Thursday, April 28, 2016

tirukkural - काम - शिकायत -- ११६१से ११८०

तिरुक्कुरळ -- काम --शिकायत-११६१. से ११७०. तक

 १.  जैसे स्त्रोत का पानी निकालते -निकालते  बढता रहता  है ,वैसे  ही जितना काम की इच्छा  रोग   छिपाते है, उतना  बढता ही  रहेगा.


२.  प्यार के  रोग छिपा भी न सका; उसके  कारक  प्रेमी से लज्जा के कारण कह भी न सका.

३. काम के रोग सह न सकी. मेरी जान काबडी बनकर  एक ओर लज्जा और दूसरी  ओर. काम रोग. लटक रहा  है.

४. काम रोग समुद्र के समान गहरा और विस्तार है  , उसे  पार   करने  जल- पोत नहीं मिल रहा  है.

५. मित्रता  में ही  विरह वेदना देनेवाले  प्रेमी ,पता नहीं दुश्मनी  में  कितना दुख. देंगे.

६. प्यार का सुख समुद्र  के  समान. बडा  है.उसका दुख समुद्र से  बडा  है.

६. इश्क के दुख. सागर में तैरकर  भी  उसके  किनारे  देख  न सकी. अर्द्ध रात्री  में  भी अकेली रहती  हूँ.

७. रात का समय दयनीय  है. सब. को सुलाकर अकेला  है  विरह से दुखी मैं  ही  उसका  साथ  दे रही  हूँ.

८. पति  के  बिछुडने  के दुख  से विरह वेदना    के   कारण रात   लंबी  -सी  दीखती  है,  वह विरह. का दुख असहनीय. है.

९. जहाँ प्रेमी रहते  हैं ,वहाँ  मन. तो  जाती  है , पर आँखें  न जा सकती, इसलिए अस्रु बहाती रहती  है.

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