Tuesday, April 26, 2016

गरीबी--अर्थ भाग - तिरुक्कुरल- १०१०४२ से १०५०

गरीबी --अर्थ भाग -तिरुक्कुरळ -१०४१ से १०५०

१. कोई. पूछें  कि  गरीबी सम  दुखप्रद क्या है ?   जवाब यही है  कि गरीबी सम दुखदायक गरीबी ही  है.

२. पापी दरिद्र का संताप वर्तमान और भविष्य में भी कष्टदायक. है. गरीबी को कभी संतोष नहीं होगा.गरीबी को इहलोक. में भी सुख नहीं, परलोक में भी सुख नहीं  मिलेगा.

३. कोई गरीबी  में  लालची  होगा  तो वह अपमान का  पात्र बनेगा. उसका और उसके खानदान का यश  भी  धूल में मिल जाएगा.

४. गरीबी उच्च कुल में जन्मे व्यक्ति के मुख से भी अपशब्द अभिव्यक्त करने   का विवश कर देगा.

५. गरीबी के आने  पर  कई प्रकार के दुख  उगने लगेंगे.


६. सदुपदेश और सुवचन  गरीब सुनाएगा  तो कोई नहीं सुनेगा. वे  लाभप्रद नहीं होंगे.

७. जो गरीबी  के  कारण  अपना धर्म पथ छोड. देता  है ,उसको उसकी माँ  भी  नहीं चाहेगी.

८.
गरीब यही  चाहेगा   और.  तरसेगा कि हत्यारे जैसे की गरीबी    मिट. जाना  चाहिए.

९. एक मनुष्य आग की  गर्मी  सहकर  सो  सकता  है, पर. गरीबी अग्नी सहकर    सोना  संभव  है.

१०.  बगैर खाद्य  सामग्री  के जीनेवालों की गरीबी सहकर जीनेवालों अपने को तजकर जीनेवालों से भोजन का बरबाद  ही  होगा ; उनका जीना धरती का बेकार बोझ. है.


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