Saturday, April 16, 2016

मित्रता --अर्थ -भाग -मित्रता -शोध , ७९१ से ८००

मित्रता  --अर्थ -भाग -मित्रता -शोध ,  ७९१  से ८०० 
१.बिना सोचे -समझे -जाने -विचारे  मित्रता
 अपनाने से  असाध्य कष्ट  होगा .
फिर मित्र से छूटना  मुश्किल  है . 

२. बिना  सोचे -समझे -विचारे  मित्र बनाने  से  
जान का  भी खतरा हो सकता है. 

३. किसी को  मित्र बनाने  के  पहले  जान  लेना चाहिए  कि 
उसका कुल कैसा है ?उसका  परिवार  कैसा है ?उसके अपराध  क्या है ?
उसके साद-गुण  क्या है  ? आदि .

४. उच्च कुल में  जन्म  लेकर  अपयश  और अपमान से डरनेवाले और शर्मिंदा होनेवाले को  मोल लेकर  मित्र बना लेना चाहिए. 
५. ऐसे मित्र को चुन लेना  चाहिए 
 जो गलती करने से सुधारने कठोर व्यवहार  करता  है, सांसारिक 
व्यवहार जानकार चलता  है. 
६. हमें दुःख  से एक लाभ होता है. तभी हम सच्चे मित्रों का पता लगेगा. 
७. बुरे   और  बेवकूफ  मित्र को पहचानकर  मित्रता तजने  में  ही भलाई है .८. हमें  हतोत्साहित बातों  को सोचना नहीं  चाहिए.
दुःख में साथ   न  देनेवाले दोस्त को छोड़  देना  चाहिए. 

९.  जिसने हमें  बुराई की ,उसको मरते वक्त सोचने  पर भी 
अधिक  पीड़ा होगी .

१०. दोष रहित मनवालों  से  ही मित्रता बनानी चाहिए.
दोषित मित्रों को पैसे खर्च  करके  या देकर छोड़ने  में ही भला है. 


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