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Thursday, October 9, 2025

उम्मीद

 आशाओं का दीप

 एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई 

9-10-25.

  मानव   जीवन में 

 भावी जीवन का भय।

दूर होने आशा का दीप।

 माता-पिता   अभिभावक से

 आर्थिक  सहायता की आशा।

 बडे होने पर व्यापार में 

 लाभ की आशा।

 घाटा होने पर

 फिर आगे की आशा।

 

 छात्र जीवन में परीक्षा 

फल और अंक।

 अच्छे महाविद्यालय में 

भर्ती की आशा।


 शिक्षा के बाद नौकरी।

 फिर योग्य वर या वधु।

  आर्थिक कठिनाइयां,

 पदोन्नति का प्रयत्न।

संतान की तरक्की की आशा

 इन सब का सामना 

     करना है तो   एक ही मार्ग 

 आशा का दीप जलाना।

 नर होने से निराशा  से

 बचने   आशा ही बल है।

 माता-पिता पर भरोसा,

  दोस्तों पर भरोसा,

 नौकरों पर भरोसा

 डाक्टर की इलाज 

   पर भरोसा।

 विमान चालक पर भरोसा।

 कदम कदम पर मानव को क्रियाशील 

बनने की प्रेरणा।

 काम करने का ताकत

 आशा पर ही निर्भर है।

 उम्मीद न तो मानव

 उत्साह खो जाता।

 निष्क्रिय बन जाता।

 आशा का दीप ही शक्ति है।

 आशा ही सोच विचार 

 खोज आदि प्रेरणा का मूल।

 

 


 


Wednesday, October 8, 2025

विश्वास घाती,

विश्वासघात 


 एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।

8-10-25

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मानव ही सर्वा हारी,

 स्वार्थी  , ईर्ष्यालु,  प्रतिशोध लेनेवाला,

 छद्मवेशी, सद्यःफल के लिए अपने मित्र को

 शत्रु बनाकर शत्रु को मित्र 

 बनानेवाला चली, ठगी।

 आस्तीन का साँप होता है।

 भारत की पौराणिक कथाओं में भी 

विश्वास घाती छद्मवेशी ज़्यादा है।

   दल-बदलने वाले राजनीतिज्ञ,

 सिद्धांत बदलनेवाले राजनीतिज्ञ,

 मजहब बदलनेवाले भारतीय,

 भ्रष्टाचारी रिश्वतखोरों के प्रशासन,

 नशीली चीजों को 

 कालेज के छात्रों को 

 खिलानेवाले देशद्रोही,

 चित्रपट, अखबारों में 

अश्लील हास्य व्यंग चित्रपट,

 गीत गानेवाले सब

 एक प्रकार के विश्वासघाती ही हैं!

 भारत के इतिहास में 

 सभी देशों के वासी

 विरले आकर विश्वासघातियों की

 मदद से शासक भी बन गये।

 उनके चाँदी के टुकड़ों के लिए 

 भारतीय  विश्वासघातियों ने अपनी  संस्कृति छोडी,

 भाषाएँ छोड़ी,

 पोशाक बदलीं,

 भारतीय जलवायु के विरुद्ध, 

 बंद कपड़े पहनने लगे।

 नशीली पदार्थ अपनाने लगे।

 पगड़ी बदलकर पगड़ी उतारने लगे।

 मुट्ठी भर के अंग्रेज़ी 

 उनके नौकर बनकर 

 सिपाही बनकर 

 अपने ही देशवासियों को

 मारने पीटने लगे।

 ये भी देशद्रोही,

 विदेशियों को सलाम करनेवाले दो हाथ जोड़कर नमस्कार करना भी छोड़ दिया।

 एक हाथ में सलाम,

 अभीवादन प्रणालियाँ भी बदल दी।

वेदाध्ययन के ब्राह्मण के बच्चे वेद, संध्या वंदन कहने पर   नहीं  जानते ।

 वेदना की बात  है,

 ब्राह्मण  लडकियाँ

 प्रेम  के चक्कर में फ़ँस जाती।

 ब्राह्मण लड़कियों को फंसाने विश्वासघाती 

 प्रशिक्षण दे रहे हैं।

 सब स्नातकोत्तर, डाक्टर,अभियंता,

 खूब कमाते हैं 

 सम्मिलित परिवार में 

 रहना नहीं चाहते।

 वीरगाथाकाल, भक्ति काल ,रीतिकाल में 

 देश में अखंड भारत की कल्पना नहीं,

 भारतीय विश्वासघातियों  के कारण देश बना गुलाम।

 आज़ादी  के संग्राम में 

 भारत की एकता देखने को मिली।

 उसमें भी नरम दल गर्म दल।

  सुभाष चंद्र बोस, सरदार पटेल नेता बनकर भी बन न सके।

  हमें इतिहास से सीखना है, भारतीयों में निस्वार्थ देशभक्ति चाहिए।

 भक्ति क्षेत्र में भी विश्वासघात।

 भक्ति बन गई व्यापार।

 नकली संत नकली मंत्र

   अंध भक्ति को व्यापार बनाने ,

 इत्र तत्र सर्वत्र  कदम कदम पर मंदिर।

 शिव भगवान,

राम , कृष्ण के छद्मवेशी 

 भीख माँगते।

 क्या भगवान देनेवाले हैं 

 या लेनेवाले।

 भक्त रैदास, त्याग राज,की कहानी सुनकर भी भगवान को भिखारी बनाने साहस , विश्वास घाती।

 जागो इन  विश्वासघातियों से सतर्क रहो।

 एकता ही निस्वार्थता ही

 मानवता ही

 देश में भेदभाव, राग-द्वेष 

 मिटाकर  आनंद देंगे, 

 शांति देंगे। संतोष देंगे।

 कदम कदम पर  विश्वास घाती।

 वामन के रूप में ‌विष्णु,

 शिव भक्त संन्यासी के रूप में रावण,

   श्री कृष्ण का मायाजाल में कितने षड्यंत्र।

 धर्म क्षेत्रे कुरुक्षेत्र नहीं,

 आरंभ से अंत तक विश्वास घाती। 

 सावधान!  फूँक फूँककर आगे बढ़ना।

 काशी में, रामेश्वर  में 

 कदम रखा तो ज्ञानी को 

 भी ठगनेवाले भिखारी।

 ये भी एक तरह से विश्वास घाती।

 सावधान! सावधान! सावधान!


एस. अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना

काव्य मराथन में  आज तीसरा दिन। चेन्नई के सुप्रसिद्ध कवि श्री ईश्वर करुण जी ने मुझे नामित किया और इसी कड़ी में मैं आज  कविताएं  लिख रहा हूँ।


कविता -3 

आसमान -आकाश धरती -वसुंधरा


आसमान  धरती से देखते हैं ,

सूर्य की गर्मी ,चन्द्रमा का शीतल

तारों का टिम टिमाना

धरती को निकट से छूकर देखते हैं।

जलप्रपात से गिरते नीर में नहाकर देखते हैं

बहती नदी में डुबकियाँ लगाकर देखते हैं

कुएँ  में कूदकर तैरते हैं ,

मिट्टी के खिलौने बनाकर ,

पेड़ पौधे लगाकर ,

प्रिय पालतू जानवर को गाढ़कर

अंतिम संस्कार कर देखते हैं ,

यहीं स्वर्ग -नरक का अनुभव करते हैं

पर यहीं कहते हैं स्वर्ग है आसमान पर।

जिसे किसीने न देखा है.

बचपन का दुलार ,लड़कपन के दुलार

जवानी का दुलार ,बुढ़ापा का दुःख

दौड़ना -भागना जवानी ,बुढ़ापा सोच सोचकर आँसू

नरक तुल्य कोई कोइ खोया जवानी।

आसमान के स्वर्ग -नरक की चिंता में

जवानी का स्वर्ग -बुढ़ापे का नरक भूल

मानव तन समा जाता मिट्टी में।

आसमान धरा की चिंता कहीं नहीं

यहीं भोग प्राण पखेरू उड़जाते।

कहते हैं धरा नरक आसमान स्वर्ग।

एस। अनंतकृष्णन ,चेन्नै।

Sunday, October 5, 2025

समय

 नमस्ते वणक्कम्।

 वक्त/समय/पल 

 बूँद बूंद में सागर भरता।

 पल पल में आयु बढता।

 समय पर काम करना है।

 भाग्य निर्माता हैं वक्त।

 जन्म लेने में वक्त  ही प्रधान।

 एक ही दिन में जन्म,

 जन्म कुंडली के अनुसार 

 एक राजा, एक भिखारी।

 ज्योतिष शास्त्र क्या करता।

 तभी वक्ता जन्म दिन या

 गर्भ उत्पादन के दिन।

 सिरों रेखा लिखकर ही मानव जन्म।

 एक ही खानदान,

 एक वीर  एक कायर।

  पाँच मिनट पहले जन्म लेता तो

 मैं राजा बन जाता।

 यही वक्त का महत्व।

 समय किसी की परवाह न करता।

एस. अनंत कृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक

जिज्ञासा

 जिज्ञासा 

एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई 

6-10-25.

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 मानव  सदा नयी बातें

 जानने की इच्छा रहता है।

 ताज़ी खबरें सुनने का जिज्ञासु हैं।

नये नये स्थान देखने की  

इच्छा रखता है।

 जिज्ञासा न हो तो

 न नये नये आविष्कार।

 न नये नये आवागमन साधन।

 न कृषी के आधुनिक साधन।

 न साहित्य का विकास।

 न  भाषा विज्ञान।

 न नये देश और  न नये द्वीपों का  आविष्कार।

 न वास्तु कला में विकास।

 न संगीत न नाट्य कला।

 मानव संस्कृति ,

 मानव सभ्यता,

 नयी क्रांतियाँ,

 नयी सोच ,नये विचार 

 आर्थिक क्रांतियाँ,

 युग युग की क्रांतियाँ।

 राजनैतिक क्रान्तियाँ

 जिज्ञासु मानव की देन।

 घुमक्कड़ जिज्ञासा 

  समुद्र की खोज 

 सब के मूल में है

 जिज्ञासा प्रवृत्ति।

Saturday, October 4, 2025

मीठी बोली बोलना

 शब्दों के तीर

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एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई 

5-10-25

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रहिमन जिह्वा बावरी ,

 कही गयी स्वर्ग पाताल,

 अपुन तो  भीतर गई,

 जूति खात कपाल ।।


 संत कवि तिरुवल्लुवर ने कहा है,

आग की चोट लगी तो 

भर जाएगी।

 जीभ से लगी चोट

 कभी न भरेगी।।

कबीर ने कहा 

 मधुर वचन है औषधी

 कटुक वचन है तीर।

श्रवण द्वारा संचरै,

साले सकल शरीर।।

मीठी बातें रहते,

कडुवीं बातें कहना

फल रहते कच्चा फल 

 तोड़ने के समान।

 बुद्ध भगवान नै

 अपनी मधुर वाणी द्वारा 

 डाकू अंगुलीमाल को

 सुधारा ।

तुलसी मीठे वचन थे,

सुख उपजते चहूँ ओर।

वसीकरण यह मंत्र है,

परिहरि वचन कठोर।।

ऐसी वाणी बोलिये" संत कबीर दास का एक प्रसिद्ध दोहा है: "ऐसी वाणी बोलिए, 

मन का आपा खोये। 

औरन को शीतल करे, 

आपहुं शीतल होए।

  हमें भाईचारे 

 प्रेम से जीना है तो

 मीठी बोली बोलना चाहिए ‌।

Friday, October 3, 2025

विश्व पशु कल्याण दिवस

 विश्व पशु कल्याण दिवस 

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एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक 4-10-25

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ईश्वर की सृष्टि में पशु  अद्भुत।

 माँसाहारी, शाकाहारी,सर्वा हारी।

 इनमें ज्ञान चक्षु प्राप्त मानव सर्वाहारी।

 वह अति बुद्धिमान ,

 परिणाम प्रकृति को

 अपने इच्छानुसार 

 नचाना चाहता हैं।

 पर प्रकृति अति सूक्ष्म शक्ति। 

ईश्वरीय कानून।

 जंगलों का नष्ट किया।

खूँख्वार जानवरों को

 अपनी रक्षा हेतु, आहार हेतु  नष्ट किया।

 सुअर,हिरण, खरगोश,गाय,बैल 

 सबका सर्वा हारी मानव।

 अब समझ रहा है,

 प्राकृतिक नाश,

 मानव सुखी जीवन के लिए नाश।

 जंगलों का काटा,

 अब अकाल के लक्षण है जान पुनः जंगल निर्माण का वन महोत्सव।

 अनेक  जंगली में जानवरों का नामोनिशान नहीं।

 अतः पशु कल्याण दिवस द्वारा  जंगली और अन्य पशुओं की रक्षा  के लिए 

  विश्व पशु कल्याण दिवस   ।

 जिसका उद्देश्य अभ्यारण्य के द्वारा 

 पशुओं  की रक्षा।

गोशाला के द्वारा गाय बैलों की सुरक्षा।

जानवरों के प्रति दया।

 जानवरों को स्वतंत्र विचरण की  सुविधा।

 धन्य है जर्मन के बैज्ञानिक हेनरिक 

 जिन्होंने ने विश्व पशु कल्याण  दिवस का आह्वान किया।

24मार्च 1925 पहला विश्व कल्याण दिवस।

 अब 4अक्तूबर हर साल मनाया जाता है।

 मानव गुण की तुलना 

 जानवरों से, न कि जानवर की तुलना मनुष्य से।

 गजज्ञजैसा मस्त चाल।

 हिरण जैसी  कातर दृष्टि।

मीन लोचनी। सियार सा चालाक,। सिंह सा गंभीर एकांत। मधुमक्खियाँ और चींटियों से मेहनत और अनुशासन।

गरुड़ दृष्टि,बाज दृष्टि।

मानव से श्रेष्ठ निस्वार्थ जानवर,

 उनकी सुरक्षा, संरक्षण,

  दया दिखाने का दिन विश्व पशु कल्याण दिवस।

 हम भी पशुओं की आज्ञा में साथ देंगे।

 एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना 




 

 

 

 

 


 


 

 





सनातन धर्म

 अखिल भारतीय साहित्य सृजन

 विषय  स्वैच्छिक 

विधा --अपनी हिंदी अपने विचार,अपनी स्वतंत्र शैली भावाभिव्यक्ति।

3-10-25.

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विषय --सनातन धर्म।

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मानव दुखी क्यों?

सनातन धर्म कहता है,

ब्रह्म पर विश्वास रखना है

 सत्य व्यवहार करना है।

 निस्वार्थ जीवन बिताना है।

 अपने कर्तव्य निभाना है।

  मिथ्या आचरण से बचना है।

 काम, क्रोध,लोभ,मंद अहंकार 

  मानव को मूर्ख बनाये हैं ।

 अपने अधिकार का दुष्प्रयोग न करना है।

 तटस्थ जीवन बिताना है।

माया मोह वासना से दूर रहना है।

 आत्मज्ञान प्राप्त करने की 

 कोशिश करनी है।

 सत्संग ही प्रधान है।

 स्व चिंतन करना है।

 अपने को पहचानना है।

 अखंडबोध मन को मिटाता है।

 अपने लक्ष्य पर दृढ़ रहना है।

 मानव शक्ति से बढ़कर 

 एक दिव्य शक्ति मानव को नचाता है।

 हर पाप का दंड निश्चित है।

 सद्यःफल के लिए भानावत

 भ्रष्टाचार करता है, रिश्वत लेता है,

  झूठ बोलता है, चाटुकारिता में 

  आगे बढ़ना चाहता है।

 ईश्वर का भय न होतो,

 माया के चंगुल में रहता तो

 आजीवन दुख ही दुख झेलता है।

  कर्मफल के लिए पुनर्जन्म लेता रहता है।

 रोग, साध्य रोग, असाध्य रोग, अंगहीनता

 ग़रीबी आदि के चक्कर में 

 असाध्य दुख झेलता है।।

 भेद बुद्धि, राग द्वेष रहित है जीना है।


दुख से बचानेवाले ईश्वर ही है।

  मन की चंचलता दूर कर 

 एकाग्रता से ईश्वर पर मन लगाकर 

 ब्रह्म ज्ञान पाकर 

 ब्रह्म ही बनना है।

उसी को कहते हैं,

 अहं ब्रह्मास्मी।

एस अनंतकृष्णन चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना