Thursday, April 21, 2016

मद्यपान न करना --अर्थ -भाग -तिरुक्कुरल --मित्र शास्त्र--९२१ से ९३० तक

मद्यपान  न  करना --अर्थ -भाग -तिरुक्कुरल --मित्र शास्त्र--९२१ से ९३०  तक

१.  जो  नशीली शराब  पीते  हैं ,वे किसीका  आदर  नहीं   पा सकते ; कोई भी उसे देखकर न  डरेगा.वे  अपयश  का  पात्र  बनेंगे।

२. नशीली चीजें नहीं  लेना  चाहिए।   जो सज्जनों  से बदनाम  पाना  चाहते  हैं ,वे  शराब  पी सकते  हैं.

३.पियक्कड़  बेटे को खुद उसकी माँ नहीं चाहेगी और उसके अपराधों को माफ  न  करेगी तो दूसरे कैसे चाहेंगे।
सब के घृणा का पात्र बनेगा
५.पियक्कड़  के  अपराधी    निर्लाजा  होंगे ; शर्म  नामक  भद्र   स्त्री   भाग  जायेगी .
६.  एक  बेहोश की हालत  में रहने नशीली चीज़ें  लेना अत्यधिक  मूर्खता  है.
७. आड़ में मद्यपान  करने  पर  भी उसकी आँखे
 उसे दिखा  देगी . उसने  पिया  है.
 बेहोशी आँखों  के  घूमने  से वे निंदा  के  पात्र  बनेंगे.  

८. कोई  भी   छिपा  नहीं  सकता  कि उसने पिया  नहीं  है; नशे में  कह देगा कि  उसने  पिया  है.

९.  पियक्कड़ों  को सुधारने उपदेश  देना  और मशाला  लेकर
 पानी में डूबे मनुष्य की तलाश  करना  दोनों बराबर  है ; अर्थात बेकार है.
१० . एक  पियक्कड़  ने  जब  मधु  नहीं  पिया  है ,तब  पीनेवाले  के  बद -व्यवहार  देखकर  भी सुधरता  नहीं .
 यह  क्यों  पता  नहीं  है. 

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