Search This Blog

Wednesday, April 27, 2016

संभोग सुख -गृह -शास्त्र -तिरुक्कुरळ -११०१ से १११०

संभोग आनंद - गृह -शास्त्र -११०१  से१११०


१. इस  चूडियाँ पहननेवाली   रूपवती  में  पाँ च प्रकार के पंचेंद्रिय  सुख 

(स्पर्श ,देख, सूंघ, सुन, जीभ -स्वाद आदि ) मिल जाती  है.

२. रोग चंगा करने कई दवाएँ  होती  हैं; पर प्रेम रोग के इलाज. की एक. मात्र  दवा उसकी प्रेमिका ही है.

  ३.  क्या अपनी प्रेमिका  के कंधों पर सोने  के सुख से कमल नयन के जग का सुख बडा  है ?

४. हटने से गर्मी निकट आने  से ठंड देने वाले तन को प्रेमिका कहाँ से  पाती  है?

५. केसों में फूलों से अलंकृत स्त्री की बाहें जैसे इच्छुक चीजें मिलने पर आनंद होता  है, वैसे ही आनंद प्रदान करता है.ै,अतः 

६. 
प्रेयसी के बाहों के स्पर्श से अत्यंत आनंद मिलता है  प्राणों में उत्कर्ष होता हैै अतः उसकी बाँहें अमृत. से बनायी होगी.

७. सुंदर गोरे शरीर की स्त्री से आलिंगन करने के सुख अपने मेहनत से कमाये धन को बाँटकर खाने के सुख के बराबर होता  है.

८. प्रेमियों के सुख की चरम सीमा तब  होती हैं,जब दोनों के आलिंगन केबीच हवा  भी प्रवेश नहीं कर  सकती.

९. रूठना रूठने के बाद संभोग करना  प्रेम मय जीवन का आनंद होता  है.

१०. आम के रंगवाली  रूपवती के संभोग के हर. बार. ऐसा लगता है   जैसे ग्रंथों को पढने के बाद भी पूर्ण ग्ञान न मिल रहा  है. 




No comments:

Post a Comment