Search This Blog

Thursday, December 18, 2025

परोपकार

 परोपकार 

एस., अनंत कृष्णन, चेन्नई 

19-12-25.

++++++++++++++

बार बार एक ही शीर्षक

 परोपकार।

 प्रकृति ही निस्वार्थ 

 परोपफारी,

 ईश्वर की सृष्टि।

 नदी,सागर, पृथ्वी,

पंचतत्व 

 हवा, पानी, अग्नि, पृथ्वी, आकाश।

ये अपना कर्तव्य

निस्वार्थ रूप में करते हैं।

मानव ज्ञानी पर

 स्वार्थ हेतु

 इन सबको प्रदूषित कर रहा है।

मनुष्य में निस्वार्थ कोई नहीं।

  उसमें संयम् नहीं,

भगवान के नाम लेकर 

ठगता है मानव।

 रामावतार में 

 कृष्णावतार में 

आधुनिक वैज्ञानिक युग में 

नश्वर संसार जानकर भी

अहंकार वश अन्याय करता है मानव।

 शिक्षा उच्च शिक्षा ज्ञान।

 क्या प्रयोजन।

 भ्रष्टाचार शासक

 धन के बल पर,

 दंड से बच जाता है।

चार्टर्ड एकाउंटेंट 

 धन के लिए 

 कर से बचने,

 आय कर विभाग को 

 ठगनै झूठा हिसाब 

किताब लिखने 

अमीरों को देता हे शिक्षा।

भ्रष्टाचार रिश्वतखोरी 

रोकने के विभाग 

 बिल्कुल बेकार।

चुनाव आयोग,

न्यायालय,

जानता है

काले धन का महत्व।

वोट के लिए नोट,

 बदमाशी,

 अल्पसंख्यकों के विजेता 

45%वोट से शासक दल।

वह भी गठबंधन के कारण।

 मतदाता30% वोट नहीं देते।

 विपक्षी दल पाते 25%वोट।

 बैंक में करोड़ों रूपए 

 कर्जा,

 आयकर देने वाले 

अपराधियों को

 जेल में सुविधाएँ,

जेल में अपराधियों को

 नशीली वस्तुएँ।

मंदिर का बाह्याडंबर

 भक्ति नहीं व्यापार।

नकली संन्यासी,

नकली भिखारी 

नकली वस्तुएँ

 मंदिरों के बाहर

भिखारी बनावटी वेश में 

तिरुपति गया तो

जवान स्त्रियाँ

 नन्हें शिशुओं को लेकर भीख।

 ऐसे लोगों को 

भीख देना 

परोपकार नहीं।

तटस्थ जिला देशों का

 तबादला,

दंड।

अंक, उम्र में 

शिथिलता।

आरक्षण नीति।

 इन सबको न रोककर

 अर्थ प्रधान वकील,प्रशासक।

भगवान की सृष्टि में 

 सत्यवान, भक्त संकट मैं।

धनी भ्रष्टाचारी रिश्वतखोरी 

 सुविधा में।

लेखक कवि दरिद्र।

 प्रकाशक धनी ।

ये सब रहित समाज,राष्ट्र

 शासक, प्रशासक

 ही परोपकार।

  बाघ की सृष्टि 

 हिरण की सृष्टि 

 मकड़ी की सृष्टि 

उसके जाल में फँसकर

आहार बननेलाले कीड़े

बिल्ली चूहा।

जिसकी लाठी उसकी भैंस।

 परोपकारी बाघ का आहार  बननेलाले हिरण परोपकारी।

  तटस्थ परोपकारी 

 दधिची ।

 दानवीर कर्ण 

 ये प्राण त्यागी परोपकारी।

परोपकारी वृक्ष,

 उन्हें काटकर 

 बेचनेवाला धनी।

बेरहमी धन प्रधान

 जगत में प्राण रक्षक से

वही मनुष्य है,

जो दूसरों के लिए जिए और मरे।

मरनेवाले दानी। परोपकारी।

Wednesday, December 17, 2025

नदी का यह दुख

 नदी का दुख

एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई 

17-12-25.

++++++++++++

नदी न संचै नीर।

नदी हूँ मैं,

 अपने लिए कोई बचत नहीं करती।

मेरे बिना जीना दुश्वार।

पशु-पक्षी, वनस्पति जगत 

 मानव समाज का प्यास बुझाती हूँ ,


 मेरे रूप विविध।

 शांत कल कल  बहती हूँ,

 वर्षा काल में बाढ तेज।

 बर्फ़ से पिघलकर जीव नदी के रूप में बहती हूँ।

 फिर भी मानव,

 अति स्वार्थ 

 मेरी स्वतंत्रता में बाधा डालते हैं।

 बाँध बाँधकर रोक देते हैं।

बिजली की उत्पत्ति करते हैं 

हरे भरे खेत, घने जंगल 

  जंगल के बरसाती बाढ़।

 अति खतरा ,निर्दयी बनती हूँ।

 नंदी के किनारे,

सभ्यता का विकास।

 आज मानव 

कारखाना बनाकर 

 उसके अवशेष पानी को

 विषैले पानी को 

 मुझ पर छोड़ देते हैं।

 परिणाम  विविध 

 रोगों के कारण बन जाती हूँ।

 यह मेरे लिए अत्यंत सदमा है।

 इतने पानी प्रदूषित है,

 गंगा का पानी कलंकित।

 खेद की बातें वर्णनातीत हैं,

 पानी के बहने पर भी

 गंगा के किनारे,

 प्यासा आदमी,

मिनरल वाटर बोतल 

खरीदकर पीता है।

कहीं कहीं मेरी चौड़ाई 

 कम कर इमारतें बनाते हैं।

  मैं नदी हूँ, मैं दुखी हूँ

 मानव की स्वार्थता से

 प्रदूषित हूँ,

रेत के लूट के कारण,

 कीचड से भरी बहती हूँ।

 पशू पक्षी भी बीमारी में 

तड़पते हैं।

दुखी हूँ ,

 मेरे प्रकोप  के कारण 

 बाढ के कारण  किसानों के मेहनत कभी कभी 

 नष्ट हो जाती है।

ज्ञान चक्षु प्राप्त मानव के

 धन लोभ, नगर विस्तार,

 नदी  मैं परोपकारी 

 दुखी हूँ,

 परिणाम  दुष्परिणाम।

 दुख झेलना ही पड़ेगा।



 

 


.

Sunday, December 14, 2025

आत्मसंतोषी

 आत्मसंतोष 

एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई।

15-12-25.

+++++++++++++++

आत्म संतोष, 

आत्मसुख,

आत्मानंद, 

आत्मज्ञान 

 ये हैं आध्यात्मिक चिंतन।

 लौकिक चिंतन में,

 सत्य का साथ नहीं,

 भक्ति के क्षेत्र में बाह्याडंबर अधिक।

 राजनैतिक क्षेत्र में 

 भ्रष्टाचारी।

 प्रशासनिक और

 न्याय के क्षेत्र में 

लक्ष्मी की चंचलता।

 आत्म संतोष कैसे?

 नश्वर जगत में 

 अनश्वर सत्य,

 अधर्म प्रशासन,

   आतंकवाद 

 ठग, चोर,डाकू,

 पढ़ें लिखे वकील,

 चार्टर्ड एकाउंटेंट 

  व्यापारी,

 सब तटस्थ है तो

 आत्मसंतोष।

 स्वार्थ राजनैतिक 

 हमेशा अपने  असंतोषी,

 विरोधी विचार गठबंधन।

 आत्मसंतोष कैसे?

 रामावतार में राम दुखी।

 कृष्णावतार में कृष्ण दुखी।

  शासक अपने पद,

   अपनी तरक्की,

    षडयंत्र आत्मसंतोष कैसे?

 संसार में अनेक वस्तुएँ,

   जगत मिथ्या, 

   ब्रह्म सत्यं।

परिणाम जगत में 

 आत्म संतोष कैसे?

 चोरी का माल,

  रिश्वत का मार्ग,

 एकांत में नहीं देता,

 आत्मसंतोष।

 बुढापा ही  स्वर्ग- नरक का केंद्र।

 भूलोक में कितने लोग

 शांति पाते हैं, 

संतैषी है? पता नहीं!

   सुपुत्र कुपुत्र की बात।

 व्यापार में लाभ नष्ट।

 भिखारी भी रिश्वत देकर 

 बैठता है मंदिर के सामने।

 मंदिर के इर्द-गिर्द 

 ठगों की दूकानें

 मनमाना दाम।

 दर्शन दो क्षण,

 पेसैवालों के घंटों के दर्शन। 

 रिश्तेदारों की उन्नति,

 ईर्ष्या, क्रोध, लोभ,

 मेरी दृष्टि में आत्मसंतोषी कौन?

 शीरडी साईं चरित्र,

 समाज के दुख दूर करने,

 स्वयं कितने दुखी,

 शारीरिक कष्ट,

 भक्ति के क्षेत्र में 

 भिन्न भगवान,भिन्न सिद्धांत।

 मामा के आराध्य देव अलग।

 दादा,दादी  के आराध्य देव अलग-अलग।

 ज्योतिषी एक ही जन्म कुंडली, प्रायश्चित्त अलग अलग।

  वही आत्मसंतोषी, 

   जिसका मन चंचल नहीं।

 एक ही सिद्धांत,

 धर्माचरण,

 सत्या चरण 

 वैसा कोई दीख न पड़ा।। इतिहास में,पुराण में।

हिरण्यकश्यप, प्रह्लाद,

 दक्ष,शिव ,कंस कृष्णन 

 मंथरा कैकेई राम

 ईश्वर तुल्य लोगों की कथा भी

 राम कहानी अपनी अपनी।

आत्म संतोष नश्वर ब्रह्मांड की खोज में कोई नहीं।।ईसा का शूली पर  चढ़ना,

मुहम्मद का मक्का मदिरा भागना।

आध्यात्मिक क्षेत्र में भी 

 असंतोषी ही ज़्यादा है।





 


 

 





 



 

 


 




 



  


 


 


 

 


Saturday, December 13, 2025

रंग-बिरंगे संसार

 रंगों का संसार।

एस. अनंतकृष्णन, चेन्नई 

१३-१२-२५.

रंगों का संसार 

 अति सुन्दर,

 अति आकर्षक,

 अति आनंद प्रद।

अति मनोरंजक।

  ऊँचे ,ऊँचे पेड़।

 जड़ी बूटियाँ

 चचींडा,बैंगनी,

नबैंगनी के भिन्न-भिन्न आकार,

 मन

 विविध  कटि पत्तियों।ष

 रंग-बिरंगे फूल,

 विविध आकार के फल।

विविध स्वाद,

  रंगीले लाल पीले 

 सूर्योदय सूर्यास्त।

 चंद्रोदय, चमकते तारे।

काले नीले उजाले बादल,

 समुद्र की लहरें, बुलबुले।

 रंग-बिरंगे पक्षी, 

विभिन्न कलरव।

पशु ओं में बड़े हाथी,

 हिरन , सींगवाले हिरन,

 खरगोश , गंभीर सिंह,

चीता,बाघ, भेड़िया,सियार

 सब के गुणों से मिश्रित 

 विभिन्न आकार के मनुष्य,

 सदगुण बदगुण,

रंगीले आदमी,

चित्रकार,  विभिन्न राग, अनुराग, ताल छंद, लय

 स्वर।

 सफेद रंग के सूर्य प्रकाश 

 के साथ रंग इंद्र धनुष।

 गगन चुंबी  गोपुर,

राजमहल।


 रंगों का संसार,


मौसमों के चक्र

 चिलचिलाती धूप,

 कंपकंपी सर्दी

 पत्ते हीन पतझड़।

 वर्षा के मेंढक टर्राना,

मोर के नाच,

हरे भरे पेड़, फूलों का वसंत

 रंगों का संसार 

 अद्भुत, आश्चर्यजनक।

भगवान की लीला।

 आनंद प्रद, संतोष प्रद, शांति प्रद।

+++++++





 

 


 



 


 


 

 


 







 



 

 










Thursday, December 11, 2025

मांसाहारी पशु की सुरक्षा

 पशुओं की सुरक्षा।

एस. अनंतकृष्णन, चेन्नई 

12-12-25.

---------------------

पशुओं की सुरक्षा चाहिए,

 क्या यह संभव है?

 अनेक पशु मंदिरों के

 खंभों मैं देखते हैं,

 जिनका नामो 

निशान अब नहीं।

 हैदराबाद गया तो

 वहाँ  शाकाहारी भोजनालय अति 

   दुर्लभ है।

 गली के कुत्तों की सुरक्षा में ब्लू क्रास,

 तोते के ज्योतिष 

 को रोकने वाले 

 पशु पक्षी रक्षक,

मकड़ी के जाल में 

फँसे कीड़े देख

 पछताने लोग

 माँसाहार  खाने के इच्छुक।

कसाई की दुकानों में,

 भीड़, 

 स्वादिष्ट माँसाहार भोजन,

स्वादिष्ट आकर्षित विज्ञापन,

शाकाहारी और माँसाहारी

 के सम्मिलित  भोजनालय,

 अभयारण्य के पशुओं का नदारद।

 ऐसा है मधुशाला खोलकर,

 मधु पीना देश , परिवार,

 व्यक्ति का नाश।

 अंग्रेज़ी माध्यम स्कूल की अनुमति देकर 

 मातृभाषा  माध्यम का प्रचार ।

 व्यर्थ काम ।

  पशु रक्षा वनाधिकारी

  रिश्वत रोकने का विभाग 

 फिर भी चंदन पेड़ की चोरी,

हाथी दांत की चोरी,

 हिरन का शिकार 

 सब चलता रहता है।

 कठोर दंड विधान नहीं,

  अतः पशु  की सुरक्षा कैसे?

 ऊँट का माँस, बकरी का माँस, गो माँस, गोवधशाला 

 सब वैध।

 सबहीं नचावत राम गोसाईं।

 मछुआरे के जीवन,

 मधुशाला कारखाने के मज़दूर,

 सिगरेट कंपनी के मज़दूर 

अंग्रेज़ी माध्यम के लूट

 सब की सुरक्षा के सामने 

 पशु की  सुरक्षा की समस्या  अनावश्यक।

 कसाई की दूकान,

 विदेशी मजहबों की बढ़ती जनसंख्या,

 मज़हबी परिवर्तन 

 यही प्रधान या

 पशु की सुरक्षा।

 सोचिए, 

क्या

 कसाई    की दूकान बंद करने का कानून लागू कर सकते हैं?

 मधुशाला कारखाने बंद कर सकते हैं?

 खूँख्वार  जानवरों के शिकार राजा करते थे।

 मानव कल्याण मानव सुरक्षा,

 १००%मतदेना

 आदि प्रधान।

 न पशु की सुरक्षा।

 मांसाहारी मनुष्य के होते

 यह तो असंभव।



 


 

 

 

 



 

 

 

 

 

 

 






 



 

 

 

 


 

 



Wednesday, December 10, 2025

ट्राफ़िक जाम

 ट्राफ़िक जाम।

( यातायात अवरोध)

एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई।

11+12-25

-----------------------

यातायात अवरोध 

 यानै ट्राफ़िक जाम।

 वाहनों के आविष्कार,

आर्थिक विकास 

नगर विस्तार 

परिणाम यातयात अवरोध।

जीवन यात्रा मैं 

सम्मिलित परिवार 

   बुद्धि कौशल,

 आर्थिक व्यवस्था 

 ईर्ष्या, प्रतिशोध,

 लोभ, अहंकार , 

 जीवन यात्रा के अवरोध।

 जब मैं बच्चा था,

तब की आर्थिक व्यवस्था ,

 पैर गाड़ी जिसके पास है,

 वही अमीर।

 आज़ादी है के बाद 

भारत का विकास आश्चर्यजनक।

मोटर कार देखना  भी 

 एक विचित्र बात थी।

 इंजन लगा द्विचक्र गाड़ी

धीरे धीरे उसकी संख्या बढ़ी।

 अब बाहर जाता हूँ

 पैर गाड़ी का पता नहीं, 

स्कूटर, बैक भी कम।

 कार की संख्या ज़्यादा।

परिणाम  यातायात 

अवरोध।

 प्राचीन काल में 

 वाहनों   की कमी,

 पैदल यात्रा 

 तब जंगल, 

पहाड़ नदियाँ

 यात्रा की बाधाएँ।


 आजकल आवागमन के 

 साधनों के कारण,

 नगर विस्तार के कारण 

 ट्राफ़िक जाम।

यात्रा की सुविधाएँ अधिक। 

पक्की सड़कें,

नेशनल है वे।

   जितनी सुविधाएँ,

 बढ़ती है,

 उतने अवरोध 

 जीवन यात्रा में।

पुल , पूल पर पुल

 वाहन खरीदने 

 कर्जा लेने की सुविधा।

 महँगाई,

 शिक्षा की महँगाई

 इलाज की महँगाई।

नये नये रोगों का निदान 

 इलाज की सुविधाएँ।

 आर्थिक व्यवस्था 

 जीवन यात्रा के बाधक।

 लगता है ट्राफ़िक जाम 

 आवागमन की सुविधा के कारण नहीं,

 देश की आर्थिक प्रगति भी।

 जापान में आकाश मार्ग पर के नये वाहन का पता लगाया है।

 पैर गाड़ी जैसा छोटा वाहन

 आकाश में उडने के लिए।

 घर घर में उड़ान।

 तब होगा आकाश

 मार्ग पर ट्राफ़िक जाम।

 विज्ञान वरदान है

अमीरों का।

 ट्राफ़िक जाम की देरी

की चिंता नहीं।

जो भी हो ट्राफ़िक जाम 

 समय की बरबादी।

 भारत जैसे देश में 

 आंबुलन्स जाना 

बड़े शहरों में 

अति मुश्किल।

पराया धन

  पराया धन

एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई 

10-12-25.

++++++++++++


पराया धन, 

 तमिलनाडु में 

 संतान लक्ष्मी को

 ग्रामों में कहते थे,

 एक हमारा धन,

 दूसरा पराया धन।

मतलब है

लड़का अपना धन है,

 लड़की पराया धन।

 जीवन में धन कमाना,

 सनातन धर्म के अनुसार 

दान धर्म करना।

 अन्नदान,गोदान,भूदान  कन्या दान।

   पराया धन  

   अपहरण 

  महा पाप।

 मानव की चल संपत्ति 

 अचल संपत्ति सब 

  परायों के लिए।

 पीढ़ी दर पीढ़ी 

 लोगों के लिए।

 अन्न धन

 किसान के मेहनत से।

वह परायों के लिए।

वृक्ष फल न भखै,

 नदी न संचय नीर।

 परमार्थ के कारणे

 साधु धरा शरीर।

 कपड़ा बुनकर बनाता है

 वस्त्र धन दूसरों के लिए।

 शरीर ढकने कपड़े चाहिए,

मानव की कमाई कपड़े खरीदने केलिए।

 कपड़ा बुनकर का नहीं,

बेचने के लिए।

तब पराया धन  

 बदलाव के लिए।

 सुनार का आभूषण 

 परायों के लिए।

 परायों का धन सुनार के लिए।

 देश है अपना धन।

ज़मीन अपना।

 धन तो चंचल है,

 परायों के हो जाते हैं।

मित्रता भी धन है।

 विद्या धन ,

 परायों को देते देते

 ज्ञान की वृद्धि होती है।

इस जहां में सब के सब 

 परायों के लिए।


Monday, December 8, 2025

मैं पैसा बोलता हूँ

 पैसा बोलता है।

एस.अनंतकृष्णन, तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना 

9-12-25

++++++++++++


 मैं पैसा हूँ।

 मैं ही बोलता हूँ।

 अधिक कोई बोले,

 भले ही सत्य हो,

भले ही ईमानदारी बातें हो

 मैं उनके जेब में न तो

 उसकी बातें न सुनता कोई।

पांडेय बेचन शर्मा उग्र 

 मेरे बारे में मेरे ही मुख से 

 सुनाया है बहुत।

 मैं रुपया हूँ।

 मेरी मधुरिमा मेरे झनझनाहट के सामने

 शिव का डमरू, सरस्वती की वीणा, मुरलीधर का बाँसरी,  सब मधुर ध्वनियाँ बेकार।

आजकल चुनाव में 

 विधायक, सांसद 

 सैकडों रूपयों के खर्च करें,

 वोट के लिए नोट दें तो

 मतदाता न देखते

 पात्र कुपात्र के विचार।

 भ्रष्टाचारी नेता भ्रष्टाचार रूपयों से अदालत में 

 जाने पर नामी वकीलों का तांता इसके पक्ष में।

 अध्यापक , पुलिस, डाक्टर सब मेरे बेगार।

 गरीब अपराधी को 

 पकड़ते ही लाठी का मार।

 अमीर अपराधी का सम्मान।

 वहाँ पैसा मैं ही बोलता हूँ।

 आराम की विमान यात्रा,

 पाँच नक्षत्र होटल में ठहरना,

 पैसे मेरा कारण।

 मेरी आत्मकथा में 

 पांडेय बेचन शर्मा उग्र ने

लिखा है,

 संक्षेप में मेरी महिमा,

 लड़कियों की इज्ज़त लूटो,

 साथ खून करो,

साफ़ साफ़ बच जाओगे।

धर्मों को त्याग दो,

 रूपये के शरणार्थी बनो।


सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज। अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥

अर्थ: सभी धर्मों (कर्तव्यों/उपायों) को त्याग कर, केवल मेरी (भगवान की) शरण में आओ। मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्त कर दूँगा, शोक मत करो।

मैं पैसा हूँ। मैं रूपया हूँ।

Sunday, December 7, 2025

क्रोध

 क्रोध।

एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना।

8-12-25.


क्रोध   चाहिए 

 क्रोध न करना।

 अन्याय के  विरोध में 

 क्रोध दिखाना चाहिए।

 वह क्रोध भी तभी  

तभी दिखाना जब 

 क्रोध  का पता लगें कि

 न्याय पूर्ण हो।

विदेशियों का आक्रमण।

 मंदिरों का तोड़ मरोड़।

 आज़ादी के बाद 

धर्म निरपेक्षता के नाम 

 दो हज़ार साल पुराना मंदिर।

मुगलों के आने के पहले मंदिर।

न्यायधीश के इंसाफ के बाद भी।

 तमिल राष्ट्र कवि भारतियार ने कहा

 रौद्र का अभ्यास कर लो।

 जग भलाई के लिए 

 अत्याचार की चरम 

  सीमा पर  भगवान 

 जन्म लेते हैं।

  क्रोध न सीखने पर

 अन्याय चरम सीमा पर 

 पहु़ँचता।

 आज़ादी अहिंसा से नहीं,

 भारतीय लाठी का मार सहते रहे।

 दूसरी ओर  देशभक्त 

 गर्म दल अंग्रेज़ी 

 के तार खंभ, थाना

 मार्ग जिला देश 

 सब को चूर्ण कर रहे थे।

   पर बिना सोचे विचारे 

 बांग्लादेश,  लोभ वश 

 ईर्ष्या वश क्रोध 

 सही नहीं।।  

 क्रोध तो एक क्षण मैं 

 खूनी बना देता है।

पियक्कड़ों का क्रोध 

 निंदनीय है।

 माता पिता गुरु का क्रोध

 जीवन प्रगति के लिए।। आजकल की  ताज़ी खबरें 

 माता ने  सिनेमा जाने,

पैसे न दिए माता की हत्या।

अध्यापिका ने गाली दी,

 अध्यापिका की हत्या।।

 ऐसे क्रोध मूर्खता दंडनीय।

 क्रोध बिना 

सोचे विचारे होने पर 

 जिंदगी भर पछताना होगा।।

Saturday, December 6, 2025

अंतिम परीक्षा

 अंतिम परीक्षा 

+++++++++

एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना 

7-12-25

++++++++++++++

माता पिता कहते थे,

 बारहवीं कक्षा जीवन 

 मोड़ की अंतिम परीक्षा।

उच्च शिक्षा भर्ती का बुनियाद।

 स्नातकोत्तर तक 

खूब पढ़ना।

  फिर नौकरी।

परीक्षा खत्म।

 आगे ही परीक्षा ही परीक्षा।।

 अंतिम परीक्षा अंतिम साँस तक।

 योग्य पति या पत्नी,

 प्रेमी या प्रेमिका 

 चुनने की कठोर परीक्षा।

सुपुत्र   को शिक्षा देने की परीक्षा।

 कुपुत्र को दूख लेख की परीक्षा।

 बहु या दामाद चुनने की परीक्षा।

 उद्योग धंधों में 

 पदोन्नति की परीक्षा।

 व्यापारी को  ग्राहक की परीक्षा।

 बीमार पड़ने पर

 खून, एकस्रे,स्केन की परीक्षा।

   अंतिम परीक्षा कहाँ तक।

 बहू की परीक्षा,

 दामाद की परीक्षा।

 अंतिम परीक्षा अंतिम साँस तक।।

 चुनाव की परीक्षा।

योग्य प्रतिनिधि चुनने की परीक्षा।

 नेता के भाषण और वादा

 को जानने की परीक्षा।

 कदम कदम पर 

चोर, डाकू, उचक्कों की परीक्षा।

 नकली साधु संतों की परीक्षा।

 नकली अंगहीन भिखारी की परीक्षा।

 अंतर्जाल ठगों की परीक्षा 

 अंतिम साँस तक

 परीक्षा ही परीक्षा ।

 अंतिम परीक्षा लेने

 आत्मा नहीं रहती जहाँ में।




 

 

 

 


 

 

 

 

 

 



 मन

Friday, December 5, 2025

वेद-सनातन धरम--अनंत जगदीश्वर

 4816.  चींटी से ब्रहमा तक के सभी जीवात्माएँ  कहते हैं कि मन का नियंत्रण अत्यधिक कष्ट है। जिसके मन में कोई इच्छा नहीं है, वह शून्य आकाश में  अकारण उमडकर दीखनेवाले माया के बनाये नाम रूप प्रपंच दृश्यों में किसी में किसी कारण से व्यवहार न करेगा। कारण प्रपंच में दीखनेवाले नामरूप सब आकाश मात्र है का वाद रहित विषय है। पूर्णरूप से समझ सकते हैं कि  जड रूप में दीखनेवले नाम रूपों में  जिसके कण लेकर जाँच करने पर उसमे आकाश रहित अणु कहनेवाले नामरूप स्थिर खडा नहीं रहता।  जिसमें  सत्य की खोज की बुद्धि नहीं है,  वे ही आकाश को भूलकर परपंच रूप में बदलनेवाले के जैसे भ्रमित करनेवाले नाम रूप बने प्रपंच को सत्य मानकर  विश्वास करके उसके बीच परमानंद स्वरूप अपने की खोज कर रहा है। उसी समय  प्रपंच असत्य  जाननेवाले विवकी का मन किसी भी प्रयत्न के बिना दब जएगा। कारण जिसमें भेदबुद्धि नहीं है, उसको मन ही नहीं है। जो सत्य जानने का प्रयत्न नहीं करता वह दुखी रहेगा। उस दुखसे बचने का एक मात्र मार्ग है, सत्य जानने का प्रयत्न करना। जो मन नहीं है, उसको नियंत्रण में लाने का अभ्यास बुद्धि शून्य और अर्थ शून्य है। वैसे लोगों को दुख भोगने में कोई आश्चर्य नहीं है। कारण वे सब स्वप्न में देखे स्त्री या पुरुष को शादी न करने का दुख जैसा है,वैसा ही है।  कुछ लोग स्वप्न में देखे प्राकृतिक क्रोध में नाश हुए घर को सोचकर जैसे दुख होते हैं,वैसे ही है। अर्थात् आकाश के जैसे,

आत्मबोध में ही आकाश भूत ,उससे होनेवाले वायु , वायु से होनेवाले अग्नि, अग्नि से होनेवाले पानी,पानी से होनेवाली भूमि है सा लगता है। आकाश में रहनेवाले नाम रूप जैसे आकाश मात्र है, आकाश वैसे ही अखंड बोध आकाश में लगनेवाले आकाश सहित के पंचभूत बोध मात्र है। कारण बोध से न मिले पंचभूत के एक बूंद भी स्थिर खडा नहीं रहेगा। बोध मात्र ही स्थिर खडा रहता है। उस अखंडबोध का अपना स्वभाव ही एक जीव चाहनेवाले  सभी आनंद है।

4817. सर्वव्यापी,निश्चलन,निर्विकार,अखंडबोध रूपी मैं है के अनुभव के साथ रहनेवाले परमात्मा से न मिले दूसरा दृश्य जड चलन नहीं है। इसको शास्त्र परम रूप में, युक्तियों के साथ,विवेक के साथ जानकर प्रज्ञा अर्थात् बोध को दृश्यों में न लगनेवाले  दृश्यों को छोडकर प्रज्ञा अपने में मात्र नियंत्रित रहने के साथ स्वयं मात्र ही नित्य, सत्य रूप में स्थिर खडा रहते हैं को जानकर परम ज्ञान में अर्थात्  परमात्मा में रहते समय परमात्म स्वभाव के आनंद को दिन के जैसे अनुभव कर सकते हैं।

4818. सत्य से अपरिचित  जीव के चारों ओर मृत्यु देव नशा में रहेगा। वह एक परछाई जैसा है। कोई चलें तो वैसा लगेगा  कि छाया भी साथ चलेगा।  हाथ उठाने पर छाया भी हाथ उठाएगी। वैसे ही मनुष्य जिस रीति में कर्म करता है, जिस चिंतन से कर्म करता है,जिस लक्ष्य की ओर कर्म करता है, अर्थात कुछ लोग आत्मबोध के साथ कर्म करते हैं तो कुछ लोग अहं बोध के साथ कर्म करते हैं। मैं,मेरा के भाव से कर्म करते समय उसके अनुसार ही देव की प्रतिक्रियाएँ होंगी। इसलिए देवों को संतुष्ट करना है तो विश्व भर को शुद्ध करने की क्षमता भरे दिवय कार्यों को करना चाहिए। अनुष्ठान और ध्यान करके यशोगान करना चाहिए। इन सबको ही  जीवन बनाकर परिवर्तन करना चाहिए। वैसे सत्यबोध को आत्मसात् करने साध्य होनेवाला मनुष्य बडा पापी होने पर भी वह परम पवित्र बनेगा। इसलिए उपनिषद सार सर्वस्व बने भागवद भगवद्  गीता , आदि सत्य शास्त्रों को  विश्व भर की पाठशालाओं में पाठ्यक्रम में जोडने पर भेदबुद्धि, रागद्वेश रहित एक भक्त समूह बना सकते हैं।
विश्व भर में भारत देश ही इसका उदाहरण है।

4819.  अनंत को अनंत रहित एक के द्वारा ही उदाहरण के साथ समझकर एहसास कर सकते हैं। कारण दो अनंत नहीं है। जन्म-मरण के बारे में सही रूप में सीखे बिना मृत्यु भय से विमोचन नहीं है।उदाहरणों को ठीक रीतियों से समझना चाहिए।
पहले प्रपंच का परम कारण मैं है को अनुभव करनेवाला अखंडबोध है, उस बोध से दूसरी एक नयी वस्तु न बनेगी। इस बात को बुद्धि में दृढ बनाना चाहिए। वैसे सर्वव्यापी बोध को एक समुद्र के रूप में संकल्प  करना चाहिए। समुद्र के समुद्र पानी ही अकारण अनेक बुलबुले के रूप में उमडकर  नीचे होने से जान पडता है। उसमें एक बुलबुला उमडने उमडने को ही एक जीव का जन्म है, वह बुलबुला टूटने को ही मृत्यु कहते हैं। इस प्रकार एक बुलबुला उमडकर छिपना ही एक जीव का जन्म मरण है। समुद्र का पानी ही बुलबुले हैं। बुलबुलों का मिटना भी समुद्र का पानी है। एक बुलबुले उमडना कम होना आदि और समुद्र का कोई संभव  नहीं है। वैसे ही  मैं नामक अखंडबोध रूपी समुद्र उमडना और मिटने के बुलबुले जैसे ही स्वयं देखनेवाले प्रपंच रूप है। समुद्र  चलन से बुलबुले बदलने के जैसे नहीं है, आदि-अंत रहित बोध में नाम रूप प्रपंच होगा। वह रस्सी को देखकर साँप के भ्रम होने के जैसे बोध के अपूर्णता में बोध को ही माया के द्वारा प्रपंचरूप में देखते हैं। अर्थात् हल्की रोशनी में रस्सी को साँप के रूप में देखते हैं। रस्सी सत्य में साँप न बनाती है।  वैसे ही बोध को ही प्रपंच के रूप मे देखते  हैं। बोध ने प्रपंच की सृष्टि नहीं की है। सदा दुख देनेवाले साँप रूपी प्रपंच, उसमें जीव के नाम रूप बोधाभिन्न एक नयी वस्तु को बनायी नहीं है। वही नहीं वे नाम रूपी माया स्वयं अस्थिर मिथ्या दर्शन मात्र है। इसको न पहचानकर शरीर और संसार को सत्य मानकर विश्वास करने पर वह दुख मात्र दे सकता है। मैं नामक अखंडबोध मात्र ही परमानंद स्वरूप में, सनातन रूप में होता है। इसलिए तैलधारा के जैसे रहनेवाले सत्य स्मरण ही दुख निवृत्ति का एक मात्र मर्ग है। अर्थात् मन जहाँ भी जाएँ व बोध है,जो कुछ देखते हैं, वे सब ब्ह्म स्वरूप मात्र है।

4620. श्री कृष्ण ने भगवद् गीता में इस विश्व के बडे प्रपंच रहस्य को ही अर्जुन से कहा है। प्रपंच के दुखों को बिलकुल यह रहस्य मिटा देता है। जो नहीं है,वह बन नहीं सकता। इस बात को छोटा बच्चा भी समझ सकता है। लेकिन संसार के बहुत बडे ज्ञानियों को भी यह अज्ञात विषय है। अर्थात्  यह संसार रहित है। वह है तो नाशवान न होना चाहिए। जो भी नश्वर है,वह सत्य नहीं है।    सत्य अजर अमर है। भारत के ऋषि-मुनि इसको स्पष्ट रूप से जानते समझते हैं। फिर भी संसार के लोग श्री कृष्ण के उपदेश पर विश्वास नहीं रखते। उसकी सत्यता का एहसास नहीं करते ।इसलिए श्री कृष्ण कहते हैं कि अपनी माया का पार करना मुश्किल है,मेरे केवल मेरे शरणार्थी बननेवाले मात्र माया पार कर सकते हैं। जो है,वह आत्मा है। वह आत्मा जीव रूपी मैं है। मैं है का अनुभव आत्मा रूपी बोध है।वह अनश्वर है। वह बन नहीं सकता और रहित नहीं हो सकता। वैसी आत्मा ही अर्जुन तुम हो। यों कृष्ण कहते समय जीव के प्रतिबिंब रूपी अर्जुन रूपी देह पंचभूत के भाग होने से वह तीनों कालों में बनते नहीं है। बुद्धि में इस बात की दृढता होने पर भी बाकी जो है, वह सर्वव्यापी परमात्मा मात्र है।  परमात्म सर्वत्र सर्वव्यापी होने से वह रहित स्थान नहीं है। वह निःचलन,निर्विकार,निष्क्रिय है। वैसे परमात्मा हत्या करता भी नहीं है, हत्या कराता भी नहीं है। इसलिए जन्म -मरण का संभव नहीं होता। सत्य से अज्ञात माया जीव  की माया के भ्रम मात्र ही यह ब्रह्मांड भर में  है।  

Thursday, December 4, 2025

ज्ञान और शिक्षा

 ज्ञान और शिक्षा।

++++++++++++

एस. अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना 

+++++++++++++++

5-12-25.

++++++++++++++

ज्ञान और शिक्षा 

 शिक्षा सब लोगों की

 निरक्षरता मिटाकर

 साक्षरता के लिए।

 नौकरी प्राप्त करने।

 स्नातक स्नातकोत्तर बनने के लिए।

 शिक्षित वकील

 धन के लिए अपराधी के पक्ष में न्याय 

 दिला सकता है।

 अधिकारियों 

 पुलिस अधिकारी 

 मनःसाक्षी के विरुद्ध 

काम कर सकता है।

 शिक्षा जीविकोपार्जन प्रधान।

 ज्ञान स्वयंभू है,

 विश्वविद्यालय की 

उपाधियाँ लौकिक 

जीवन से संबंधित।

 ज्ञान है पूर्व जन्म ज्ञान 

 आत्म ज्ञान, ब्रह्म ज्ञान 

 ज्ञान के ग्रंथों को 

 शिक्षित  लोग 

 आलोचना,समालोचना,

खोज ग्रंथ, डाक्टरेट

 नौकरी बस ।

 डाक्टरेट की संख्या बढ़ती हैं,

उनके वेतन स्तर 

बढ़ता है,

 उनसे कोई नये ग्रंथ 

 नयी क्रांति असंभव।

 आत्मज्ञानी, ब्रह्मज्ञानी,

 सरस्वती पुत्र हैं,

 वर कवि कालिदास।

 भक्त त्याग राज 

 उपनिषद, वेद , 

 आध्यात्मिक ग्रंथ 

 भगवद्गीता  आदि के

 रचनाकार,

 ज्ञानी, ब्रह्म ज्ञानी 

 उनके ग्रंथों की

 आलोचना, समालोचना,

 प्रवचनकर्ता, शोध ग्रंथकार, धन कमानेवाले,

सब किताबी कीड़े

 शिक्षित वर्ग।

 ज्ञानी तो सिद्धार्थ राजकुमार नहीं,

 बुद्ध बने ज्ञानी।। 

उज्जैन का राजा भर्तृहरि नहीं,

 अपने पत्नी के गलत संबंध जान संन्यासी बनकर जो ग्रंथ लिखे 

 वह ज्ञान ग्रंथ है।

अत्याचार निर्दयी 

 अशोक 

 बुद्ध धर्म 

अपनाने के बाद 

 विश्वप्रसिद्ध सम्राट अशोक।

 आदि शंकराचार्य 

 बचपन से ज्ञानी थै।। शिक्षित और ज्ञानी में 

 शिक्षित संकुचित दायरै में 

 नामी व्यक्ति।

 ज्ञानी विश्वविख्यात 

 सर्वप्रिय, विश्व हितैषी 

 मार्गदर्शी, ज्ञान अपने आप

 जैसे महर्षि रमण,

 अपनी जगह से न हटकर 

 विश्व भर के शिष्यों को

 अपने यहाँ खीँच लाये।

 भारत के ऋषि मुनि ज्ञानी।

 शिक्षा और ज्ञान में आकाश बादल का अंतर।।

ज्ञान व्यापक असीमित।

 शिक्षा संकुचित सीमित।

 तमिल कवयित्री औवैयार  ने

 लिखा है जो सीखा है ,

वह मुट्ठी बराबर,

 जो न सीखा है वह

 ब्रह्मांड बराबर।

भारत ज्ञानियों के भंडार घर।

 एक नहीं,एक ईसाई

 भारत में ही   ज्ञानियों से 

 प्राप्त आध्यात्मिक ज्ञान।

 अद्वैत, द्वैत, विशिष्टाद्वैत।

  आकार, निराकार  ब्रह्म रुप।

 वसुधैव कुटुंबकम् की भावना

 यही ज्ञान, सर्वव्यापी ब्रह्म विचार।


 


 


 

 

 








Wednesday, December 3, 2025

न्याय का तराजू

 न्याय का तराजू 

+++++++++

एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना 

4/-12/-25/

++++++++++++++

 न्याय आँखें खोलकर 

 देना है,

 तराजू हाथ में 

 आँखें बंद

 अंग्रेज़ी की नीति

 भारतीय  निरपराध देश भक्तों को पक्षपात 

देकर दंड।

 तराजू का पलड़ा

सब बराबर हैं या नहीं 

 इन्साफ की देरी।

 वायदे पर वायदा।

परिणाम साक्षी की मृत्यु ला पता।

 न्यायधीश का अवकाश प्राप्त।

 नये न्यायाधीश।

 धन के आधार पर,

 अधिकार के आधार पर

 भय दिखाने के कारण 

 गलत फैसला।

 फैसला सुनाने में देरी।

भारतीय भ्रष्टाचार राजनैतिक नेता 

 साफ साफ बच जाता।

 दंड मिलने पर जल्दी छूट जाता।

चुनाव में धन प्रधान।

 जीत जाता।

 न्याय का तराजू के पल्डे

 बराबर है या नहीं,

 आँखों की पट्टी नहीं देखता।

 वोट के लिए नोट

 खुल्लमखुल्ला ।

 नोट न तो बर्तन।

 न्याय का तराजू 

 आँखों में पट्टी।

40%शासक दल।

 उनके विरूद्ध मत दाता

 60%

अल्पसंख्यकों का शासन।

 न्याय का तराजू 

 आँखों में पट्टी ।

 एक मुख्यमंत्री का

 गलत संपत्तिका मुकद्दमा

 एक पियक्कड़ अभिनेता 

 मुकद्दमा बारह साल तक।

न्याय का तराजू 

तोलनेवाले की आँखों में 

 पट्टी,

 न्यायालय जाने धन प्रधान।

 धनियों को वकीलों का तांता।

 न्याय का तराजू 

 आँखों में पट्टी।

 झूठे नकली गवाह 

 देखने में असमर्थ।

  आँखें देखने पर

 सच्चाई मालूम होती।

Face is index of the mind.

 न्याय के तराजू 

 आँखों में पट्टी।

तराजू के पल्डे की बराबरी

 आँखों के देखने से।

 आँखें तो बंद

 उल्टा पुल्टा न्याय।

 अवकाश के बाद 

‌न्यायाधीश का भय।

 इन्साफ  सत्य नहीं 

 अधिकांश मुकद्दमों में।

न्याय के तराजू 

 तोलनेवाले की आँखों में पट्टी।

Monday, December 1, 2025

मेहंदी

 मेहंदी 

+++++++

एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना 

++++++++++++++

2-12-25.

++++++++++++

दैनिक चुनौती आजका शीर्षक है मेहंदी।

  मेहंदी  का अपना

   आध्यात्मिक महत्व है।

 मेहरौली का अपना 

  वैज्ञानिक महत्व है।

 आध्यात्मिकता के आधार पर वह महालक्ष्मी का अंश है।

मंगल दायिनी है।

वह कीटनाशिनी है।

 मेहंदी लगाने से

 शारीरिक उष्णता कम होती है।

स्त्रियों के मासिक धर्म

आरामदायक होता है।

वैवाहिक दिन में 

 मरुदानी लगाने से 

 हाथ और उंगलियों की 

 सुंदरता बढ़ती है।

 महालक्ष्मी का अंश

   होने से सर्वश्रेष्ठ है

 मेहंदी लगाना।

 मिस्र देश में,

  अरब देशों में 

 पाकिस्तान में 

 मेहंदी का अलग मेला है।

  सनातन धर्मियों के अनुसार  

 मंगलकारिणी,

 रोग निवारणी,

पैर के टीले मिटानेवाले 

 मेहंदी महीने में 

 दो बार स्त्रयाँ लगाना

 आध्यात्मिक ,

 शारीरिक 

 आर्थिक संपन्नता के लिए 

अति लाभकारी है।

 मेहंदी लगाने का धंधा भी हैं।

 मेहंदी अलंकार के साधन है।

 मेहंदी डिजाइन की पुस्तकें भी प्रकाशित है।

 अतः मेहंदी 

आय का भी साधन है। 

ईश्वरीय वरदान है मेहंदी।


मेहंदी से संबंधित कुछ मुहावरे हैं "पैरों में मेहंदी लगाकर बैठना" जिसका अर्थ है आलस्य या लाचारीवश घर में पड़े रहना, "हाथ में मेहंदी लगी होना" जिसका अर्थ है किसी काम में असमर्थ होना, और "पाँव की मेहंदी छूट जाना" जिसका अर्थ है हर्ज होना या नुकसान होना।

Sunday, November 30, 2025

माटी का मोल

 माटी का मोल।

+-------------------

एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक ++-----------------------------

1-12-25

+++++++++


मिट्टी एक अमूल्य वस्तु।

 कुम्हार के जीवनाधार।

 वह कठोर परिश्रम से

 बनाते बर्तन ,मूर्ति का

 मिट्टी के मोल में बेचकर

 अमूल्य कलाकार 

 ग़रीबी में जिंदगी बिताता है।

 किसान है अति मेहनती,

 उसके परिश्रम से उगे

 अनाज सब्जियाँ,

पूंजीवाद लेता

 माटी के मोल में 

 ग़रीबी में किसान।

 व्यापारी बनता मालामाल।

अचानक व्यापार में बर्बाद,

माटी के मोल में दूकान भेजा।

उपरोक्त सब मिट्टी के मोल का अल्पार्थ।

 माटी के मोल का दीर्घार्थ।

 अमूल्य।

 मिट्टी खोदकर 

 बीज बोना

 स्वर्ण , हीरे का मिलना

 मिट्टी का मोल  अधिक।

 मिट्टी की शक्ति महान।

 

दीये जलाइए तो माटी और कुम्हार को ..."माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रौंदे मोहे। एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूंगी तोहे।" यह कबीरदास का प्रसिद्ध दोहा है, जिसका अर्थ है कि आज कुम्हार मिट्टी को रौंद कर बर्तन बना रहा है, पर एक दिन कुम्हार का शरीर भी इसी मिट्टी में मिल जाएगा और तब वह मिट्टी ही कुम्हार को रौंदेगी। यह दोहा जीवन की नश्वरता और समय के चक्र को दर्शाता है।

जिंदगी

 नमस्ते वणक्कम्।

+++++++++

जिंदगी  

++++++++++

1-12-25.

++++++++++

उपनिषद की बात है,

 जगत मिथ्या, ब्रह्म सत्यं।

धरती की सृष्टियाँ नश्वर।

जन्म मरण के बीच 

 जिंदगी सौ साल ही।

सौ साल जीना मुश्किल।

 सौ साल में शैशवा अवस्था 

 मरकर बचपन।

 बचपन मिटकर लड़कपन।

 लड़कपन मिटकर जवानी

 जवानी मिटकर प्रौढ़ावस्था।

 प्रौढ़ावस्था मिटकर बुढापा।

 सनातन धर्म की चार अवस्थाएँ।

 ब्रह्मचर्य में पढ़ाई

 गृहस्थ में जीवन।

 गृहस्थ जीवन में 

 सुपति कुपति,

 सुपत्नी कुपत्नी

 सुपुत्र कुपुत्र।

संघर्ष मय जीवन।

जगत माया ,

वासनाएँ

 मधुशालाएँ,

 लाल दीप क्षेत्र

भ्रष्टाचार रिश्वतखोरी 

रोग दुर्घटनाएँ

 अंधा बहरा गूँगा

 साध्य असाध्य रोग।

 कर्मफल के सुख दुख

 फिर भी मानव सोचता है

‌उसका जीवन स्थाई।

नरक कहीं नहीं 

 स्वर्ग कहीं नहीं।

 अमीरी में दुखी

 ग़रीबी में दुखी।

 ज्ञान चक्षु प्राप्त मानव

 जिंदगी शाश्वत मानकर

 तुलसीदास के अनुसार 

 काम क्रोध लोभ मद अहंकार 

 ईर्ष्या द्वेश में 

 मानसिक शांति संतोष खोकर

 नरक स्वर्ग वेदनाएँ सहकर

  जिंदगी बिताता है,

  यही जीव न है मानव का।

  राम,कृष्ण के अवतार पुरुष

  संसार को दिखा दिया 

 जिंदगी संकट से भरा।


एस. अनंत कृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना 

  


 






 





 







Saturday, November 29, 2025

अकेले क्रांति

 नमस्ते। नमस्कार।

आज के विचार 

++++++++++++++++

लिखना है कुछ,

 लिखाना है कुछ।

 लिखवाना है कुछ।

 जवानों को निर्भय लिखना है।

 सत्य पर जोर देना है,

पर बेकार कहना बेकार है।

 संसार ही लौकिक माया में मग्न है तो

 उनसे अलग विशिष्टता दिखाना है।

  स्वतंत्रता किसने दिलायी?

बहुत बड़ी क्रांति किसने की?

 बड़े बड़े आविष्कार किसने की?

 मार्ग दर्शक  दार्शनिक ग्रन्थ  किसने लिखी।

 चिकित्सा में क्रांति किसने की।

ये सब 

अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता 

 मिथ्या है।

कवियों की रचनाएँ

 एकांत में,

  एक ही ईश्वर है,

 ईश्वर के मार्ग दर्शक 

 तपस्वी अकेले ही थे।

 बड़े बड़े काव्य

 नोबल विजेता अकेले।

अत: अकेले क्रांति की

 अमर लेखिका स्टो ने।

एकांत तपस्या में 

 वाल्मीकि की रामायण।

सोचा समझा ईश्वर का अनुग्रह।

 आदि शंकराचार्य,

 साईं शीरडी,पुट्टभर्ती

झक्की वासुदेव 

 रमण महर्षि 

अकेले एकांत क्रांतिकारी 

 रमण महर्षि तो

 एक मात्र भक्त 

 तिरुवण्णामलै छोड़कर कहीं नहीं गये।

दिव्य पुरूष अकेले ही

 महान कार्य करते हैं

 वैसे ही आविश्कारक।

 अकेले चना भाड़ नहीं फोड़ सकता।

 कैसे सार्थक।

 ब्रह्म उपासक स्थाई 

सत्य का मार्ग दर्शक हैं।


एस. अनंत कृष्णन चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना

Thursday, November 27, 2025

ईमानदारी

 ईमानदारीका पथ।

 +++++++++++

एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना 

28-11-25

+++++++++++++++

ईमानदारी  का पथ।

 अत्यंत महत्वपूर्ण।

 आदर्श प्रशासन का मार्ग।

आत्म संतोष का मार्ग।

 आत्मानंद का मार्ग।

तटस्थता का मार्ग

त्याग का मार्ग।

वह मार्ग धन प्रधान नहीं।

सत्य मार्ग,मानवता का मार्ग।

अति हर कठिनतम मार्ग।

उसमें न भ्रष्टाचार,

 न रिश्वतखोर।

कर्तव्य मार्ग ,

 ईश्वर की देन सोचकर 

 कर्तव्य निभाने का मार्ग।

प्रशंसा का मार्ग।

 माया जगत में 

 चलना मुश्किल।

शासक की ईमानदारी 

 जनता को भी आदर्श  बनाएगी।

 माया जगत में 

 ईमानदारी  के लोग हैं,

 पर संख्या में कम।

 अत्यंत शक्तिशाली। पर

 शासक वर्ग, चुनाव क्षेत्र 

 जनता, मतदाता 

  माया जगत में 

 सद्यःफल के लिए 

 ईमानदारी के पथ को

 भूल गए हैं।

 सौ करोड़ रूपये खर्च कर

 बनते हैं सांसद विधायक।

 इतने करोड रूपए 

ईमानदारी कमाई नहीं।

 खुल्लमखुल्ला वोट के लिए नोट, हर कोई जानता है।

 पर मतदाता ईमानदारी को वोट नहीं देते।

 कहते हैं लोकतंत्र की रक्षा।

 30%  वोट नहीं देते।

30% विपक्ष।

  बाकी जो जीतते हैं,

 अपने निजी बल  से नहीं,

  गठबंधन के बल से।

  परिणाम सिद्धांत पर दृढ़ता नहीं,

 चुनाव आयोग,

सतर्कता और 

  भ्रष्टाचार निरोधक निदेशालय"। 

 चुप, चुप,

  शासक के अधीन।

 बदमाशों का भय दिखाना।

 चुनाव आयोग भी शक्ति हीन।

 करोड़ों काले चुनाव के समय पकड़ने की खबर।

फिर भी धन  मतदाता तक।

 चुनाव के पहले ही

 बर्तन का भेंट।

ईमानदारी का पथ आदर्श

 पर माया/शैतान/सात्तान

 अतिज्ञशक्ति शाली।

 ईमानदारी के पथ पर चलने न देती।

 रूप माधुर्य  वेश्यावृत्ति,

 काम क्रोध लोभ ईर्ष्या

 आधुनिक सुविधाएँ।

ईमानदारी पथ पर  बांधा बन खड़ा हैं।

 शिक्षित वकीलों की तांता प्रतिमा,

बेईमानदार को छुडानै तैयार।

लक्ष्मी पुत्र  के बल के सामने  ईमानदारी का पथ

 काँटों से भरा है,

कंकटों से भरा है

चलना अति मुश्किल।

 धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र नहीं 

 ध्यान से देखने पर

 अन्याय की सूची लंबी।








 









 

Wednesday, November 26, 2025

मानव दानव पशु में अंंतर

 मानवता की पहचान।

 एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना 

26-11-25

+++++++++++++


मानव असल में पशु।

 पशु समान मानव को

 मानवता ही मनुष्य बनाता है।

 ज्ञान चक्षु प्राप्त  मानव में 

 सभी प्रकार के गुण होते हैं।

 मानव गुणों की तुलना,

 मानव से नहीं जानवरों से ही।

 मानव सर्वा हारी,

नरमाँस भी ग्राह्य।

 ऐसे मानव में मानवता 

इन्सानियत  ईश्वरीय गुण।

सत्य असत्य की पहचान,

 दया, परोपकार, देशप्रेम 

 असाधारण प्रतिभा।

 सिंह के मुख में सिर रखने का अभ्यास।

 हाथी को कठपुतली   बनाने की क्षमता।

 प्राकृतिक की सुविधाओं को कृत्रिम यंत्रों से 

 पाने की क्षमता।

 वातानुकूलित सुविधाएंँ 

 शत्रु को रोकने अस्त्र शस्त्र।

 सुरक्षित इमारतें बनवाना।

 वीर धीर गंभीर साहस कार्य।

 गोताखोर बनकर समुद्र की गहराई की खोज।

चंद्र यान पर उड़कर 

 अंतरिक्ष की खोज 

 मानवता की विलक्षण बुद्धि,

 साहित्यकार बनकर 

 समाज को जगाने की शक्ति।

 नेता बनकर नयी क्रांति 

 नये परिवर्तन।

इन सबके होने पर भी,


 दया,ममता, परोपकार,

 निस्वार्थ सेवा, दान शीलता, तटस्थता,भलमानसाहस,

 देश भक्ति, मातृभाषा प्रेम।  सत्य, अहिंसा,

दधिचि जैसे रीढ़ की हड्डी का दान।

 वही मनुष्य है 

जो परायों के लिए जिए और मरें।

आदि शंकराचार्य 

राजकुमार सिद्धार्थ, महावीर, शीर्डि साईं।

 दानवीर कर्ण।

तुलसीदास, सूरदास,

कबीर, रैदास, भक्त त्यागराज जैसे आदर्श कवि।

 मानव में ये गुण न तो

 मानवता नहीं है तो

 मानव और दानव में 

 मानव और खूँख्वार जानवरों में अंतर नहीं जान।



 

 


  




 

Tuesday, November 25, 2025

यादें संस्मरण

 यादें संस्मरण।

 मैं आठवीं कक्षा में पढ़ रहा था।

 मुझे पैर गाड़ी चलाना नहीं आता।

हम हर इतवार को हमारे घर से पाँच मील की दूरी पर शक्ति विनायकर मंदिर अपने दोस्त नागराजन के साथ ही जाया करते थे। 

 कारण मंदिर घर से पाँच छे मील  की दूरी पर था। नागराज पैर गाड़ी चलाता था, पैर गाड़ी की दूकान भी थी।

 उसके पीछे के आसन पर बैठकर ही जाया करता था। मंदिर जंगल में था।

आसपास कोई घर या दूकान  नहीं था। 

अचानक टयर पर काँटे के चुभने से 

 पंचर हो गया। पर हवा थी।

 अनुभव हीन मैं काँटे को निकाला तो

पूरी हवा निकल गई। दोस्त को गुस्सा हुआ। काँटे को न निकाल ने पर धकेल कर जाना आसान है।   फिर मंदिर दो मील और वापस पाँच मील साईकिल 

धकेल कर आना पड़ा।

कभी गाड़ी नाव पर कभी नाव गाड़ी पर।

 यह घटना भूल नहीं सकता।

 लेकिन मंदिर में भगवान के दर्शन एक जिला देश के आने से  विशेष अभिषेक आराधना शांति प्रद संतोष प्रद रहा।

 वह बड़ी शक्ति की मूर्ति थी, उसकी गोद पर गणेश की मूर्ति थी।

 नाक में नक बेसरी पहनाने एक छेद था। उसमें हीरे के नथबेसरी चमक रही थीं। कानों में हीरे। स्वर्ण कवच।

 जंगल में ऐसी  दिव्य मूर्ति।

 वही शक्ति विनायक का हृदय स्पर्शी अंतिम दर्शन था।  उसके बाद मैं  नौकरी  के मिलने के बाद  वह मंदिर न जा सका। लेकिन वह दिव्य मूर्ति आँखों में बस गयी।  कबीर की यह दोहा याद आती है --

नयनों की करी कोठरी, पुतली  पलंग बिछाय।

पलकों की चिक डारि के,पियको करो रिझाय।।

 सांत्वना केलिए 

 तेरा साईं तुझमें, ज्यों पुहपन में वास।

 अद्वैत भावना 

 लाली मेरे लाल  की,

जित देखो तित लाल।।

लाली देखन मैं गयी,

मैं भी हो गई लाल।

 अहं ब्रह्मास्मी। आत्मज्ञान।

एस. अनंत कृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना। यादें, संस्मरण।