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Friday, April 29, 2016

तिरुक्कुरळ --संध्या का विलाप-काम भाग-१२२१से१२३०

 तिरुक्कुरळ --संध्या  का  विलाप-काम भाग-१२२१से१२३०

१. प्रेमी  से बिछुडकर रहने से  संध्या! तू  महिलाओं केप्राण लेने  के  लिए. आते  हो.

२. अंधकार लानेवालेी संध्या! कया तेरे प्रेमी  भी मेरे प्रेमी  की  तरह निर्दयी है ?

३.मेरे  प्रेमी  के रहते  संध्या !तू डरती हुई  पीला  पडकर आई थी. अब मैं  विरह. वेदना  से दुखी हूँ, तेरा  आगमन. मेरा दुख बढा रहा  है.

४. प्रेमी के न होने से  संध्या  मेरी  हत्या करने आ रही  है.

५. शाम को प्रेमियों का दुख. बढ रहा  है. हमने दिन के हित में क्या किया  है? संध्या  के अहित मं क्या किया  है ,पता  नहीं  है.

६.  मेरे  प्रेमी  के बिछुडकर जाने  के  पहले अनुभव. नहीं किया कि संध्या बहुत दुखप्रद. है.

७. काम का  रोग. दिन. में कली  के रूप. में है और शाम को विकसित होकर फूल बन  जाती  है.

८. पहले  ग्वाले  के बाँसुरी की ध्वनी मधुर. लगती थी. अब. प्रेमी  के बिछुड. जाने  से  गवीले की  मुरली आग बनकर मेरी हत्या करने आनेवाली सेना  की  तरह कष्ट दे  रहा  है.

९. बुद्धि भ्रषट करनेवाली  संध्या  मुझे ऐसा  लगता  है  कि सारे शहर. को  दुख दे रही  है.

२०.
मेरे प्रेमी के बिछुडते  ही  संध्या  की माया मुझे  दुख देकर. मार. रही  है.

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