Friday, September 20, 2024

भक्ति भ्रम है

 नमस्ते वणक्कम्।

मंदिर एक पवित्र स्थल है।

 ईश्वरीय शक्ति और दंड के भय से ही

 न्याय मार्ग पर लोग जाते हैं।

 पर ईश्वर  तुल्य मानव ,। 

अहं ब्रह्मास्मी

 वैसे ही हिरण्यकश्यप का व्यवहार,

 परिणाम नरसिंह अवतार।

  भगवान नहीं है या है

 पर कोई भी मानव सुखी नहीं है।

 अहं ब्रह्मास्मी  के सिद्धांत 

 मानव में तटस्थता चाहिए।

   हिंदू धर्म की तमाशा देखिए,

  अपने नेता के लिए मंदिर बनवाते हैं।

  वह नेता तटस्थ नहीं है।

 एक दलीयनेता।

 असुरों का शासन, असुर कुलों की रक्षा के लिए।

 शिव, विष्णु भक्त अपने अपने संप्रदाय के लिए।

 राम और कृष्ण भक्ति शाखाएँ,

 शिव के भक्तों का  कितने आश्रम।

 विष्णु के भक्तों के कितने आश्रम।

 ये भक्ति  की एकता केलिए नहीं,

 मानव  मानव में एक भेद दृष्टि।

   हिंदुओं को जागना है,

   एकता के लिए,  

 जगाना है एकता के लिए।

 भारतीय लोग जिन्होंने विदेशी धर्मों को 

अपनाया, उनके मन में हिंदू धर्म के प्रति 

 श्रद्धा  भक्ति होनी चाहिए।

  मैं बहुत सोचता हूँ,

 हिंदू धर्म एक पेशा बन गया है।

 मंदिर पवित्र भक्ति का स्थल नहीं है।

 एक व्यापारिक केंद्र हैं।

 भक्ति के विश्वास अंधविश्वास नहीं होना चाहिए।

 भिखारी भिखारिन में भी 

अपाहिज के वेश  धारण करते हैं।

स्वस्थ लोग भी भीख माँगते हैं।

  दया दानशीलता ठीक है,

 पर भगवान के वेश में भीख माँगने पर

 भगवान का अपमान है।

 ऐसे नकली वेषधारियौं को 

 प्रोत्साहन देने पर ईश्वर हंँसी का पात्र बन जाते हैं।

 हमें ईश्वर पर विश्वास रखना है,

 न आश्रम के दलालों पर।

   पहले भक्ति भक्ति के लिए 

न  व्यापारिक केंद्र बनाने के लिए।

  धर्म  है भक्ति, न मत संप्रदाय।

  तिरुपति बालाजी लड्डू में 

 मिलावट,  मंदिर में भ्रष्टाचार।

  हर मंदिर में मिठाई की दूकान।

   ऐसे ही भक्ति व्यापार बनेगा तो

  हिंदू धर्म के विकास और एकता कभी नहीं होगी।

 धन प्रधान बाह्याडंबर भक्ति नहीं है।

 एस.अनंतकृष्णन।

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