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Sunday, August 31, 2025

सनातनवेद

 4476. जगत मिथ्या,ब्रह्म सत्यं अद्वैत सिद्धांत के ये शब्द के कहने मात्र से जीव  ब्रह्म के स्वभाविक  परमानंद को  अनुभव नहीं कर सकते। मिथ्या प्रपंच के बदले सत्य प्रपंच ही प्रत्यक्ष देखते हैं। यहीं से जीव को संदेह शुरु होता है। संदेह रहित जीना है तो अहं ब्रह्मास्मी के वाक्य को साक्षात्कार करना चाहिए। साक्षात्कार करने के लिए सत्य की खोज अवश्य करनी चाहिए। जो सत्य को लक्ष्य बनाकर या आत्मा को लक्ष्य बनाकर  या ईश्वर का लक्ष्य बनाकर जीनेवाले को ही मैं ब्रह्म हूँ का साक्षात्कार करके अपने स्वभाविक ब्रह्मानंद को भोग सकते हैं। जीव जो भी हो, भगवान का लक्ष्य करके न जीने पर दुख ही होगा। ईश्वर की माया विलास जानना चाहें तो स्वयं ही भगवान है का एहसास करना चाहिए। उसके लिए मार्ग वेदांत मार्ग है। वेदांत ज्ञान ही आत्मज्ञान है। वह अपने निजी  स्वरूप ज्ञान है। स्वरूप ज्ञानवाला नित्य आनंद का होगा। स्वरूप ज्ञान न हो तो दुख का मोल लेनेवाला होगा।


4477. जो जीवन को दुरित पूर्ण सोचते हैं,और निरंतर दुख का अनुभव करते हैं,उनको समझना चाहिए कि ईश्वरीय स्वभाव आनंद अपने अंतरात्म का स्वभाव है।यही शास्त्रसत्य है।कारण खुद खोज किये बिना श्रवण ज्ञान से मात्र ज्ञान बुदधि में दृढ नहीं होगा। आनंद का निवास स्थान अपनी अहमात्मा ही है, इसको मन में दृढ बना लेना चाहिए। तब तक आनंद की खोज मानव करता रहेगा। अर्थात् पहले अपने अंतरात्मा से अन्य कोई भगवान कहीं नहीं है। अपने अंतरात्मा के रूप में निश्चल ,सर्वव्यापि परमात्मा रूपी अखंडबोध स्वरूप है। उस अखंडबोध को मात्र यथार्थ सत्य होता है, वह सत्य ही मैं वह सत्य ही अपने स्वभाविक आनंद है।  जब इन सब का एहसास करना चाहिए। तभी दुख विमोचन होगा।

4478. सब  इस बात को जानते हैं कि ब्रह्म से अन्य कोई वस्तु नहीं है। वैसे सर्वदित बात है कि ब्रह्म जन्म नहीं लेते और मरते भी नहीं है, ब्रह्म नित्य है,ईश्वर का स्वभाव परमानंद है। वैसे भगवान अपने से अन्य नहीं है, जो विवेकी इसका एहसास करता है, वही स्वयं को ब्रह्म मानकर चल सकता है। मैं  ही भगवान  है को स्थिर बनाने के लिए  आत्मज्ञान पूर्ण रूप में  सीखना चाहिए।  कारण स्वयं  जिसको खोजते हैं, उसका मूल भी आनंदमय होता है।  वह आनंद आत्म स्वभाव मात्र है। इसका अनुभव करना है तो आत्मबोध रहित शरीर और संसार को विसंमरित स्थिति में रहनेवाले आत्मबोध अनुभव होना चाहिए। वैसे बोध रूप आत्मा को पूर्ण रूप में साक्षात्कार करते समय ही स्वयं ही भगवान का अनुभव होगा। सर्वस्व अनुभव स्वरूप ही है। दुख अनुभव रहित परमानंद नित्य अनुभव स्थिति ही भगवद स्थिति है। वह दुख पार करके न आनेवाला दिव्य राज्य है।

4479. दिव्य विचार मनुष्य के लौकिक भोग सुख भोग  रहित की ग़लतफ़हमी साधारणतः सबके मन में है। लेकिन वह सत्य नहीं है।  जीव को   समझना चाहिए कि जितने दिव्य विचार होते हैं,उनसे अनेक गुना भौतिक ऐश्वर्य उसकी खोज में आएगा।
जो जीव अंतर्मुखी आत्मा की ओर जाता है, भौतिक ऐश्वर्य उसके आत्म विचार पर बाधा डालकर विषय चिंतन की ओर अनायास से खींचकर ले जाएगा। तब मिलने वाले भौतिक ऐश्वर्य पूर्णतः मिट जएगा। केवल  वही नहीं,यह भी समझ लेना चाहिए कि  भौतिक  सुख सब स्फुरण ही है। तब  इसको समझते हैं ,तब उसकी आत्मा  उसको गले लगाएगा। जिसको शारीरिक चिंतन है, वह सदा मार्ग न जानकर दुखी रहेगा। कारण वे असत्य अहंकार से आश्रित ही सब कार्य करते हैं। अतः समझनाा चाहिए  कि सभी आनंद सत्य के कारण ही स्थिर रहता है।जो अपने को सत्य समझ लेता है, अपने को आश्रित ही ब्रह्मांड रहता है का एहसास करता है, उनमें  अन्य यादें नहीं होंगी। अन्य चिंतन रहित, स्मरण रहित जीवन ही परमानंद जीवन है। मैं नामक सत्य न तो कुछ भी नहीं है। मैं नामक सत्य मात्र है। वही नित्य है।
4480. भूलोक में जिंदगी बिताकर मानसिक संतोष के साथ शरीर तजकर जानेवाले विरले ही होंगे। अधिकांश लोग बिना संतोष के ही जीवन बिताकर शरीर छोडकर जाते हैं। उसके कारण की खोज करने  पर उनमें कोई भी शास्त्र परम प्रपंच सत्य समझते नहीं है। विषय इच्छाएँ और विषय चिंतन लेने उनको समय नहीं मिलता। उसकी कोशिश भी नहीं करता। जो कोई प्रपंच सत्य को समझता है, वही आत्मसंतोष से जी सकता है। वैसे लोगों को मृत्यु भय नहीं है। कारण यहाँ कोई मरता नहीं है। कोई जन्म लेता नहीं है। यही शास्त्र सत्य है। इसको जानना है तो नित्य अनित्य विवेक होना चाहिए। नित्य होना ईश्वर है।वह ईश्वर मनुष्य शरीर में उसकी आत्मा बनकर रहता है। इसलिए आत्मा ही सत्य-नित्य है। यह आत्मा सर्वत्र निराकार रूप में व्यापित है। इसलिए उससे प्रपंच चलन न होगा। लेकिन उसमें उसमें नाम रूप दृश्य होने सा लगता है। वह तो भ्रम है,जैसे रस्सी को साँप समझना। यही उपनिषद का सत्य है । इसलिए यह शरीर और संसार रस्सी को साँप समझने के जैसे मिथ्या है। असत्य है। त्रिकालों में रहित है। शरीर मिथ्या है, आत्मा सत्य है। यह एहसास ही नित्य संतोष होगा। नित्य संतोषी ही भगवान है। ईश्वर से मिले बिना कुछ भी नहीं है। वह भगवान ही मैं है का अनुभव करनेवाला अखंडबोध है।

4481. शाश्वत के बारे में मात्र यथार्थ में बोल नहीं सकते। लेकिन उसके बारे में बोलते समय अस्थिर शरीर और संसार के बारे में बोलनेवाले शब्द अस्थिर हो जाएँगे। सत्य मात्र शाश्वत रहेगा। वह सत्य ही मैं है का अनुभव करनेवाले अखंडबोध होता है। उसका स्वभाव ही परमानंद है। परमानंद स्वभाव से मिले अपने निजी स्वरूप के अखंड को अपनी शक्ति माया के कारण विस्मरण करते समय संसार और शरीर के दृश्य दीखते हैं। उन दृश्यों को सत्य मानकर विश्वास करके जीने के कारण दुख होते हैं। उन दुखों से विमोचन चाहने पर अपने यथार्थ स्वरूप अखंड बोध को निरंतर स्मरण करना चाहिए।

4482. भौतिक सुख की इच्छा से जीनेवाले लोगों से उनके बुढापे में  उनसे आप के बुढापे का जीवन संतुष्ट  है ? के प्रश्न पूछने पर  कहेंगे कि असंतुष्ट है। पूर्ण संतुष्ट है कहनेवाले विरले ही होंगे। उनको मालूम नहीं है कि शास्त्र सत्य क्या है? स्वयं कौन है।जो शास्त्र सत्य जानता है, वही परम कारण जानता है, वही कह सकता है कि मैं अपने जीवन में नित्य संतुष्ट हूँ। शास्त्र सत्य का मतलब है 1. इसे एहसास करना है कि  मैं आदी-अंत रहित अनादी ,अनंत,आकाश जैसे अरूप,स्वयं प्रकाश स्वरूप स्वयं अनुभव आनंद स्वरूप, स्वयंभू,सर्वव्यापी, निश्चलन, अखंडबोध रूप परमात्मा हूँ। 2. बनकर मिटनेवाले त्रिकालों में रहित आत्म बोध को भ्रमित करनेवाले माया दर्शन शरीर, सहित के यह जड प्रपंच को जानकर बुद्धि में दृढ बना लेना चाहिए।जो जीव इस ज्ञान दृढता में रहता है कि मैं है को अनुभव करनेवाले बोध सत्य मात्र ही हमेशा सनातन धर्म में है,वही नित्य संतुष्ट रह सकता है। यही शास्त्र सत्य है।

4483. जिंदगी का रहस्य यही है कि आनंद मय आत्मा को आनंद रहित बनानेवाले अज्ञान रूपी कर्म को कैसे मिटाना चाहिए। यह ज्ञान बुद्धि में दृढ होने पर ही आत्म स्वभाव आनंद को स्वयं एहसास करके अनुभव कर सकते हैं। स्वयं सर्वव्यापी होने से सर्वव्यापी जन्म नहीं ले सकते। जन्म न लेने से उसको मृत्यु भी नहीं है। आत्मा रूपी अपने को जन्म मरण नहीं है। केवल वही नहीं स्वयं है को अनुभव करनेवाले निश्चल अखंडबोध वस्तु ही मैं है का खूब एहसास करना चाहिए। उसके बाद ही सर्वव्यापी और सर्वस्व होने से उसमें से दूसरी एक उत्पन्न न होगा को दृढ बना सकते हैं। सर्वव्यापी निश्चलन आत्मा में एक चलन प्रपंच बोध के लिए दीखनेवाले एक भ्रम है,इसको बुद्धि में दृढ बना लेना चाहिए। लेकिन प्रपंच है सा लगता है। वैसे दृश्य अपने यथार्थ पूर्ण स्वरूप ज्ञान के आवर्तन स्मरण लेकर मात्र ही मिटा सकते हैं। और किसी मार्ग से आसानी से माया को जीत नहीं सकते।

4484.  आकाश जैसे अपनी स्थिति न बदलकर अपने सर्वव्यापकत्व  मिटे बिना सूर्य और चंद्र नक्षत्र और भूमि सभी नाम रूप जो स्थिर खडे रहने से लगता है, उन  दृश्यों के सभी नाम रूपों के मूल की खोज करने पर सभी नाम रूप आकाश मय  रूप में बदल जाएगा। वैसे ही आकाश सहित पंचभूत सबकी खोज करने पर वे सब बोध मय रूप में बदलेगा। वह बोध अपरिवर्तन शील अखंड रूप में रहता है। जब वह  अपरिवर्तन शील अखंडबोध स्वयं ही है का एहसास करता है,तब माया रूपी नाम रूप दुख से विमोचन होगा।

4485. प्रपंच भर में अपनी प्रकृति है। कारण नहीं तो प्रकृति यहाँ नहीं रहेगी। केवल वही नहीं स्वयं देखनेवाले  वस्तु जो भी हो अपने से मिले बिना स्थिर नहीं रह सकता। स्वयं खोज करके देखने पर स्वयं स्थिर खडे रहने पर ही सबको स्वयं स्थिर खडे रहने पर ही सबको सथिरता है को समझ सकते हैं। यथार्थ मैं अर्थात शरीर के अंग,प्रत्यंग जाननेवाले ज्ञान बोध बने अपने से मिले बिना स्वयं वस्तुओं के दर्शन नहीं कर सकते। कारण समुद्र की लहरें, बुलबुले  आदि समुद्र के बिना और  कुछ नहीं हो सकते। वैसे ही मैं नामक अखंड बोध में स्वयं के बिना दूसरा कुछ नहीं बन सकता। जब इस अद्वैत बोध के विस्मरण होता है, तब द्वैत,द्वैत से होनेवाले दुख, भेद बुद्धि ही माया है। आत्मज्ञान से भेदबुद्धि बदलने के साथ माया बदलेगी।माया के बदलते ही दुख आनंद में बदलेगा।

मानवता

 मानवता का सच्चा ज्ञान 

एस .अनंतकृष्णन, चेन्नई 

 मानव वास्तव में जानवर।

पाषाण युग में उसका जीवन  पशु तुल्य।

 मानव में मानवता आयी।

वह श्रेष्ठ बना, महान बना।

 मानवता का मतलब है,

 मलमास साहस।

 परोपकार,

धर्म पालन।

 दया, दान शीलता।

करुणा मूर्ति, 

 समाज सेवक,

 सहकारिता, 

  वेदाध्ययन,

  ईमानदारी 

  कर्तव्य पालन।

सत्य पालन

 वचन का पालन।

अस्तेय। 

काम, क्रोध,मद,लोभ

 रहित  व्यक्तित्व,

देश भक्ति,

 मातृभाषा प्रेम ,

 

मानवता का सच्चा ज्ञान।

एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु

Wednesday, August 27, 2025

मेहंदी

 मेहंदी की  खुशबू।

एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक 

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मेहंदी  ईश्वर की अपूर्व  सृष्टि ।

 उसकी खुशबू हल्की,

 हरे पत्ते पीसकर 

 हाथ पर लगाने पर लाल।

 अपने को मिटाकर 

 दूसरों को सुंदरता देना

अनेक रोगों के निवारण 

रूसी के लिए दवा।

 बाल बढ़ाने की दवा।

 कहते हैं  वह महालक्ष्मी का अंश।

 हाथ में लगाने पर गर्मी दूर्

हाथ में मेहंदी लगाने पर यम भय दूर होगा।

 त्वचा के धब्बे रोग निवारणी।

  भारत की जटिबूटियों में 

 मेहंदी भी एक है।

नींद न आने वाले 

मेहंदी फूलों से को सिर के नीचे रखकर सोने पर नींद आएगी।

  घाव लगने पर पत्ते पीसकर लगाने पर गांव भर जाएगा।

 अनेक कीटाणु रोगों के निवारण होगा।

नाखून घाव निवारती।

 अतः मेहंदी का सुगंध

और पौधे ,पत्ते फूलों के गुण अधिक।

 पाश्चात्य सभ्यता के कारण कृत्रिम सुंदरता।

त्वचा रोगों के मूल।

 मेहंदी के गुण समझो,

 जागो, सुंदर बनो।

Tuesday, August 26, 2025

मित्रता

 सच्चा मित्र 

एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई 


सच्चा  मित्र  मिलना 

ईश्वरीय वरदान।

आधुनिक काल में 

 मित्रता निभाना

 अंतर्जाल के द्वारा ही।

स्कूल कालेज के बाद 

नौकरी अन्य प्रांतों में 

 या  विदेश में  ।

 दूरी अधिक ,

निकटता कम।

 सहकारिता 

मित्रता का बल है,

 संसार में  एक अपूर्व काम  है तो सुमित्र चुनना।

सच्चे मित्र की मित्रता 

 शुक्ल पक्ष के समान बढ़कर  पूर्णिमा के समान 

 उज्ज्वलतम होगी।

 बुरी मित्रता 

कृष्ण पक्ष के समान बढ़कर 

 अंधकार में बदलेगा।

 सच्चा मित्र   कुमार्ग दिखाएगा।

 मधु वाला जाने से रोकेगा।

 नोट लेकर वोट 

देने  रोकेगा।

 भ्रष्टाचार , रिश्वत पाप समझायेगा।

 बुरों के संग में रहने न देगा।

 तमिल कवि वल्लुवर ने कहा है ---

 कमर से धोती के गिरने पर हाथ मान रक्षा के लिए  फौरन  रोकेगा । 

वैसे ही

सच्चा मित्र सहायता के लिए दौड़ आएगा।

 मित्र वही है,जो सुख दुख में भाग लेते हैं।

 आदर्श मित्र उसी को मिलेगा, जो भाग्यवान होता हैं।

सुदामा कृष्ण की मित्रता 

अति आदर्श दिव्य शक्ति।

मित्र  ही  देवेन मनुष्य रूपेण का प्रत्यक्ष प्रमाण।

Sunday, August 24, 2025

पर्वत शिखर

 पर्वत की चोटी 

एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु 

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 पर्वत की चोटी देखने में अति ऊँची।

  कोई कठिन काम करना है  तो कहते हैं गौरीशंकर की चोटी पर चढ़ना है।

ऊँची पहाड़ पर चढ़ने में 

 जलवायु में परिवर्तन,

बर्फीली हवाओं के कारण 

साँस लेना अति मुश्किल।

 कहते हैं बर्फीली प्रदेश में 

 उंगलियां गलकर गिर जाती है, पैर फिसलकर गिरना भी पड़ता है।

साँस लेना मुश्किल होता है।

 फिर भी जिज्ञासु साहसी व्यक्ति गोरी शंकर है की चोटी पर पहुँच ही जाते हैं।

 अनेक भक्त कैलाश की यात्रा करते हैं 

 अनेक तीर्थस्थान पहाड़ों की चोटी पर होते हैं।

  तीर्थ यात्रा करने,

 रम्य सुंदर हरियाली देखने

 गर्मी में सर्दी खाने,

 पहाड़ी जटिबूटियाँ इकट्ठा करने,

 पहाड़ के जल स्रोत  देखने

कस्तूरी मृग की कस्तूरी लेने,

 अनेकानेक कारणों से

 पर्यटकों की संख्या बढ़ती है।

 आधुनिक यातायात की सुविधाओं के कारण 

 ग्रीष्म वासस्थल जाते हैं।

 इनके कारण यह सरकार को आय मिलती हैं।

 जंगली पशु पक्षियां देखने में अति आनंद मिलता है।

 अपूर्व फल फूल मिलते हैं।

 रामायण में संजीविनी पहाड़ पर की जटि बूटियों का महत्व है।

देवदारु, स्क्रिप्ट्स जैसे

 ऊँचे ऊँचे पेड़,

सुंदर जलप्रपात 

 दर्शकों को आनंद होता है।

  पर्वत की चोटी पहुँचना 

 वैज्ञानिक युग में आसान।

 हेलिकॉप्टर की यात्रा की सुविधा हैं।

 गधा, घोड़े ढोंगियों का भी करते हैं।

 हिमाचल हमारे भारत के उत्तर में प्राकृतिक पहरेदार हैं।

  दक्षिण में तिरमलै पहाड़ पर बालाजी मंदिर,

 पलनी पहाड़ पर कार्तिकेय मंदिर ,

 अनेक ऋषि-मुनियों के तपस्या स्थान आदि 

पहाड़ियों की गुफाओं में।

कहते हैं आजमी अश्वत्थामा,

 हनुमान जिंदा घूम रहे हैं।

 

 संक्षेप में कहना है तो

पहाड़  प्राकृतिक सौंदर्य,

 मलय पवन,पवन परिवर्तन ,वर्षा होने कारण 

पर्वत की चोटी मानव कल्याण का केंद्र है।

एक बार की यात्रा 

 चिरस्मरणीय बन जाता है।

Monday, August 11, 2025

कन्हैया

 भविष्य की आशा

 एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक 

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कहते हैं वर्तमान में 

कर्तव्य पर ध्यान देना।

 वर्तमान ठीक है तो

 भविष्य की आशा

 कभी निराश न होगा।

वर्तमान में शिक्षा,

 आगे अच्छी नौकरी।

 भविष्य रहेगा सुख मय।

 वर्तमान में प्राणायाम 

 कसरत  भविष्य में स्वस्थ।

 वर्तमान की भ्रष्टाचारी 

 भविष्य में दंड निश्चित।

 वर्तमान का दान-धर्म

 बदनाम भविष्य में 

  सुख धाम।

वर्तमान के परिश्रम,

 संपत्ति जोड़ना,

 भविष्य की आशा 

 बुढ़ापे में सुख सुविधा।

 भविष्य की आशा में

 वर्तमान में हवा महल।

 भविष्य को क्या देगी निराशा।

 भूत गया, भविष्य न जाने क्या होगा,

पर वर्तमान ही बचपन

 कला कौशल क्षमता 

 विकास करने का अवसर।

जवानी वर्तमान है

 कठोर मेहनत 

 संतान पालन 

 संपत्ति जोड़ने से

 भविष्य की आशा।

उज्ज्वलतम जान।

कन्हैया

 हमारा कान्हा प्यारा।

एस. अनंतकृष्णन, चेन्नई 

 हम तमिलनाडु में 

कान्हा को कहते हैं कण्णन, कृष्णन।

कितने  भक्त हैं 

कण्णन  के।

चित्रपट के कवि सम्राट 

 अपने नाम को रखा है

कण्णदासन।

कालिंगनर्तन का कन्हैया।

 भूत के वध का कन्हैया।

 पांडवों का प्रिय कन्हैया।

मुरली बजाने वाले कन्हैया।

गोपालक कन्हैया।

 राधा प्रिय कन्हैया।

गीता चार्य कन्हैया।

 गोपिकाओं के प्रिय कन्हैया।

 रसखान प्रिय कन्हैया 

रसखान ने गाया,

मानुष हौं तो वही रसखानि, बसौं मिलि गोकुल गाँव के ग्वारन। जो पसु हौं तो कहा बस मेरो, चरौं नित नंद की धेनु मँझारन॥" 

 सूर प्रिय कन्हैया,

जगत रक्षक कन्हैया।

मित्रता के आदर्श तो

 सुदामा कृष्ण कन्हैया।

दुष्ट संहारक कन्हैया।

 इष्ट रक्षक कन्हैया।

इस्कान मंदिर में 

 कन्हैया 

 विश्वभर में गूँजउठता

 हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।

गोवर्धन धारी, वर्ण भगवान हारी।