Monday, April 25, 2016

तिरुक्कुरल -१०१० से १०२० तक लज्जा शीलता

लज्जाशीलता--अर्थ भाग-गृह शास्त्र-१०११से १०२०


१. जो  नालायक काम है , 'उसे  करना  लज्जाशीलता  है.   स्त्रियों का शरम होना दूसरे किस्म का  है .


२. रोटी,कपडा, मकान  आदि सब केलिए आम भावना है.  लोगों को विशेषता   देनेवाला संकोच ही  है.


३. सभी जीव आहार करके   बल पर जीते हैं.सर्वमान्य है.  मनुष्य. की महानता  उसकी  संकोचशीलता  है.

४. महानों का बडप्पन उनकी महानशीलता है.  वही उनका भूषण है.  वह संकोच भूणण नहीं है तो बडों का महत्व नहीं  है.

   ५.
अपने और पराये अपयश  और निंदा  के  लिए  दुखी होनेवाले  संकोची

  संकोचशीलता  के  निवासी होंगे.

६.  विस्तृत इस संसार में  सुरक्षा के लिए  लज्जा को ही  महान  लोग  अपनाचहारदीवारी मानेंगे.


७.संकोची  अपने प्राण  की रक्षा  के लिए. भी शरमनाक काम  न. करेंगे.मान की रक्षा  के  लिए  जान देंगे.

८.लज्जा का काम करके लज्जित लोग  लज्जा  का  अनुभव. न. करेंगे तो  उनसे  धर्म देवता भाग जाएगा.

९.   एक अपने सिद्धांत  से हटेगा   तो उसके  कुल का अपमान. होगा.  निर्लजज होनेपर सर्वफल बिगड
जाएगा.

१०.   निरलज्ज. आदमी  और कठपतली  दोनों में कोई फर्क नहींहै.









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