरी लिपी के द्वारा सीखने और सिखाने वाले की जानकारी नहीं है ।
      दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा की परीक्षा के छात्र ही देवनागरी लिपि सीखते हैं । वे भी कालेज की पढाई  के बाद  भूल जाते हैं । तकनिकी कालेज ,मेडिकल कालेज के उच्च आमदनी जीविकोपार्जन में देनागरी लिपी का संबंध 
बिलकुल नहीं है. 
 यह लेख तमिलनाडू के वास्तविक स्थिति की जानकारी के लिए । दक्षिण भारत की हिंदी प्रचार सभा में तमिलनाडू में हिंदी प्रचार के लिए स्थाई प्रचारक नहीं है । वहाँ के प्रमाणित प्रचारक सौ रुपये के चंदा से बनते हैं । कई प्रमाणित प्रचारक चुनाव में वोट डालने के लिए  बनते हैं,बनाये जाते हैं । 
  मेट्रिक स्कूल,सीबीएससी ,ऐसीएस सी स्कूलों में नौकरी की संभावाएँ हैं । अव तमिलनाडू में बगैर हिंदी के
 सीबीएस सी स्कूल  आनेवाले हैं। आ चुकी है। ऐसी खबरें आ रही हैं ।
  आम जनता में हिंदी प्रचार के लिए दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा , चेन्नै एक भी पैसा खर्च नहीं करती।
 श्री स्वर्गीय हिंदी सेवी सभा के कारयकारणी अथ्यक्ष पार्थसारथी के निबंध के अनुसार  घर की महिलाएँ,विधवाएँ 
अतिरिक्त खर्च के  लिए हिंदी के प्रचार प्रसार में लगी रहती हैं ।
  सभा में वृद्ध प्रचारक का सम्मान प्रचारक जिनको सम्मान देना था,उनसे वसूल करती है।
 उच्च शिक्षा और शोध संस्थान के लिए बहुत खर्च कर रहे हैं,जिसमें अधिकांश उत्तर भरत आंध्रा के छात्र हैं.
  यही तमिलनाडू में नागरी लिपि की वास्तविक स्थिति हैं । 
      



    
 



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