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Friday, April 22, 2016

तिरुक्कुरल -अर्थ भाग --दवा -९४१ से९५०

तिरुक्कुरल --अर्थ भाग -दवा -९४१  से  ९५० 

१. वाद ,पित्त ,शिलेत्तुम  इन  तीनों  में 
एक की कमी से   या  बढ़ने  से  रोग  होगा. 
२. खाने  के  बाद पाचन  क्रिया  के  लिए  
समय देकर खानेवालों को रोग  नहीं  होगा. 
३. जो खाते  हैं ,वह  जीर्ण होने  के  बाद ,
खुराक को परिमाण के अनुसार संतुलन करके  खाना 
लम्बी आयु जीने का मार्ग  है. 
४. जो  खा चुके  हैं ,वह पचकर  ,
खूब  भूख  लगने  पर 
खाद्य-पदार्थ को पहचानकर 
शारीर के अनुकूल खाना चाहिए. 

५. शरीर   के अनुसार उचित भोजन  सुनकर 
 मित भोजन खाने  से  रोग  से  बच  सकते  हैं। 
६. मित  भोजन  करने वाले अधिक काल  जीना 
अधिक भोजन करने वाले  जल्दी चल बसना  संसार में देख सकते  हैं 

७.  पेट  भरने  के  लिए खाना हैं ; अधिक मात्रा में  खाने  से शरीर बीमारी  के  केंद्र  बन जायेगा. 
८. रोग  क्या  हैं ?रोग  आने  के कारण  क्या  हैं ? 
उचित दवा  या  इलाज  क्या  है ? 
आदि निदान  करके  शारीर स्वस्थ होने  की दवा लेनी चाहिए. 

९. रोगी  की उम्र ,रोग  के गुण , इलाज  के समय  आदि जानकार  ही  
चिकित्सकों  को  इलाज  करना  चाहिए. 
१०.  इलाज चार  तरह    से  करते  हैं --१.रोगी  २. चिकित्सक ३, दवा ४. दवा देनेवाले. इन चारों को आपसी सम्बन्ध  है.  

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