Thursday, April 28, 2016

तिरुक्कुरल - काम शास्त्र भाग-संन्यास की बात करना- १०३१ से १०४० तक


तिरुक्कुरल -काम -- संन्यास. की   बात  करना--११३१ से ११४०

१. प्रेम के कारण दुखी  युवक. को  संन्यास के सिवा और. कोई. मार्ग नहीं  है.

२.
प्रेमी अपनी विरह वेदना सह. नहीं  सकता ; वह. कहता  है  कि मेरे  शरीर. और प्राण तडपने के  कारण  गृह -त्याग   कर दूँगा .इसमें शरम की बात नहीं है.

 ३.  प्रेमी  कहता  है  कि  मुझमें  अति  पौरुष और लज्जाशील. होने  पर. भी  प्रेम के  कारण

प्रेयसी  से   अलग  रहने  से संन्यास ग्रहण करने  तैयार हो गया.

४. प्रेम के बाढ. में  इतनी शक्ति  है  कि  वह  पौरुष 'लज्जा  के  पोत. को बहाकर ले चलता  है.


५. महीन साडियाँ पहनी  मेरी  प्रेयसी  प्रेम. के  साथ  संन्यास के विचार भी दे चली  है.

६. प्रेयसी  के  कारण  मुझे नींद नहीं आती ; अतः अर्द्ध रात्री  में  भी  संन्यास ग्रहण के बारे में सोच रहा  हूँ.

७. बहुत अनंत. काम. रोग. में  तडपकर भी  स्त्री गृह -त्याग. की  बात सोचती  नहीं है. यही नारी जन्म का  बडप्पन. है.

८. नारी दयनीय है, असंयमी है  आदि  बातों  पर ध्यान  न  देकर.
  बिना छिपे प्रकट होना  ही  काम और प्यार है.

९.  मेरे प्रेम. की  बात और किसी को मालूम  न होना चाहिए. इस के डर. से प्ेम गली  में घूम रहा है.

१०.  प्रेम के रोग. से  जो  पीडित. नहीं  है वे ही प्रेमी  को  देखकर  खिल्ली उडाएँगे.

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