Wednesday, April 6, 2016

पुरुषोचित प्रयास --अर्थ भाग --६११ से ६२०

पुरुषोचित प्रयास --अर्थ भाग --६११ से ६२० 

१.  हमें यह सोचना ठीक नहीं  है कि यह  काम हम नहीं कर सकते .
मर्दाना प्रयत्न से सभी काम को  सफलता पूर्वक  कर  सकते  हैं.

२. जो  भी  काम  हो अपूर्ण छोड़ना सही नहीं है; काम  को अधूरा छोड़ने पर संसार  भी तुमको  छोड़ देगा.
३. प्रयत्न के प्रबल  स्थिति में  ही  परोपकार का श्रेष्ठ गुण होगा.

४. अप्रयत्नशील  मनुष्य दान  आदि 
परोपकार में  लगना ऐसा है ,
वैसा जैसे  तलवार  ही  जिसको पकड़ने नहीं  आता
 वह युद्ध क्षेत्र में तलवार घुमाने लगता हो .
५. सुख की चाह के बिना ,  स्वार्थ रहित कार्य करनेवाले अपने नाते -रिश्तों के  भार ढोनेवाले खंभ  के समान होगा.

६.प्रयास  ही  सब विजय का मूल है. 
प्रयत्न ही संपत्ति बढायेगी.
प्रयत्न  न करने पर गरीबी घेरेगी. 
७. प्रयत्नशील मनुष्य को लक्ष्मी  देवी  कहन , 
अप्रयात्नशील मनुष्य को ज्येष्ठा  देवी कहना 
लोक व्यवहार  में है. 
८. शारीरिक अंगों  की कमी कमी नहीं  है; 
बिना प्रयत्न के चुप रहना ही मनुष्य की कमी है.
भाग्य की कमी प्रयास हीन लोगों के लिए है.
९. जो काम भगवान से न होगा ,
वह काम प्रयत्न के द्वारा हो जाएगा. 
शारीरिक और मानसिक प्रयत्न  
भाग्य हीन को भी भाग्यवान बना देगा. 
१०. कहेंगे कि विधि की  विडम्बना टाल  नहीं सकते. 
पर प्रयत्न विधि को भी बदलकर सफलता प्रदान  करेगा. 
************ 


No comments:

Post a Comment