Wednesday, April 6, 2016

कर्म कौशल -दृढ़ता --तिरुक्कुरल --६६१ से ६७० -अर्थ-भाग

 कर्म -कौशल  -दृढ़ता ---तिरुक्कुरल --६६१  से ६७० तक. --अर्थ -भाग

१.  एक कर्म-कौशल दृढ़ता का मतलब है - कर्म करने की   मानसिक दृढ़ता .
बाकी सब इससे भिन्न है.


२. कर्म -कौशल का मतलब  है ,
 बाधाओं  के पहले  ही बाधाएं मिटाना ;हल करना आदि;
 फिर भी बाधाएं  आ जाती है तो
 मन  को दृढ  रखना और मानसिक शिथिलता आने  न देना.
यही  कर्म-कौशल सम्बन्धी ज्ञानियों  का कथन  है.

३.. कार्य कौशल  दृढ़ता का  मतलब  है
 जो  भी कार्य हो ,
उसे करके दिखाने  के पहले  प्रकट  न करना .
बीच में अभिव्यक्त  करें तो  कर्म  कर चुकने  में बाधाएं  होंगी.

४.   यह   कहना  आसान  है कि  कर्म को ऐसा करना --वैसा  करना.
        लेकिन कहेनुसार  करना मुश्किल है .

५. कार्य -कौशल  में नामी बड़े लोगों की कर्म -दृढ़ता
शासकों के आकर्षण बनकर
अधिक आदरणीय और सराहनीय बनेगा.

६.  एक काम करने के विचार में जो दृढ़  रहते  है ,
वे उस कार्य को जैसे सोचते हैं ,वैसे करने में सफल होते हैं,

७.  बड़े रथ के चक्र  घूमने के  लिए जैसे अक्ष दंड  छोटे होने पर भी आवश्यक है ;
    वैसे ही बड़े कर्म करने छोटे लोगों की भी आवाश्यकता  है;
  अतः छोटे आकर देखकर अपमानित करना उचित कर्म कौशल नहीं   है.

८.  सोच -विचार  करके  एक काम करने में लगने के बाद
साहस  के साथ  बिना देरी किये जल्दी पूरा करना चाहिए.
यह भी कार्य कौशल -दृढ़ता है.
९.  जो भी काम करने में लग जाते हैं ,उसका सफल अंत  में सुखदायक ही होगा.
अतः  कर्म करते -करते दुःख आने पर
 मन में शिथिलता को स्थान न देकर ,
दृढ़ता से  आगे बढ़ना चाहिए .

१० . अन्य क्षेत्रों में दृढ़  रहने  पर भी ,कर्म क्षेत्र में दृढ़ता न  होने पर ,कर्म -कौशल  न होने पर संसार तारीफ न करेगा.


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