Saturday, April 23, 2016

तिरुक्कुरल अर्थ भाग ९६१ से ९७० तक - नागरिकता- मान _-मर्यादा।

तिरुक्कुरल इज्जत -मान-मर्यादा -९६१ से ९७०. नागरिक शास्त्र -अर्थ भाग

  1. १.अनिवार्य आवश्यक  काम  होने पर भी  अपनी इज्जत की हानी या मान पर कलंक  लगेगा तो वह काम नहीं करना चाहिए। अर्थात मान पर धब्बा  लगने के काम को कभी  नहीं करना चाहिए। 
  2. २.जो यश और पौरुष चाहते  हैं , वे नाम पाने के लिए कभी कुल परंपरा पर कलंक लगनेवाला  काम न करेंगे
३. अपनी प्रगति में विनम्र स्वभाव , अपनी हालत बदलने की परिस्थितियों में  गुलामी न करने का मान  चाहिए।
४.  जब लोग अपने उच्च पद से गिरते  हैं ,तब लोग उन को अति तुच्छ मानेंगे। (सिर से गिरे बाल के समान)
५. पहाड -सा  गंभीर  खडे रहनेवाले भी   मान पर कलंक लगेगा तो गुंची बीज सम हो जाएँगे। अर्थात नाम बिगड जाएगा।

६ .  जग जीवन के लिए अपमान सहकर , मान-मर्यादा की बिना परवाह किये  विनम्र रहनेवालों को अपयश होगा। क्या उनको यश या स्वर्ग मिलेगा? कभनहीं।
७.  बेइज्जतियों के पिछलग्गू बनकर जीने से मरना बेहतर है।
८.बदनाम पाकर मान खोकर जीने  का जीवन  क्या अमर जीवन की दवा बन सकता है? कभी नहीं।
९.जैसे जंगली बैल अपने बाल गिरने पर मर जाएगा  वैसे  ही आदर्श आदमी अपने पर कलंक लगने पर प्राण तज देगा।
१०.अपने मान के लिए जो अपने प्राण तज देगा।,उसको संसार  तारीफ करके देव तुल्य मानेगा।।





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