Thursday, April 7, 2016

कार्य प्रणाली ---अर्थ भाग -राजनीती -- तिरुक्कुरल ६७१ से ६८० तक

          कार्य प्रणाली ---अर्थ भाग -राजनीती -- तिरुक्कुरल ६७१  से ६८० तक 

१. सोच-विचार करके  एक काम करने तैयार होने के बाद  
जरा भी देरी करना  नहीं चाहिए.
 देरी करना नुकसान उठाना है. 

२.   जो  काम धीरे धीरे करना है ,उसको आराम से कर सकते हैं ; पर 

जो काम तेज़ी  से  करना  है ,उसे तुरंत करना चाहिए.  उसमें विलम्ब ठीक नहीं है .

३.  जहाँ  काम कर सकते है , वहाँ तुरन्त  काम कर चुकना चाहिए .
नहीं  कर सकते है तो जहाँ उचित स्थान मिलेगा ,वहाँ करना चाहिए . नहीं तो उचित उपाय ढूँढ लेना चाहिए. 

४. जो भी काम हो ,शुरू करने के  बाद आधा -अधूरा न छोड़कर पूरा करना चाहिए; 

वैसे  ही दुश्मनी को भी ख़तम करना चाहिए; 
अधूरा  काम  और अधूरी दुश्मनी  अध्-बुझे आग के समान है .
  बाद में  सर्वनाश कर देगा.

५. कार्यप्रणाली  पाँच बातों से सफल होगी ;
वे  है --१.कार्य करने की  उचित सामग्री, २. औजार, ३.समय  ज्ञान , ४. स्थान , ५  उचित  पेशा   आदि.

६. काम  करने की तरीका ,आनेवाली बाधाएं  और मिलनेवाले लाभ  आदि को
सोच -समझकर कार्य करना चाहिए.

७. जो काम करना है ,उससे पूर्व परिचित अनुभवी
कार्य कर्ताओं से भी जानकारी लेनी चाहिए.
 यह भी एक कार्यप्रणाली का एक सोपान  है.

८.  एक काम करते समय ,दूसरे  काम  को भी कर चूकना,
 एक हाथी की सहायता  से दूसरे हाथी को पकड़ने के सामान है.

९. दुश्मनों को भी अपने अनुकूल बनाकर  काम करना ,
दोस्तों से बढ़कर काम को जल्दी पूरा करने में सहायता सिद्धी है .

१० . जो कमजोर हैं ,वे बलवानों के पक्ष में जाकर कार्य करने में समर्थ हो जायेगे ,
जब उनके साथी  भी  बलवानों  से डरने लगेंगे .



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