Friday, April 15, 2016

सेना में सैनिक -गर्व --अर्थ -भाग -तिरुक्कुरल ---७७१ से ७८०

सेना  में सैनिक -गर्व --अर्थ -भाग -तिरुक्कुरल ---७७१ से  ७८० 

१.  एक  वीर  शत्रुओं  को  देखकर ललकारता है कि  
 शत्रुओं  सावधान ! मेरे सेनापति  के विरुद्ध लड़नेवाले  स्मारक स्तम्भ बन गए हैं .
 आपको भी स्मारक पत्थर बनना पड़ेगा. 


२.   एक  दौडनेवाले     खरगोश  पर  तीर चालाकर  मारने  से    बढ़कर  विशेषता    है  
 खुले मैदान  में तीर चलाकर तीर का व्यर्थ  होना .


३. दुश्मनों  से   निर्भय  होकर   वीरता से  लड़ने   का    पौरुष    सराहनीय  है ,
    उससे   बढ़कर     प्रशंसनीय  बात  है , शत्रुओं  को    संकट  में  
मदद करना ;  वही   पौरुष   के शिखर     है. 

४.    सच्चा  वीर  हाथी  पर  बर्छी  फेंककर ,  खाली हाथ  के समय
 अपने शारीर  में घुसी बर्छी  देखकर  खुश  होगा .

५.   रणक्षेत्र  में शत्रुओं  की बर्छी  घुसने पर आँख   का पलक मारना  भी  कायरता है. 

६. एक  वीर  अपने बीते समय में
 रणक्षेत्र  के घावों  को गिनकर 
 सोचेगा  कि किस दिन  में चोट  नहीं पहुंची  वह दिन  बेकार  है. 

७.  चारों  ओर घिरे यश को ध्यान  में रखकर 
 प्राण देने के लिए तैयार  वीर 
अपने पैरों पर वीर कंकण  धारण करने योग्य   वीर   है. 

८. राजा के क्रोध  की परवाह बिना किये लडनेवाला  वीर ही आदर्श  वीर माना जाएगा. 

९.  वीर   शपथ   लेकर   लड़नेवाले   वीरों पर कोई भी   आरोप  लगा  नहीं  सकता.

१०. अपने नेता के आँखों  से आंसू बहाने की वीरता दिखाकर  मरना   श्रेष्ठ  हैं ; 
ऐसी मृत्यु को ललकार मरना श्रेष्ठ  है. 
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