Wednesday, April 6, 2016

कर्म -शुद्धता ---अर्थ भाग --राजनीती --तिरुक्कुरल ६५१ से ६६० तक

कर्म -शुद्धता ---अर्थ भाग --राजनीती --तिरुक्कुरल ६५१  से  ६६०  तक 

१.  किसी व्यक्ति को अच्छे सहायकों  से सम्पत्ति  बढ़ेगी ;

बल  बढेगा. पर उनके साथ  मिलकर 

अच्छे कार्य करेंगे तो सभी प्रकार  के फल  मिलेंगे। 

२. ऐसे कर्म करना  नहीं चाहिए ,
 जिससे  वर्तमान जीवन में सुख नहीं मिलता 
 और धर्म कर्म करके मोक्ष की प्राप्ति  न मिल सकता। 

३. जो  जीवन  में  आगे बढ़ना  चाहते  हैं ,
उनको अपयश का कर्म नहीं  करने  का  ध्यान रखना  चाहिए। 

४. जिनमें स्पष्ट ज्ञान है, वे अपने दुःख से मुक्त होने के लिए भी बुरे काम नहीं करेंगे। 

५. ऐसा  काम कभी नहीं करना चाहिए ,जिसे करने के बाद पछताना पड़े.

करने  के बाद आगे सतर्क  रहना है कि ऐसा काम फिर  न करें. 

६. अपनी प्यारी माँ की भूख  मिटाने  के  लिए भी  कलंकित कर्म नहीं  करना चाहिए. 

७. अपयश प्राप्त कर्म कर धनी बनने  से  अच्छे कर्म करके निर्धनी रहना   ही श्रेष्ठ बात  है. 

८. बड़े लोग जिस काम को न करना चाहते ,उसे   आर्थिक  लाभ  के  लिए करने पर 
सफलता मिलने  पर  भी दुःख ही प्राप्त होगा. सुख -चैन नहीं। 

९.  दूसरों को दुःख देकर  धन कमाना दुःख का निमंत्रण ही होगा. 
धन का बरबाद होगा; फिर कभी नहीं मिलेगा. 
सुकर्म करके धन खोने पर   फिर  धन मिलेगा ही. 

१० बुरे मार्ग पर धन कमाकर बचत करना , 
मिट्टी के कच्चे घड़े में पानी जमा करने के सामान  है.
सब कुछ बरबाद  हो जाएगा. 
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