Sunday, April 24, 2016

शालीनता - तिरुक्कुरल - ९९१से १००० तक - अर्थ भाग -

शालीनता ९९१ से १०००  तिरुक्कुरल।
१.   जो भी हो उनसे  सरल व्यवहार करने लगेंगे तो  शालीनता के गुण पाना अासान हो जाएगा।
२. प्यार और   ऊँचे कुल के गुणों का पालना ही शालीनता है।
३. बाह्य रूप  सौंदर्य में शालीनता नहीं है, अच्छे गुणों में ही शालीनता प्रकट होगी।
४.जो   न्याय पर दृढ रहते हैं और  दूसरों की भलाई  में  लगते हैं ,उनकी शालीनता की प्रशंसा  संसार करेगा।
५.  हँसी-खेल में भी दूसरों को अपमानित करना दुखदायक है। दूसरों के स्वभाव जानकर  सद्- व्यवहार  करनेवालों  को शत्रु भी  हँसी नहीं उडाएँगे।
६.  सांसारिक व्यवहार शालीन  लोगों के पक्ष में  होना चाहिए। नहीं तो शालीनता मिट्टी में मिल जाएगी।
७. आरे के समान तेज बुद्धी  होने पर भी  मनुष्यता के गुण न होने पर मनुष्य जड ही माना जाएगा।
८.  दोस्ती के नालायक बुरे लोगों के साथ शालीन व्यवहार न करना   शालीनता परवकलंक है।
९.दूसरों से मिलजुलकर  रहने में जो आनंद का महसूस न करेंगे, वे दिन के प्रकाश में भी अंधेरे का महसूस करेंगै।
१०. जैसे बर्तन लकी सफाई ठीकलनहीं तो दूध बिगड जाता है, वैसे ही जिस में  गुण और शालीनता नहीं है,  उसकी संपत्ती नष्ट हो जाएगी।

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