Thursday, April 7, 2016

श्रोताओं और दरबार /सभा पहचानकर बोलना. ७११ से ७२० . तिरुक्कुरल -अर्थ भाग --राजनीती

श्रोताओं और दरबार /सभा  पहचानकर  बोलना. ७११  से ७२० . तिरुक्कुरल -अर्थ भाग --राजनीती


१.   चतुर लोग  श्रोताओं और सभा  के लोगों के गुण -ज्ञान पहचानकर  अपने विचार उनके  अनुकूल प्रकट करेंगे.

२. ज्ञानी अपने भाषण को समय और स्थान  के अनुकूल करेंगे.

३. सभा  और श्रोताओं  के गुण और योग्यता के विपरीत भाषण देनेवाले  कुशल वक्ता नहीं बन सकते .

४. बुद्धिमान  हो तो बुद्धिहीन लोगों के बीच अपने को भी बुद्धि  हीन   दिखाना ही उचित  है.  दूध सम  ज्ञान होने  पर भी चूने के सम  ही व्यवहार करना उचित  है.

५. ज्ञानियों  के बीच चुप रहना  सब से अच्छा गुण  है.

६. बहु ज्ञानियों के बीच भाषण देने में गलती करना  ऊंचाई से नीचे गिरने के सामान  है; सावधानी से शब्दों का प्रयोग  करना  चाहिए.

७.  बिना कसर के शब्द प्रयोग ही  शिक्षित लोगों को प्रसिद्धि दिलायेगी.

८. अपने  भाषण को  समझने की शक्ति   जिसमें हैं ,उनके सामने बोलना ऐसा है कि पौधे को बढ़ने पानी सींचना.
९.  बड़े ज्ञानियों की सभा में  बोलनेवाले बुद्धिमानों  को अज्ञानियों  की सभा  में भूलकर भी बोलना  नहीं चाहिए.

१० . ज्ञानियों का अज्ञानियों  की सभा में बोलना अमृत को मोरे में  डालने के समान  है. 

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