Friday, April 1, 2016

संकट मोचन --तिरुक्कुरल -- अर्थ भाग --६२१ से ६३० तक

संकट मोचन --तिरुक्कुरल -- अर्थ भाग --६२१  से ६३०  तक 

१. मनुष्य जीवन में जब संकट आता है ,तब हँसना चाहिए; 
मन चंचल न हो; तभी विजय मिलेगी.
२.  बाढ़ सा दुःख  आने पर उससे बचने और समाधान मन में हो तो   बुद्धिमानों  को दुःख से मुक्त होना  अति सरल. 
३. जो दुःख के आते ही दुःख दूर करने में दृढ़ होते हैं ,
मन को कलंकित नहीं  करते ,वे जरूर विजयी बनेंगे.
४.  प्रयत्नशील  मनुष्य   के लिए सफलता सरल  है; 
जब  बाधाएं  होती हैं ,तब बैलों के समान 
 गाडी खींचकर आगे बढ़ने का प्रयाण जारी रखना चाहिए.
५.  जो लगातार आनेवाले दुखों  से कलंकित  नहीं  होता ,
उसके दुःख अपने  आप दूर हो जायेंगे .
६. जो  संपत्ति के बढ़ते समय उसकी  सुरक्षा की चिंता  नहीं  करते ,
क्या वे संपत्ति के घटते देख दुखी होंगे ; कभी नहीं.
७.  बड़े लोग जो दुख को सहज मानते  हैं ,वे कभी दुःख  से पीड़ित  न  होंगे.
८. जो सुख  की खोज  में  नहीं जाता,वह दुःख के आने पर उसकी परवाह  नहीं  करता.
९. जो सुखी हालत  में व्यर्थ आडम्बर ऐयासी -उचल -कूद नहीं  करता ,
वह दुःख के आने पर कभी दुखी नहीं  होता;
१०. जो दुःख  को  ही अपना सुख मानता है , 
उसकी  प्रशंसा  और  तारीफ  उसके  दुश्मन  भी करेंगे.

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