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Wednesday, October 29, 2025

स्वच्छ भारत

 


स्वच्छ भारत स्वप्न


एस. अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक


भारत आज़ाद हुए — हुए कई दशक बीत गए,

पर “स्वच्छ भारत” अब भी एक स्वप्न सा दीख रहा है।

मोदीजी ने दिया जो पहला नारा —

“स्वच्छ भारत बनाओ”, जनमन में गूंज रहा है।


पर राजनीति के खेल देखिए,

चेन्नई की गलियाँ अब भी कूड़े से लथपथ हैं।

छाया चित्र बनते हैं — व्यंग्य बाण बनकर,

मोदीजी पर चल पड़ते हैं, जनता की भूलें छिपाकर।


कितनी अज्ञानता जनता में!

पढ़े-लिखे, स्नातक, शोधकर्ता सब बढ़ते हैं,

पर सड़क पर कूड़ा डालते हुए

शिक्षा के अर्थ घटते हैं।


खेल ये बड़ा विचित्र —

नालों में फेंके अवशेष, मोड़ों पर कचरा,

फिर दोष सरकार पर!

कब समझेंगे हम —

स्वच्छता केवल शासन नहीं, संस्कार का दर्पण है।


फुटपाथ पर जीवन, गलियों में गंदगी,

और “स्वच्छ भारत” — बस एक सपना।

सोचता हूँ, क्या यह सपना

सपना ही रह जाएगा?


यदि हर नागरिक अपने घर सा

नगर को भी अपना माने,

अपनी गलती को सुधारकर

देश की सफ़ाई का संकल्प ठाने —

तभी साकार होगा वह स्वप्न,

जिसे हमने देखा था —

एक उज्ज्वल, निर्मल भारत का स्वप्न।

Tuesday, October 28, 2025

प्रदूषण मानव के कारण

 


पर्यावरण चेतना

— एस. अनंतकृष्णन


विश्वभर में वैज्ञानिक प्रगति,

शिक्षा का विकास महान।

आवागमन की सुविधाएँ,

चिकित्सा में नव ज्ञान।


फिर भी मानव व्यथित है,

साँस लेना कठिन हुआ।

इनहेलर, नेबुलाइज़र साथी,

जीवन रोगों में गुम हुआ।


गर्मीकरण, जल-भूतल प्रदूषण,

वायु में घुला विष-अंधकार।

राजनीति का स्वार्थ प्रदूषण,

भ्रष्टाचार बना व्यापार।


चित्रपटों की चकाचौंध में,

संस्कारों का ह्रास हुआ।

कृत्रिम श्रृंगार केंद्रों में,

प्राकृतिक सौंदर्य नाश हुआ।


पाश्चात्यता के बहाने से,

संस्कृति पर पड़ी धूल।

परिवार बिखरे, तलाक बढ़े,

संयम हुआ शून्य फूल।


नगरीकरण की लहर में,

झीलें, पर्वत गायब हुए।

रासायनिक खादों से खेत,

ज़हर समान हो गए।


हे मानव! अब तो जागो,

तटस्थ मत रहो यूँ।

पर्यावरण चेतना जगाओ,

धरती माँ के लिए कुछ करो तूँ।

Monday, October 27, 2025

इंद्रधनुष

 इंद्रधनुष


एस. अनंतकृष्णन, चेन्नई, तमिलनाडु

२८-१०-२५


उजले रंग,

सूर्य की किरणों से झलके सातों रंगों का सुंदर दृश्य,

आकाश में जैसे चूड़ी पहनी हो,

या धरती पर जलप्रपात में झिलमिलाती रोशनी हो।


यह राम-रस का असर,

ईश्वर की ही छटा,

प्रकृति की अनुपम शोभा।


पर आजकल —

उजले वस्त्रों में भी

राजनीति के लोग,

पद की धूप पड़ते ही

रंग बदलते हैं — गिरगिट की तरह।

छिपकली की तरह।


रूप देखकर जो विश्वास जगता है,

वही पल में धोखा दे जाता है।


पेड़ों की पत्तियों में छिपे कीट,

छाल के रंग से एकाकार हो जाते —

अति सूक्ष्म दृष्टि ही पहचान पाती है उन्हें।


इस संसार में उजाला भी

कभी-कभी गंदगी में सना मिलता है।

बाहरी दृश्य बदलते हैं निरंतर,

यह दुनिया एक अजीब बाज़ार है —

कभी इंद्रधनुष-सी सुंदर,

कभी गिरगिट-सी चालाक।


फिर भी —

इंद्रधनुष सिखाता है हमें सतर्क रहना,

सिखाता है —

हर रंग में छिपा होता है एक अनुभव,

एक सीख,

एक सत्य।


Sunday, October 26, 2025

आचरण

 ✍️ एस. अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु


सदाचार, शिष्टाचार, इष्टाचार,

त्याग, तपस्या, विनम्र व्यवहार।

दुष्टाचार, दुराचार के साए,

जीवन को अंधकार में लाए।


स्वार्थ का आचरण पतन कराए,

निस्वार्थ भाव अमर बन जाए।

आस्तिक मन श्रद्धा जगाता,

नास्तिक भी प्रश्न उठाता।


प्रिय आचरण सुख देता प्यारा,

अप्रिय से जग होता हारा।

हिंसा जलाए, अहिंसा सिखाए,

कृतज्ञ मन ही आनंद पाए।


सत्याचरण से जग उजियारा,

असत्य करे जीवन दूषित सारा।

आदर्श रखो मर्यादा प्यारी,

राम समान बनो व्यवहारि।


कृष्ण का आचरण लो अपनाओ,

जनहित हेतु कर्म निभाओ।

नश्वर तन, नश्वर संसार,

पर आचरण है अमर आधार।


सोचो मन में कौन सा आचरण,

देता है जीवन को सम्मान।

जो रखे समाज में मर्यादा,

वही बने मानव का गहना सदा।


जागो, विचारो, जग को जगाओ,

आदर्श आचरण अपनाओ।

राम की राह, कृष्ण विचार —

यही है जीवन का सच्चा सार।

एस.अनंतकृष्णन,चैन्नै

तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना

काँच का मंदिर

 एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना

26-10-25.

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कांँच का मंदिर

अद्वैत भावना का अद्भुत झाँकी।

कांच में भगवान के असंख्य रूप।

दर्शन करते

दर्शक की अनेक मूर्तियाँ।

आत्मा परमात्मा

एक है का प्रतीक।

काँच में मानव मूर्तियाँ।

आत्मा परमात्मा एक है

अद्वैत सिद्धांत का प्रत्यक्ष रूप अहं ब्रह्मास्मी।

दर्शन की विशेषता अति दार्शनिक।

हँसने पर हंँसता

रोने पर रोता।

न निकट रिश्ते के

समान रोते देखकर हंँसता।

सच्ची मित्रता के लक्षण

सच्चे रिश्तों के लक्षण

सच्चे दिव्य रुप दर्पण में।

काँच के मंदिर

केरल के नारायण गुरु की देन।

सुना है सिक्ख गुरु ने

कांच के महल गुरु द्वार।

असलियत दिखानेवाले

काँच महल दिव्य दर्शन।।

वही आत्मा परमात्म दर्शन।।

Saturday, October 25, 2025

आत्मज्ञान

 आत्मबोध


— एस. अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक


आत्मबोध, आत्मज्ञान,

अखंड बोध, अपना पहचान।

अपने मन को जानो पहले,

ज्योति जगाओ अंतर में खेले।


लौकिक वासनाएँ भारी,

माया जाल पसारे सारी।

मन को जो बाँधे रस जाल,

करो उसे निर्मल, निष्काम, निहाल।


जब मन स्थिर, विचार पवित्र,

जागे भीतर चेतन चित्र।

अहं आत्मा, अहं परमात्मा —

ब्रह्मास्मी का सत्य प्राणवा।


कबीर ने कहा — “लाली लाल की, जित देखूँ तित लाल,”

देखन मैं गयी, बन बैठी खुद लाल।

यह अद्वैत का सरल गान,

जो जाने, वही महान।


“बुरा जो देखन मैं गया, बुरा न मिल्या कोय,

जो दिल खोजा अपना, बुरा न मिल्या कोय।”

यह आत्मचिंतन का ज्ञान,

देता जीवन को नव प्राण।


आत्मबोध का जो ले नाम,

मिट जाए भीतर का अंध-ग्राम।

माया टूटे, मन हो शांत,

जागे आत्मा — बने ब्रह्म तत्त्व।

एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति 

Thursday, October 23, 2025

इंतजार

 


— एस. अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु

(हिंदी प्रेमी प्रचारक की स्वरचित रचना)

 24-10-25


शिशु रोता भूख लगते ही,

माँ के आँचल की प्रतीक्षा।

विवाह के बाद दंपति को,

संतान-सुख की प्रतीक्षा।


विद्यार्थी को परीक्षा फल की,

युवा को नौकरी की चाह।

किसी को जीवन-संगी की,

किसी को प्रेम-नज़र की राह।


तपस्वी को प्रभु-दर्शन की,

पत्नी को पति-आगमन की।

व्यापारी को ग्राहक मिलने की,

माता को बाल-आगमन की।


लॉटरी टिकट खरीदने वाले को,

जीत की मधुर प्रतीक्षा।

वनस्पति को मेघ बरसने की,

धरती को नीर की प्रीति।


राजनीति में नेता जन-मत की,

बूढ़े को मुक्ति की आशा।

आरंभ से लेकर अंत तक,

जीवन बस — प्रतीक्षा ही प्रतीक्षा।