पर्वत की चोटी
एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु
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पर्वत की चोटी देखने में अति ऊँची।
कोई कठिन काम करना है तो कहते हैं गौरीशंकर की चोटी पर चढ़ना है।
ऊँची पहाड़ पर चढ़ने में
जलवायु में परिवर्तन,
बर्फीली हवाओं के कारण
साँस लेना अति मुश्किल।
कहते हैं बर्फीली प्रदेश में
उंगलियां गलकर गिर जाती है, पैर फिसलकर गिरना भी पड़ता है।
साँस लेना मुश्किल होता है।
फिर भी जिज्ञासु साहसी व्यक्ति गोरी शंकर है की चोटी पर पहुँच ही जाते हैं।
अनेक भक्त कैलाश की यात्रा करते हैं
अनेक तीर्थस्थान पहाड़ों की चोटी पर होते हैं।
तीर्थ यात्रा करने,
रम्य सुंदर हरियाली देखने
गर्मी में सर्दी खाने,
पहाड़ी जटिबूटियाँ इकट्ठा करने,
पहाड़ के जल स्रोत देखने
कस्तूरी मृग की कस्तूरी लेने,
अनेकानेक कारणों से
पर्यटकों की संख्या बढ़ती है।
आधुनिक यातायात की सुविधाओं के कारण
ग्रीष्म वासस्थल जाते हैं।
इनके कारण यह सरकार को आय मिलती हैं।
जंगली पशु पक्षियां देखने में अति आनंद मिलता है।
अपूर्व फल फूल मिलते हैं।
रामायण में संजीविनी पहाड़ पर की जटि बूटियों का महत्व है।
देवदारु, स्क्रिप्ट्स जैसे
ऊँचे ऊँचे पेड़,
सुंदर जलप्रपात
दर्शकों को आनंद होता है।
पर्वत की चोटी पहुँचना
वैज्ञानिक युग में आसान।
हेलिकॉप्टर की यात्रा की सुविधा हैं।
गधा, घोड़े ढोंगियों का भी करते हैं।
हिमाचल हमारे भारत के उत्तर में प्राकृतिक पहरेदार हैं।
दक्षिण में तिरमलै पहाड़ पर बालाजी मंदिर,
पलनी पहाड़ पर कार्तिकेय मंदिर ,
अनेक ऋषि-मुनियों के तपस्या स्थान आदि
पहाड़ियों की गुफाओं में।
कहते हैं आजमी अश्वत्थामा,
हनुमान जिंदा घूम रहे हैं।
संक्षेप में कहना है तो
पहाड़ प्राकृतिक सौंदर्य,
मलय पवन,पवन परिवर्तन ,वर्षा होने कारण
पर्वत की चोटी मानव कल्याण का केंद्र है।
एक बार की यात्रा
चिरस्मरणीय बन जाता है।
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