Search This Blog

Sunday, September 14, 2025

मैं वरिष्ठ हूँ

 नमस्ते वणक्कम्।

मैं वरिष्ठ हूँ।

 मन से युवा,

 ईश्वरीय कानून 

 देखने में बूढ़ा झाँकी।

मन को काबू में रखना 

 कितना मुश्किल।

 एक क्षण में रंक से राजा तक के विचार।

नगर पालिका सदस्य से मंत्री तक के विचार।

धीरोंदात्त धीरों ललित  धीर प्रशांत।

 आधुनिक कथानक

 अंतराल तक डाकू चोर लुटेरा, बाद में कानून उसके हाथ।

पुलिस जो नहीं कर सकता,वह करता है,

 मंत्री पुलिस सार्वजनिक सेवक नहीं,

 अमीरों का गुलाम।

उसको दंड देनेवाला 

 अंतराल के पहले का लुटेरा

कथा नायक बनाता है,

सब भ्रष्टाचारी अधिकाकारियों से

 रिश्वतखोरों से

ग़रीबों को बचाता है।

पियक्कड़ प्रोफेसर 

 छात्रों के लिए आदर्श

 सभी कथानक ऐसे।

 एक विचित्र कथानक जेलर में,

 हत्यारे लुटेरे को देखकर

 पुलिस अधिकारी भी डाकू लुटेरे बनना चाहता।

यह तो नयी कल्पना नहीं 

 बुद्ध की कहानी में अंगुली माल,

अत्याचारी अशोक का बुद्ध भिक्षु बनना।

  मन कितना सोचता है,

 मनकी चंचलता  मिट जाती तो आत्मज्ञान आत्मबोध मूक साधना में 

 मानव हो जाता तल्लीन।।

मन मनकी वासनाएंँ

 असीमित दुख के कारण।

 चाह गई चिंता मिटी 

 दस साल की उम्र का दोहा।

 अस्सी साल में भी निभा न सका।

 वल्लूवर का कुरळ्

सीखो, कसर रहित सीखो।

 सीखने के बाद पालन करो।

 सीखना सिखाना आसान।

अंत में मन का निर्णय 

 सबहीं नचावत राम गोसाईं 


एस, अनंतकृष्णन चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना

No comments:

Post a Comment