Wednesday, September 11, 2024

दुनिया सुखी है

 स्वार्थ  निस्वार्थ सेवा में 

 निस्वार्थ सेवक है

 बेचारा भला आदमी।

  न्याय   की मांग,

ईश्वर के भय से

 काम करनेवाले

 बेचारे भले आदमी 

  होटल में खाकर 

 बिल और इनाम देनेवाले 

  सच्चे सेवकों को दूर ही रखेंगे।

 धन जोड़ने से जवानी न रहेगी।

 बुढापा जवानी में न बदलेगा।

  निर्धन धनी होने पर सुखी,

 धनी निर्धन होने पर  दुखी।

  सेवालेने पर मेवा देना है,

  मुफ्त में काम करते समय

 जो प्रशंसा का पात्र बनतै हैं 

पैसे माँगने पर   दोषारोपण।

 यह दुनिया दुरंगी नहीं, बहुरंगी। 

 न्याय प्रिय के पक्ष में भी

 लोग ज्यादा है,  

अतः दुनिया सुखी है ।


एस.अनंतकृष्णन, 

तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।

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