Wednesday, April 13, 2016

सेना --सेना का महत्त्व ---राजनीती --अर्थ भाग --तिरुक्कुरल --तिरुवल्लुवर. --७५१ से ७६० तक.

सेना --सेना  का  महत्त्व ---राजनीती --अर्थ भाग --तिरुक्कुरल --तिरुवल्लुवर. --७५१  से  ७६० तक. 

१.  राजाओं  की सभी दौलतों में श्रेष्ठ  दौलत   शक्तिशाली विजय दिलानेवाली सेना  है.  सभी तरह  की सेनाओं ( स्थल ,वायु ,जल )से होनी चाहिए  और बाधाओं  को देखकर  निडर रहना चाहिए. 

२. युद्ध  में  हार  की संभावना होने  पर  भी ,
सैनिक बल  कम  होने  पर  भी ,
  बाधाओं से न डरने  की शक्ति परम्परागत देशवासी सेना में ही होगी. 

३. चूहे मिलकर ध्वनियाँ निकलने  पर ,
नाग सर्प के फुफकार  के  सामने टिक नहीं सकते.
वैसे  ही  वीरों की ललकार  के सामने कायर भाग जायेंगे.

४.    सेना  वही  है ,जो शत्रु के सामने निर्भय हो,
शत्रुओं के षड्यंत्र और ठग से परिचित हो ,नाश न होने देता हो ,
कभी आतंकित न होता हो. 

५. यम भगवान  खुद लड़ने  आये ,तब  भी निडर रहने की शक्ति जिसमें  है ,वही आदर्श सेना है.

६.  एक  सेना  के बढ़िया  चार   गुण  हैं --१. वीरता ,२. माँ  मर्यादा,३.पूर्वजों  का  अनुकरण ४, नेता पर विश्वास और विश्वसनीय  सैनिक .

७.  रणक्षेत्र  में पहले सामना  करने  वाली  शत्रू   सेना  को  हराना ही वीर सेना के प्रमुख लक्षण है.

८. युद्ध कौशल  और शक्ति  से बढ़कर सेना का पंक्तिबद्ध   शृंगार  अति प्रधान  है.

९.  सेना  में जरा भी नुकसान  न  होकर , नेता से नफरत  और गरीबी रहित  सेना ही बढ़िया है. श्रेष्ठ सेना है.

१० . अतुलनीय वीरता के  वीर  और सेना  होने  पर  भी  योग्य सेनापति  रहित  सेना  बेकार  है. 

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