किताबी शिक्षा
खिताबी शिक्षा
सब अति सीमित।
आत्मज्ञान और आत्मबोध से
अनुभव से शिक्षा
व्यवहारिक शिक्षा ही श्रैष्ठ।
जो काम करते हैं,अपने आप को समझकर
अपने बुद्धि बल , शारीरिक बल धनबल
जानकर ही कार्य में लगना है।
अधपके ज्ञान से
कोई कार्य करने पर
सफलता असंभव।
समाज के अध्ययन है
पता चलता है कि
केंपस साक्षात्कार में
जीतनेवाले अंत तक नौकरी करता है।
उनके सहपाठी स्नातकोत्तर नहीं
पर कंपनी का मालिक बनता है।
खिताबी से गैर खिताबी
विश्वविद्यालय की स्थापना,
शासक मंत्री बनता है।
जिला देश उनका सलाम करता है।
तब पता चलता है
भागय का फल।
अध्यापक ने जिसको नालायक बताया,
वह अध्यापक के बेटे का
मालिक बन गया।
यह सूक्ष्मता न जानने का फल
सबहीं नचावत राम गोसाईं।
अपना अपना भाग्य।
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