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Sunday, April 24, 2016

तिरुक्कुरल - नागरिक शास्त्र-गौरव -९८१ से सौ तक

गौरव  -तिरुक्कुरल -९८१से९८० तक
१. कर्तव्य निभानेवाले यही कहेंगे कि जो कुछ  भलाई केलिए करना है वे सब गौरव की बाते  हैं।
२.  अच्छे गुण ही गौरव की भलाई है।और किसी में भलाई नहीं है।
३. प्यार,लज्जा,दान-धर्म,दया,सत्य वचन आदि पाँच गुण ही  गौरव महल के चार स्तंभ है।
४. किसी का वध न करना धर्म कर्म की सुंदरता है गौरव  दूसरों की बुराई का बाहर प्रकट न करनै में है।
५.  एक काम को  कौशल के रूप में करने का सामार्थ्य उनमें रहेगा जिनमें अपने अधीन काम करनेवालों से  विनम्र व्यवहार से काम कराने की क्षमता हो।वही अपने दुश्मन को भी मित्र बनाने का अस्त्र- शस्त्र है।
६. गौरव  की कसौटी  है,अपने से निम्न लोगों से भी अपना हार मान लेना।
७. अपने को बुरा करनेवालों को भी भला करना ही गौरव का लाभ है।और क्या हो सकता  है।
८. गौरवको  अपनी संपत्ती जो मान लेते हैं, उनके पास धन न रहना  गरीबी नहीं है।
९. गौरव के सागर के किनारे रूपी बडे लोग , काल या भाग्य के परिवर्तन होने पर भी खुद न बदलेंगे।


Saturday, April 23, 2016

बडप्पन- नागररिक शास्त्र - अर्थ भाग- ९७१ से९८०.

 बडप्पन- नागरिकशास्त्र- अर्थ भाग - तिरुक्कुरल _-तिरुवल्लुवर ।
१.  किसी एक व्यक्ति के जीवन चमकने केलिए साहस और उत्साह  आवश्यक है।  साहस हीन जीवन अपमानित है।
२. सभी जीवों का जन्म एक ही तरह से होता है।  लेकिन जो काम करते हैं, वह ऊँच नीच के भेद उत्पन्न करता है।  अतः विशेषता एक समान नहीं रहती।
३.  जिसमें अच्छे गुण नहीं है, वह उच्च पद पर रहने पर भी बडा नहीं है। छोटे पद पर रहकर भी  अच्छे गुण  है तो बडे हैं। 
४.  जैसे पतिव्रता नारी का विशेष महत्व है, वैसे ही महत्व अच्छे गुणवालों को होगा।
५.  जिसमें बडप्पन है,वह असाध्य अपूर्व काम कर चुकने में समर्थ होता है।
६.बडों की विशेषता जान -समझकर सराहने के गुण 
उनकी विशेषता  छोटे गुणवालों को नहीं होगा।
७. निम्न लोगों को   पद मिलने पर वे अहंकारी  रहेंगे ।
८.  बडे लोग गुणी और नम्र  व्यवहार के होंगे। गुण हीन छोटे  लोग अात्म प्रशंसा करके अहंकारी बनेंगे।
९.  अहंकार रहित जीने के गुण  ही जीना है,  निम्न गुणी अहंकार की सीमा में उन्नतिहीन रह जाएँगे।
१०. दूसरों की कमियों को छिपाना बडप्पन है। दूसरों की कमियों को बताते रहना  छुटपन है।



तिरुक्कुरल अर्थ भाग ९६१ से ९७० तक - नागरिकता- मान _-मर्यादा।

तिरुक्कुरल इज्जत -मान-मर्यादा -९६१ से ९७०. नागरिक शास्त्र -अर्थ भाग

  1. १.अनिवार्य आवश्यक  काम  होने पर भी  अपनी इज्जत की हानी या मान पर कलंक  लगेगा तो वह काम नहीं करना चाहिए। अर्थात मान पर धब्बा  लगने के काम को कभी  नहीं करना चाहिए। 
  2. २.जो यश और पौरुष चाहते  हैं , वे नाम पाने के लिए कभी कुल परंपरा पर कलंक लगनेवाला  काम न करेंगे
३. अपनी प्रगति में विनम्र स्वभाव , अपनी हालत बदलने की परिस्थितियों में  गुलामी न करने का मान  चाहिए।
४.  जब लोग अपने उच्च पद से गिरते  हैं ,तब लोग उन को अति तुच्छ मानेंगे। (सिर से गिरे बाल के समान)
५. पहाड -सा  गंभीर  खडे रहनेवाले भी   मान पर कलंक लगेगा तो गुंची बीज सम हो जाएँगे। अर्थात नाम बिगड जाएगा।

६ .  जग जीवन के लिए अपमान सहकर , मान-मर्यादा की बिना परवाह किये  विनम्र रहनेवालों को अपयश होगा। क्या उनको यश या स्वर्ग मिलेगा? कभनहीं।
७.  बेइज्जतियों के पिछलग्गू बनकर जीने से मरना बेहतर है।
८.बदनाम पाकर मान खोकर जीने  का जीवन  क्या अमर जीवन की दवा बन सकता है? कभी नहीं।
९.जैसे जंगली बैल अपने बाल गिरने पर मर जाएगा  वैसे  ही आदर्श आदमी अपने पर कलंक लगने पर प्राण तज देगा।
१०.अपने मान के लिए जो अपने प्राण तज देगा।,उसको संसार  तारीफ करके देव तुल्य मानेगा।।





Friday, April 22, 2016

तिरुक्कुरल -सुनागरिक - ९५१ से९६० अर्थ भाग -राजनीति

तिरुक्कुरल  सुनागरिक  -९५१ से ९६० तक 
१.तटस्थता और लज्जा उच्चकुल में जन्म लेनेवालों  में ही  सहज में पाया जाएगा।दूसरों में नहीं ।
२. भद्र कुल में जो जन्म लेते हैं, वे कभी अनुशासन,सत्य,मान मर्यादा आदि में दृढ रहेंगे।
विचलित न होंगे।
३. सच्चे उच्च कुल में जन्म लेनेवाले  के चेहरे में खुशी,
दानशीलता,मधुर वचन,पर-निंदा आदि गुण   स्थाई रहेंगे।
४.उच्च कुल में जो जन्म लेते हैं,वे करोडों रुपये देने पर भी अपने कुल कलंक के काम में नहीं लगेंगे।
५.परंपरागत दानी कुल में जो जन्म लेते हैं,काल के फेर से गरीब होने पर भी अपनी दानशीलता न छोडेंगे।
६.जो निर्दोष जीवन बिताना चाहते हैं, वे दगाने के काम में न लगेंगे।
७.उच्चकुल में जन्मे लोग कलंकित काम करेंगे तो चाँद के  कलंक के समान प्रकट हो जाएँगे।
८.किसी एक व्यक्ति के अच्छे गुणों के बीच प्यार न होने पर लोग उसके कुल पर संदेह प्रकट करेंगे।
९.जैसै पैदावर को देखकर खेत की समृद्धी का पता चलेगा ,वैसे ही  किसी व्यकति की वाणी सुनकर उसके जनम के कुल का पता लग जाएगा  कि वह उच्च कुल का है या निम्न गुण का है।
१०. किसी एक व्यक्ति  अपने कल्याण चाहता है तो उसको नम्र व्यवहार करना चाहिए। 

तिरुक्कुरल -अर्थ भाग --दवा -९४१ से९५०

तिरुक्कुरल --अर्थ भाग -दवा -९४१  से  ९५० 

१. वाद ,पित्त ,शिलेत्तुम  इन  तीनों  में 
एक की कमी से   या  बढ़ने  से  रोग  होगा. 
२. खाने  के  बाद पाचन  क्रिया  के  लिए  
समय देकर खानेवालों को रोग  नहीं  होगा. 
३. जो खाते  हैं ,वह  जीर्ण होने  के  बाद ,
खुराक को परिमाण के अनुसार संतुलन करके  खाना 
लम्बी आयु जीने का मार्ग  है. 
४. जो  खा चुके  हैं ,वह पचकर  ,
खूब  भूख  लगने  पर 
खाद्य-पदार्थ को पहचानकर 
शारीर के अनुकूल खाना चाहिए. 

५. शरीर   के अनुसार उचित भोजन  सुनकर 
 मित भोजन खाने  से  रोग  से  बच  सकते  हैं। 
६. मित  भोजन  करने वाले अधिक काल  जीना 
अधिक भोजन करने वाले  जल्दी चल बसना  संसार में देख सकते  हैं 

७.  पेट  भरने  के  लिए खाना हैं ; अधिक मात्रा में  खाने  से शरीर बीमारी  के  केंद्र  बन जायेगा. 
८. रोग  क्या  हैं ?रोग  आने  के कारण  क्या  हैं ? 
उचित दवा  या  इलाज  क्या  है ? 
आदि निदान  करके  शारीर स्वस्थ होने  की दवा लेनी चाहिए. 

९. रोगी  की उम्र ,रोग  के गुण , इलाज  के समय  आदि जानकार  ही  
चिकित्सकों  को  इलाज  करना  चाहिए. 
१०.  इलाज चार  तरह    से  करते  हैं --१.रोगी  २. चिकित्सक ३, दवा ४. दवा देनेवाले. इन चारों को आपसी सम्बन्ध  है.  

Thursday, April 21, 2016

तिरुक्कुरल --९३१ से ९४० तक अर्थ भाग - जुआ .

तिरुक्कुरल --९३१  से  ९४०  तक अर्थ भाग - जुआ .

१.   सफलता  मिलने  पर  भी जुआ खेलना  नहीं चाहिए;
जैसे   कांटे  के आहार  पकड़कर  मछली
जैसे अपने प्राणों  को  खो देती है ,
वैसे ही दुर्गति  हो  जायेगी.

२.  जुआ खेलने वाले  एक  बार  जीतने के  बाद
सौ   गुना  हारने  के बाद  भी  जुआ  खेलना नहीं  छोड़ेंगे.
 ऐसे जुआ खेलनेवालों   के  जीवन  में  सुख  कहाँ ?

३. लगातार  जुआ जो खेला करता है ,
  वह अपनी  सारी संपत्ति खो देगा
 और  आगे कमाने के तरीकों को भी भूल  जाएगा.

४.  कई प्रकार  के कष्ट घेरने ,
    सारी संपत्ति और प्रसिद्धी  को नष्ट करने  ,
    गरीबी  के  गद्दे में डालने
    जुआ   काफी  है.
 जुआरी  को अपयश  और  गरीबी घेर  लेगी.

५. जो जुआ  खेलने के यंत्र  , स्थान  और  उसके  प्रयत्न  को  नहीं  छोड़ता,
 वह  अत्यंत  गरीब हो  जाएगा.एक  पैसे  भी नहीं  रहेगा.

६. जो जुआ   ज्येष्ठा देवी  के प्यार करने लगता  है,
वह  भूखा प्यासा  रहकर गरीबी का  दुःख  भोगेगा ही.

७. जुआ घर में कोई समय  बिताएगा  तो
 वह  अपनी परंपरागत संपत्ति खो देगा ;
 साथ ही साथ  गुण भी.

८.  जुआ  एक व्यक्ति  के  सद्गुण ,सम्पत्ति  मात्र बरबाद  नहीं करेगा
   और उसको झूठा बना  देगा.
   बेरहमी   बनाएगा  न जाने
   कई प्रकार कष्टों  के  घेरे में  बाँध  देगा.

९. जुआ  के गुलामी को  छोड़कर
 उसकी  संपत्ति ,यश ,शिक्षा  ,कीर्ति ,खाना  ,वस्त्र  आदि
 सब  बहुत  दूर  चला  जाएगा.
१० . जैसे  मनुष्य को अपने शरीर पर दुःख के अनुभव   करते
       समय  प्यार बढेगा ,
       वैसे  ही धन को खोते खोते
    जुआ  खेलने  की इच्छा  बढ़ती  जायेगी.


मद्यपान न करना --अर्थ -भाग -तिरुक्कुरल --मित्र शास्त्र--९२१ से ९३० तक

मद्यपान  न  करना --अर्थ -भाग -तिरुक्कुरल --मित्र शास्त्र--९२१ से ९३०  तक

१.  जो  नशीली शराब  पीते  हैं ,वे किसीका  आदर  नहीं   पा सकते ; कोई भी उसे देखकर न  डरेगा.वे  अपयश  का  पात्र  बनेंगे।

२. नशीली चीजें नहीं  लेना  चाहिए।   जो सज्जनों  से बदनाम  पाना  चाहते  हैं ,वे  शराब  पी सकते  हैं.

३.पियक्कड़  बेटे को खुद उसकी माँ नहीं चाहेगी और उसके अपराधों को माफ  न  करेगी तो दूसरे कैसे चाहेंगे।
सब के घृणा का पात्र बनेगा
५.पियक्कड़  के  अपराधी    निर्लाजा  होंगे ; शर्म  नामक  भद्र   स्त्री   भाग  जायेगी .
६.  एक  बेहोश की हालत  में रहने नशीली चीज़ें  लेना अत्यधिक  मूर्खता  है.
७. आड़ में मद्यपान  करने  पर  भी उसकी आँखे
 उसे दिखा  देगी . उसने  पिया  है.
 बेहोशी आँखों  के  घूमने  से वे निंदा  के  पात्र  बनेंगे.  

८. कोई  भी   छिपा  नहीं  सकता  कि उसने पिया  नहीं  है; नशे में  कह देगा कि  उसने  पिया  है.

९.  पियक्कड़ों  को सुधारने उपदेश  देना  और मशाला  लेकर
 पानी में डूबे मनुष्य की तलाश  करना  दोनों बराबर  है ; अर्थात बेकार है.
१० . एक  पियक्कड़  ने  जब  मधु  नहीं  पिया  है ,तब  पीनेवाले  के  बद -व्यवहार  देखकर  भी सुधरता  नहीं .
 यह  क्यों  पता  नहीं  है.