नमस्ते वणक्कम।
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Friday, January 29, 2021
दादी का गाँव ---संस्मरण
गंगा
नमस्ते वणक्कम।
गंगा।२९-१-२०२१
गंगा नदी अति पवित्र।
सुना है जल पीने से स्वास्थ्य लाभ।
प्राण पखेरु उड़ जाने के पहले
तड़पती आत्मा के मुख में
गंगाजल पिलाना अति पुण्य।।
पर मैं आया २०१९में ,
काशी और प्रयाग में बाढ़ ही बाढ।
पर खेद की बात है कि
पीने का पानी एक लिटर २२रुपये।
यह भारत का है बड़ा अपमान।
औद्योगिकीकरण शहरीकरण नगर विस्तार।
पवित्र नदी को अपवित्र बनाना,
हिंदु ओं में अश्रद्धा होना,
देश के कल्याण के लिए उचित नहीं।
पंचवटी गया तो वहाँ गंदा पानी,
ठहर रहा है, भारतीयों में
चाहिए पवित्र अचंचल भक्ति भाव।।
स्वरचित स्वचिंतक एस अनंतकृष्णन चेन्नै तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक
हम सफर
नमस्ते वणक्कम।
कलम बोलती है साहित्य समूह।
विषय --हम सफर।
दिनांक २९-१-२०२१
आयोजन संख्या --२५१
हम सफर है "भारत देश के"।
हम सफर है परिवार के।
हम सफर है दोस्तों के।
हम सफर है भक्ति के मुक्ति के।
हम सफर है मधुशाला के।
हम सफर है जेल खाने के।
हम सफर है पागल खाने के।
हम सफर है अमुक दल के।
हम सफर है तब तक,
जब काल अपने
हिसाब न चुकाता।
नश्वर जगत के हम सफर।
न जाने जब अकेले सफर
दूसरों के कंधों पर या अमर वाहन पर।
स्वरचित स्वचिंतक एस.अनंतकृष्णन,चेन्नै।
Thursday, January 28, 2021
जिंदगी प्यार का गीत
नमस्ते वणक्कम।
शीर्षक :- जिंदगी प्यार का गीत है।
मेरा जमाना
शादी के बाद,
बुढ़ापे तक का प्यार।
आज प्यार के बाद शादी,
अंतर्राष्ट्रीय, अंतर्जातीय, अंतर्रप्रांतीय,
शादी, तलाक पुनर्विवाह।
समाज सुधार के गीत,
दिल का गीत।
प्यार भरा गीत,
पाश्चात्य सभ्यता और भारतीय
संस्कृति मिलन,
बेचैन जिंदगी प्यारे !गीत गाओ,
प्रीत का पर पाश्चात्य सभ्यता का
न बनो पिछलग्गू।।
स्वरचित स्वचिंतक एस.अनंतकृष्णन,चेन्नै तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।
जिंदगी प्यार का गीत
नमस्ते वणक्कम।
शीर्षक :- जिंदगी प्यार का गीत है।
मेरा जमाना
शादी के बाद,
बुढ़ापे तक का प्यार।
आज प्यार के बाद शादी,
अंतर्राष्ट्रीय, अंतर्जातीय, अंतर्रप्रांतीय,
शादी, तलाक पुनर्विवाह।
समाज सुधार के गीत,
दिल का गीत।
प्यार भरा गीत,
पाश्चात्य सभ्यता और भारतीय
संस्कृति मिलन,
बेचैन जिंदगी प्यारे !गीत गाओ,
प्रीत का पर पाश्चात्य सभ्यता का
न बनो पिछलग्गू।।
स्वरचित स्वचिंतक एस.अनंतकृष्णन,चेन्नै तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।
कवि और धन
नमस्ते वणक्कम।
काव्य कला सेवा,
कविगणों की अमर सेवा।
तमिल के राष्ट्र कवि भारतियार ने
इस भाव में लिखा कि
मैं पशु पक्षी कीड़ा नहीं कविहूँ
युग युगांतर तक जीवित रहूँगा।
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भारत भूमि ज्ञान भूमि दिव्य भूमि।
ऋषि मुनि साधु संत अगजग के मार्गदर्शक।
स्वार्थी देशद्रोही,लोभी,कामी ,क्रोधी, अहंकारी,चली,कपटी,
कलियुग में नहीं ,त्रेता युग,द्वापर युग में भी थे।
जन संख्या वृद्धि के साथ साथ,
ये भी बढ़ रहे हैं।
विभीषण था तो आंबी था।
वह सूची तो बड़ी लंबी।
जो भी हो, नश्वर दुनिया,
सुनामी पाना, बदनाम पाना अपने अपने कर्म फल।
धन है, धन बल जिंदा रहूँगा, कामयाबी का सम्राट बनूँगा।
यह विचार है अति मूर्खता।।
कई करोड़ पतियों के यहाँ असाध्य रोगियों को देखा।
अति प्रयत्न के बाद भी राजकुमार सिद्धार्थ बना बुद्ध।।
स्वरचित स्वचिंतक एस.अनंतकृष्णन,चेन्नै।
तमिलनाडु के हिंदी प्रेमी , प्रचारक।।
सरिता
नमस्ते वणक्कम।
सरिता तू नहीं बहती तो
क्षुधा शांति न होती।
तू न होते खेत सूख जाते।
पशु पक्षी मानव वनस्पति सूख जाते।
सुवर्ण भरे घर में,
क्षुधा से मरते सब के सब।
तू तो सभ्यता का पालना।।
शहरी सभ्यता का मूल।।
कारखाने बढ़ते जाते हैं।
अमीर बढ़ते जाते हैं।
आलीशान महल बनवाते जाते हैैं।
नदी नाले सूखते जाते हैं।
यह नहीं सभ्यता के लक्षण।।
स्वरचित स्वचिंतक एस.अनंतकृष्णन,चेन्नै