राजाश्रय --६९१ से ७०० अर्थ भाग --तिरुक्कुरल -राजनीती
१. जो राजाश्रित है ,उनको राजा के साथ ऐसा रहना है
राजा के निकट और राजा से दूर. जैसे से आग से सर्दी बचाते हैं.
२. राजाश्रित लोगों को राजा के पसंद लोगों को ही पसंद करना चाहिए. तभी स्थायी पद और संपत्ति मिलेगी.
३. राजाश्रित लोगों को अति सावधानी से रहना चाहिए .
छोटी-सी गलती भी शक भी संकट में दाल देगा.
फिर राजा से सफाई देना अत्यंत असंभव और मुश्किल हो जाएगा.
४.
राजाश्रित लोगों को राजा के सामने दूसरों के कान में बोलना और हँसना भी सही नहीं है. वह संकट प्रदान करेगा.
५. राजाश्रित लोगों को राजा की गोपनीय बातों के बारे में पूछना ,
ध्यान से सुनना मना है.
राजा खुद कहेगा तो ठीक है,नहीं तो यों ही छोड़ना बेहतर है.
६. राजा का संकेत जानकर उनके जवाब अनुकूल समय पर ही घृणित बातों को और पसंद बातों को कहना चाहिए .
७. राजाश्रित को केवल राजा के मन -पसंद बातों को ही बोलना चाहिए.
जो बात राजा को पसंद नहीं ,उन्हें राजा के पूछने पर भी बोलना नहीं चाहिए.
८. राजाश्रित लोगों का व्यवहार राजा के प्रति आदरणीय होना चाहिए ,
यद्यपि राजा उम्र में छोटा हो या निकट रिश्ते का भी हो.
९. राजाश्रित राजा द्वारा निर्मित चतुर और ज्ञानी लोग
राजा के नापसंद कामों को करने का साहस नहीं करेंगे.
१०.
राजाश्रित लोगों को अपनी वरिष्ठता का लाभ उठाकर
अनुचित कार्यों को करने पर बुराई ही होगी.
*********
No comments:
Post a Comment