Saturday, April 16, 2016

मित्रता ---मित्र -शास्त्र --७८१ से ७९० तक .

मित्रता  ---मित्र -शास्त्र --७८१ से  ७९०  तक . 
१.   मित्रता  बनाना   दुर्लभ  है; दोस्ती  बनाने  के  समान  
और  कोई  काम  नहीं  है. 

२.  ज्ञानियों   की दोस्ती अमावास्या के बाद के शशि कला के  सामान बढ़कर  पूर्णिमा  चाँद  जैसे  बढ़ता रहेगा.    
मूर्खों   की   दोस्ती पूर्णिमा के बाद के चाँद के सामन 
 घटकर ओझल हो जाएगा. 

३. अच्छे  ग्रंथों  के  पढ़ते -पढ़ते  सुख देगा ;
 वैसे  ही अच्छे दोस्तों  के मिलते -जुलते रहने  से सुख  बढेगा. 

४. दोस्ती हँसकर खुशी मनाने  के लिए  नहीं , 
दोस्त बुरे मार्ग पर चलने पर  चिढ़कर   
सुमार्ग पर ले जाने  के लिए  भी है. 

५. दोस्ती  के  लिए संपर्क और मिलने -जुलने  से 
बढ़कर समान  भावों का होना काफी  है. 
६. चेहरे  में  हँसी  दिखाना  दोस्ती  नहीं   है,
ह्रदय   से प्रेम करना ही दोस्ती है. 

७.दोस्त को बद्मार्ग पर  जाने से  रोककर  सद्मार्ग  पर  लाना  .
और दुःख के समय  साथ  देना  ही सच्ची  दोस्ती  है. 
८.  कमर से धोती गिरने  पर जैसे तुरंत  हाथ पकड़कर बाँध लेता   है .
वैसे  ही दोस्त के दुःख  देखकर मदद  करना  ही  सच्ची  दोस्ती  है. 
९. दोस्ती सच्ची स्तिथि है ,कभी मतभेद  न  होना ,जितना  हो सके उतनी मदद करना. 
१०. वे  मेरे लिए इतने प्यारे  हैं ,मैं  उसकेलिए  इतना प्यारा हूँ 
ऐसी   कृत्रिम  झूठी प्रशंसा  करने  से  उस दोस्ती में  कमी आजायेगी. 

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