तितली चंचलसुंदर रंगीली
शीर्षक अति सुन्दर,
पर मानव सभ्य है,
संयमी है,जितेंद्र है।
मानव की अपनी मर्यादा है।
चंचलता मानव की तरक्की में अति बाधक।निश्चल मन की प्रार्थना ईश्वर के दर्शन।
ईश्वर की सुन्दर सृष्टियों में
तितली का आदी रूप
अति भद्दा अति असुंदर।
ऊपर गिरे तो खुजली।
हमारे आकर्षण अंतिम रूप।
हर फूल पर में चाहे फूल पर
रस चूसना,कितना भाग्यशाली रूप।
उसकी कोई रोकता नहीं,उसके चंचल उड़ान ,स्वतंत्र अपनी चाह की पूर्ति,फूलों का आनंद मकरंद मिलन, मानव को प्राप्त नहीं।
स्वरचित स्व चिन्तक अनंत कृष्णन , चेन्नई।
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