शब्द =शक्ति ---अर्थ भाग --६४१ से ६५० तक --तिरुक्कुरल --तिरुवल्लुवर
१. शब्द -शक्ति अभिव्यक्ति ही श्रेष्ठ संपत्ति है. उसके बराबर की संपत्ति और कोई नहीं है.
२. बनना -बिगड़ना शब्द के आधार पर है; अतः बोलते समय सोच -समझकर सावधान से बोलना अपने विचारों की अभिव्यक्ति करनी चाहिए.
३. श्रोताओं को आकर्षित करके अपने वश में करना
और जिन्होंने न सुना,
उनको भी सुनने का उतावला करना ही शब्द शक्ति है .
४. शब्द को खूब सोचकर
शब्द का महत्व जानकर
बोलने से बढ़कर और कोई बढ़िया धर्म नहीं है.
५. जो शब्द हम बोलते हैं ,उससे बढ़कर दूसरा शब्द नहीं होना चाहिए ,
ऐसे शब्द बोलना है ,जिसे दूसरे शब्द नहीं जीत सकते.
६. दूसरों के लिए लाभप्रद शब्द बोलना ,
दूसरों के लाभप्रद शब्दों से फायदा उठाना ,
ज्ञानियों की विशेषता है.
७. ऐसे ज्ञानियों को हराना असंभव है
जिनमे अपने विचारों को उचित शब्दों में अभिव्यक्ति करने की क्षमता ,
दूसरों को मनाने -मनवाने का सामार्थ्य , निडर और चुस्त आदि गुण हो.
८. अपने सिद्धांतों को सिलसिलेवार, सुन्दर और प्यार भरे शब्दों में
प्रकट करनेवाले निपुण लोगों की आज्ञाओं को
संसार मानेगा.और कार्य में लग जाएगा।
९. निर्दोष चन्द शब्दों से जो अपने विचार प्रकट करने की और समाझाने की
क्षमता नहीं रखते ,
वे ही कई शब्दों को दोहराते रहेंगे.
१०. अपने सीखे ग्रंथों को दूसरों को समझाने में जो असमर्थ होते हैं ,
वे ऐसे फूलों के गुच्छे जैसे हैं ,जिनमे सुगंध न हो.
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ऐसे शब्द बोलना है ,जिसे दूसरे शब्द नहीं जीत सकते.
६. दूसरों के लिए लाभप्रद शब्द बोलना ,
दूसरों के लाभप्रद शब्दों से फायदा उठाना ,
ज्ञानियों की विशेषता है.
७. ऐसे ज्ञानियों को हराना असंभव है
जिनमे अपने विचारों को उचित शब्दों में अभिव्यक्ति करने की क्षमता ,
दूसरों को मनाने -मनवाने का सामार्थ्य , निडर और चुस्त आदि गुण हो.
८. अपने सिद्धांतों को सिलसिलेवार, सुन्दर और प्यार भरे शब्दों में
प्रकट करनेवाले निपुण लोगों की आज्ञाओं को
संसार मानेगा.और कार्य में लग जाएगा।
९. निर्दोष चन्द शब्दों से जो अपने विचार प्रकट करने की और समाझाने की
क्षमता नहीं रखते ,
वे ही कई शब्दों को दोहराते रहेंगे.
१०. अपने सीखे ग्रंथों को दूसरों को समझाने में जो असमर्थ होते हैं ,
वे ऐसे फूलों के गुच्छे जैसे हैं ,जिनमे सुगंध न हो.
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