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Tuesday, April 26, 2016

भीख --अर्थ भाग-१०५१ से १०६० तक - तिरुक्कुरल

भीख -अर्थ भाग -तिरुक्कुरळ -१०५१ से १०६०

१. जिसके  पास सब कुछ है,  उससे   कोई माँगकर.

 वह इनकार  करें  तो  उसका  पाप  न देनेवाले को  ही

लगेगा ; माँगने वाले  को नहीं.

२. भीख माँगने  पर. कोई. चीज. आसान  से मिल जाएगी  तो   भीख  माँगना   भी  सुख ही  है.

३. खुले  दिलवाले  और   कर्तव्यपरायण लोगों  से  भीख माँगना  भी  सुंदर. ही  है.

४. खुले दिलवालों  से  भीख माँगना भी  भीख देने की विशेषता  रखता है.

५. अपने  पास  जो कुछ है ,उसे बिना  छिपाये उदारता से देनेवालों के कारण ही  भीख माँगने का धंधा चलता  है.

६. उदार अमीरों को जो खुलकर दान देता  है ,उसको   देखने मात्र से  ही गरीबी का दयनीय दुख दूर हो जाएगा.

७. हँसी न उडानेवाले और अपमानित. न. करनेवाले  दानियों  को  देखकर  भीख माँगनेवालों का मन अधिक खुश होगा.

८. गरीबी  के कारण  माँगनेवालों  को  जो  पास आने  नहीं  देता, उसका और कठपुतली का  कोई भेद नहीं है.

९. माँगनेवाला ही नहीं  है  तो  देनेवाले का नाम नहीं होगा.

१०. भीख माँगनेवाले   को  नाराज न  होना    चाहिए.  वह  खुद  गरीबी का अनुभव करने से

दूसरों की गरीबी देखने  से नाराज  नहीं  होगा.


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