खेती -अर्थ भाग - तिरुक्कुरल -१०३१से१०४० तक
१. संसार के पेशों में प्रधान खेतीबारी है. कई पेशों के दौरान फिर घूम. फिरकर एक पेशे पर ध्यान आता है तो वह. है खेती.
२. कई प्रकार के धंधे करनेवालों की भूख मिटाने का पेशा खेती करना है; अत:खेती ही सर्व श्रेष्ठ धंधा है.वही संसार का भार ढोने का धुरी है.
३. खेती करके जीनेवाले ही श्रेष्ठ. जीवन जीनेवाला है: बाकी धंधे करनेवाले किसानों की प्रार्थना करके जीनेवाले हैं.
४.
कई. राज शासन के छत्र-छाया को अपने शासन. के छत्र-छाया के अधीन लाने की शक्ति क़िसानों में है.
५.
५. खुद खेती करके खानेवाले आत्म निर्भर हैं; वे खुद. खाएँगे और बिना छिपाये दूसरों को खिलाने में समर्थ होंगे.
६. सभी इच्छाओं को तजकर तपस्या करनेवाले तपस्वी भी खेती नहीं छोड सकता'
७. लगभग पैंतीस ग्राम की मिट्टी को ८.७५ ग्राम सखी मिट्टी बनाएँगे तो बगैर खाद के अनाज उत्पन्न होंगे.
८.खेत जोतने से बढिया काम. है खाद देना, सिंचाई करना और निराना.
९. किसान को हर. दिन अपने खेत देखने जाना है, नहीं तो उसकी पत्नी जैसे खेत रूठेगा.
१०. धन नहीं है कहनेवाले आलसी रंक को देखकर खेत हँसेगा.अर्थात खेती करने पर कोई भी गरीब नहीं है.
१. संसार के पेशों में प्रधान खेतीबारी है. कई पेशों के दौरान फिर घूम. फिरकर एक पेशे पर ध्यान आता है तो वह. है खेती.
२. कई प्रकार के धंधे करनेवालों की भूख मिटाने का पेशा खेती करना है; अत:खेती ही सर्व श्रेष्ठ धंधा है.वही संसार का भार ढोने का धुरी है.
३. खेती करके जीनेवाले ही श्रेष्ठ. जीवन जीनेवाला है: बाकी धंधे करनेवाले किसानों की प्रार्थना करके जीनेवाले हैं.
४.
कई. राज शासन के छत्र-छाया को अपने शासन. के छत्र-छाया के अधीन लाने की शक्ति क़िसानों में है.
५.
५. खुद खेती करके खानेवाले आत्म निर्भर हैं; वे खुद. खाएँगे और बिना छिपाये दूसरों को खिलाने में समर्थ होंगे.
६. सभी इच्छाओं को तजकर तपस्या करनेवाले तपस्वी भी खेती नहीं छोड सकता'
७. लगभग पैंतीस ग्राम की मिट्टी को ८.७५ ग्राम सखी मिट्टी बनाएँगे तो बगैर खाद के अनाज उत्पन्न होंगे.
८.खेत जोतने से बढिया काम. है खाद देना, सिंचाई करना और निराना.
९. किसान को हर. दिन अपने खेत देखने जाना है, नहीं तो उसकी पत्नी जैसे खेत रूठेगा.
१०. धन नहीं है कहनेवाले आलसी रंक को देखकर खेत हँसेगा.अर्थात खेती करने पर कोई भी गरीब नहीं है.
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