कर्म -कौशल -दृढ़ता ---तिरुक्कुरल --६६१ से ६७० तक. --अर्थ -भाग
१. एक कर्म-कौशल दृढ़ता का मतलब है - कर्म करने की मानसिक दृढ़ता .
बाकी सब इससे भिन्न है.
२. कर्म -कौशल का मतलब है ,
बाधाओं के पहले ही बाधाएं मिटाना ;हल करना आदि;
फिर भी बाधाएं आ जाती है तो
मन को दृढ रखना और मानसिक शिथिलता आने न देना.
यही कर्म-कौशल सम्बन्धी ज्ञानियों का कथन है.
३.. कार्य कौशल दृढ़ता का मतलब है
जो भी कार्य हो ,
उसे करके दिखाने के पहले प्रकट न करना .
बीच में अभिव्यक्त करें तो कर्म कर चुकने में बाधाएं होंगी.
४. यह कहना आसान है कि कर्म को ऐसा करना --वैसा करना.
लेकिन कहेनुसार करना मुश्किल है .
५. कार्य -कौशल में नामी बड़े लोगों की कर्म -दृढ़ता
शासकों के आकर्षण बनकर
अधिक आदरणीय और सराहनीय बनेगा.
६. एक काम करने के विचार में जो दृढ़ रहते है ,
वे उस कार्य को जैसे सोचते हैं ,वैसे करने में सफल होते हैं,
७. बड़े रथ के चक्र घूमने के लिए जैसे अक्ष दंड छोटे होने पर भी आवश्यक है ;
वैसे ही बड़े कर्म करने छोटे लोगों की भी आवाश्यकता है;
अतः छोटे आकर देखकर अपमानित करना उचित कर्म कौशल नहीं है.
८. सोच -विचार करके एक काम करने में लगने के बाद
साहस के साथ बिना देरी किये जल्दी पूरा करना चाहिए.
यह भी कार्य कौशल -दृढ़ता है.
९. जो भी काम करने में लग जाते हैं ,उसका सफल अंत में सुखदायक ही होगा.
अतः कर्म करते -करते दुःख आने पर
मन में शिथिलता को स्थान न देकर ,
दृढ़ता से आगे बढ़ना चाहिए .
१० . अन्य क्षेत्रों में दृढ़ रहने पर भी ,कर्म क्षेत्र में दृढ़ता न होने पर ,कर्म -कौशल न होने पर संसार तारीफ न करेगा.
१. एक कर्म-कौशल दृढ़ता का मतलब है - कर्म करने की मानसिक दृढ़ता .
बाकी सब इससे भिन्न है.
२. कर्म -कौशल का मतलब है ,
बाधाओं के पहले ही बाधाएं मिटाना ;हल करना आदि;
फिर भी बाधाएं आ जाती है तो
मन को दृढ रखना और मानसिक शिथिलता आने न देना.
यही कर्म-कौशल सम्बन्धी ज्ञानियों का कथन है.
३.. कार्य कौशल दृढ़ता का मतलब है
जो भी कार्य हो ,
उसे करके दिखाने के पहले प्रकट न करना .
बीच में अभिव्यक्त करें तो कर्म कर चुकने में बाधाएं होंगी.
४. यह कहना आसान है कि कर्म को ऐसा करना --वैसा करना.
लेकिन कहेनुसार करना मुश्किल है .
५. कार्य -कौशल में नामी बड़े लोगों की कर्म -दृढ़ता
शासकों के आकर्षण बनकर
अधिक आदरणीय और सराहनीय बनेगा.
६. एक काम करने के विचार में जो दृढ़ रहते है ,
वे उस कार्य को जैसे सोचते हैं ,वैसे करने में सफल होते हैं,
७. बड़े रथ के चक्र घूमने के लिए जैसे अक्ष दंड छोटे होने पर भी आवश्यक है ;
वैसे ही बड़े कर्म करने छोटे लोगों की भी आवाश्यकता है;
अतः छोटे आकर देखकर अपमानित करना उचित कर्म कौशल नहीं है.
८. सोच -विचार करके एक काम करने में लगने के बाद
साहस के साथ बिना देरी किये जल्दी पूरा करना चाहिए.
यह भी कार्य कौशल -दृढ़ता है.
९. जो भी काम करने में लग जाते हैं ,उसका सफल अंत में सुखदायक ही होगा.
अतः कर्म करते -करते दुःख आने पर
मन में शिथिलता को स्थान न देकर ,
दृढ़ता से आगे बढ़ना चाहिए .
१० . अन्य क्षेत्रों में दृढ़ रहने पर भी ,कर्म क्षेत्र में दृढ़ता न होने पर ,कर्म -कौशल न होने पर संसार तारीफ न करेगा.
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