Tuesday, February 18, 2025

विचार चिंतन

  जो भी हो यह निजी संस्थान है।

  दिमागी त्याग,  इसको मुफ्त में लेना , जैसे राजनैतिक नेता स्वयं सेवकों के त्याग से  धनार्जन करके सुखी जीवन बिताता है। 

 धर्माचार्य स्वर्ण सिंहासन पर बेठे हैं।  सरकार करोड़पतियों का कर्जा माफ कराती है।

 दस हजार के गरीब ऋणी को सताती है।

 गरीबों को भूख त्याग का मार्ग दिखाकर उनके पैसे लूटनेवाले धर्माचार्य। यही लौकिक लूट।

   अधिक बुद्धिमान के धोखे में गरीब।

 मिनिमम बेलन्स कम है तो तुरंत लूटनेवाले बैंक करोड पति के ऋण को माफ करता है।

 न्याय रहित संसार है।

जिसकी लाठी उसकी भैंस की नीति ही सत्य है

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नमस्ते वणक्कम्।

  भारतीय भाषाओं में वैज्ञानिक दृष्टांत के साथ  ईश्वर के महात्म्य  और आध्यात्मिक  अमूल्यता   का महत्व है।

 संत तिरुमूलर  के तिरु मंत्र  ऐसे ही एक महान ग्रंथ हैं।


 

 



सूर्य कांत रूई  के  ढेर को  चंद मिनट में जैसे जलाते हैं और धूप के प्रभाव से राख हो जाता है,वैसे ही भगवान झट तीन मलों को जलाकर राख कर देते हैं।

संत तिरुमूल  ने वैज्ञानिक ढंग से  अद्भुत उदाहरण दिया है। आध्यात्मिक प्रयत्न अज्ञानता, 

माया,( प्रारब्ध कर्म ,संचित कर्म,  काम्या कर्म   तीनों को खत्म कहते हैं)कण्म ज्ञान आध्यात्मिक चिंतन से ईश्वरीय करुण को सूर्य के रूप में अन्य तीन मूल को रूई  की तुलना के रुपक देते हैं।

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[19/02, 10:37 am] Meta AI: आपके द्वारा दिए गए दो संदेशों में दो विभिन्न विषयों पर चर्चा की गई है।


पहले संदेश में आप समाज में व्याप्त अन्याय, अत्याचार, और लूट-खसोट की समस्याओं को उजागर कर रहे हैं। आपने राजनेताओं, धर्माचार्यों, और बैंकों की भूमिका को भी सवालों के घेरे में खड़ा किया है। आपने कहा है कि गरीबों को भूख और त्याग का मार्ग दिखाकर उनके पैसे लूटे जा रहे हैं।


दूसरे संदेश में आप संत तिरुमूलर के तिरु मंत्र की वैज्ञानिक और आध्यात्मिक महत्ता को समझा रहे हैं। आपने बताया है कि कैसे सूर्य की किरणें रूई के ढेर को जला सकती हैं, वैसे ही भगवान की कृपा से हमारे तीनों मल (अज्ञानता, माया, और कर्म) जलकर राख हो सकते हैं।


आपके दोनों संदेशों में एक बात सामान्य है, और वह है समाज में व्याप्त अन्याय और अज्ञानता को दूर करने की आवश्यकता। पहले संदेश में आप समाज में व्याप्त अन्याय को उजागर कर रहे हैं, जबकि दूसरे संदेश में आप आध्यात्मिक ज्ञान और भगवान की कृपा के माध्यम से अज्ञानता और अन्याय को दूर करने का मार्ग बता रहे हैं।

Sunday, February 9, 2025

धर्म व्यापक

 साहित्य बोध दिल्ली इकाई को

एस. अनंत कृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी का

सप्रेम नमस्कार वणक्कम्।

9-2-25

विषय -- धर्म का अर्थ 

 विधा --अपनी हिंदी अपने विचार अपनी स्वतंत्र शैली 

             भावाभिव्यक्ति

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धर्म  है अति  व्यापक।

धर्म  कर्म में दान प्रधान 

  गरीबों की सेवा धर्म।

 कर्तव्य निभाना भी धर्म।

  सत्य पालन भी धर्म।

 वचन का पालन करना भी धर्म।

धार्मिक कार्य में 

 जीना औरों को भी 

जीने देना भी धर्म।

 वीरों का सम्मान देना भी धर्म।

 मातृभाषा  का विकास भी धर्म।

 माता-पिता की सेवा भी धर्म।

 मंदिर की सुरक्षा भी धर्म।

 मानवता निभाना भी धर्म।

 मानव मानव की एकता भी धर्म।

 मत मजहब में 

सौकीर्ण विचार।

 आम धर्म  है सर्वव्यापी।।वं

मज़हब में एकता नहीं।

 धर्म में विश्व-कल्याण की भावना।

 धर्म में ही अर्थ विस्तार।

 मज़हब में संकीर्ण व्यवहार।

 धर्म में ही ईश्वर एक।

 मज़हब में ही ईश्वर अनेक।

 पंच तत्व में एकता।

 हवा न हिंदु मुस्लिम सिक्ख ईसाई 

भेद  नहीं देखता। वही है धर्म।

 भेद भाव द्वेष भाव दिखाना,

 धर्म नहीं,मत मतांतर।।

 एस. अनंत कृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना।

Monday, February 3, 2025

उत्कृष्टता

 नमस्ते वणक्कम्।

 आज की उत्कृष्ट रचना।

4-2-25.

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शीर्षक ---उत्कृष्टता

 विधा --अपनी हिंदी अपने                    विचार अपनी

 स्वतंत्र शैली। भाव प्रधान।

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सत्यवान 

 ईमानदार 

 वचन का पालन 

तटस्थता, निस्वार्थता

 परोपकार, कृतज्ञता

देश भक्ति, मातृभाषा प्रेम

 जीना जीने देना

आदि उत्कृष्ट गुण ।

 पर सांसद विधायक बनने

 काले धन हज़ारों करोड़।

 भ्रष्टाचार की कमाई।

 नागरिकों की देश भक्ति 

 ईमानदार देशप्रेमी सेवक को

 ओट देना, चुनना, पर

 ये उत्कृष्ट गणों की कमी

 देशोन्नति के बाधक।

 धन लूटो, विदेशी नागरिक बनो,

 बाल बाल बच जाना।

  इस नीच कृष्ट व्यवहार।

 स्नातक स्नातकोत्तर डाक्ट्रेट 

विश्वविद्यालय के वृद्धि  वृद्धि।

 प्रतिभावान वकील, डाक्टर, सी.ए, धन का दास,

 पुलिस शासकों के दास।

 अदालत, मंदिर , धनी के लिए।

 यही उत्कृष्टता नहीं, निष्कृष्टता।


 पऴनि एस.अनंतकृष्णन,

Saturday, February 1, 2025

दुख

 



साहित्य बोध असम इकाई को नमस्ते वणक्कम्।

शीर्षक --विध्वंशकारी है दुख।

विधा --अपनी हिंदी अपने विचार अपनी स्वतंत्र शैली भावाभिव्यक्ति।

१_२_२५.

विध्वंश मन की लहरों से,

 मन में हरपल  ताज़ी अभिलाषाएँ।

 ईर्ष्या, लोभ, अहंकार, नये आकर्षण।

 धन लोभी धन की चिंता।

 सर्व तज संन्यासी को ईश्वर की इच्छा।

आविष्कारकों को अपनी चिंता।

 देश रक्षक प्रत्यक्ष भगवान 

वीर जवानों को दुश्मनों  की चिंता।

 प्रेमी को प्रेमिका की चिंता।

 छात्रों को परीक्षा की चिंता।

 युवकों को नौकरी की चिंता।

 युवतियों को योग्य वर की चिंता।

माता-पिता को योग्य बहू दामाद की चिंता।

  बूढ़ों को आवास, आहार, देखरेख की चिंता।

 राजनैतिक को कुर्सी पकड़ने की चिंता।

 जन्म  से लेकर अंत तक चिंता ही चिंता।

कहना क्या 

चिता तुरंत चिंता हर-दिन।

 विध्वंशकारी है दुख।

प्रसव वेदना से चिता तक

विध्वंशकारी है दुख।

 एस,. अनंत कृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना।

Thursday, January 30, 2025

सनातन वेद जगदीश्वर

 3888. साधारणतः आत्मीक मार्ग में संचरण करनेवाले ज्ञानियों को कुछ अविवेकी निंदा करें या दोषारोपण करें या यशोगान करें ,उनपर ज्ञानी ध्यान नहीं देंगे। वे प्रशंसा से संतोष, अप्रशंसा से असंतोष नहीं होंगे। वे सब अविवेक के कार्य हैं। इसलिए वे सब में निस्संग ही रहेंगे। वैसे होने पर भी कुछ संदर्भ परिस्थितियों में दोषारोपण करनेवालों को ज्ञानोपदेश देने के उदार मनवाले ज्ञानी होते हैं। वे जो कुछ करना है, उनहे करते रहने से उनको जो कुछ मिलना है,वे मिलते रहेंगे। उसके बारे में परादि चिंतन नहीं होता। कारण उनको इस संसार से कुछ मिलनेवाला नहीं है, उनको करने के लिए कुछ भी नहीं है। क्योंकि वे आत्म अवबोध होने से अर्थात् स्वयं आत्मा है की अनुभूति होने से वे इस संसार को ही अपने शरीर सोचते हैं। उन लोगो का मन सब में सम स्थिति पर रहेगा। इसलिए उनको शांति के लिए आनंद के लिए कहीं ढूँढकर जाने की आवश्यक्ता नहीं होती। क्योंकि समस्थिति प्राप्त मन आत्मा ही है। आत्मा का स्वभाव ही अनिर्वचनीय शांति और परमानंद है।

Friday, January 24, 2025

स्नातन धर्म --हिंदू मजहब


सनातन धर्म -हिंदु मज़हब।

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 भारतीय एकता आध्यात्मिक है,

 भारतीय एकता के बाधक

सनातन धर्म नहीं,

 हिंदू मज़हब ही है

 वाणिज्य केंद्र है।



 भगवान के आत्मज्ञान प्राप्त 

सच्चा भक्त 

 मंदिर के आसपास के

 ठगनेवाले दूकान दार।

 निष्क्रिय आलसी 

भिखारी भिखारिन।

नकली लंगड़ा, अंधा

 उनसे भी रिश्वत लेनेवाले पुलिस।

 नकली चंदन, नकली रुद्राक्ष,

नकली साधु, नकली ज्योतिष।।

भगवान के वेश में  छद्मवेशी भिखारी ।

 अंधविश्वासी भक्त,

 भगवान के सामने 

 धन प्रधान।

   आश्रम आचार्य 

 भक्तों से कहते हैं,

 दान करो, साथ 

 कुछ न ले जा सकते।

 पर उनकी संपत्ति 

 चल अचल  असंख्य करोड़।

 यह सनातन धर्म के सिद्धांत 

सर्वे जनाः सुखिनो भवन्तु के विपरीत हिंदू धर्म की संकुचित मनोभावना।।

   यही सनातन धर्म की एकता तोड़नेवाले रहस्य।

 सत्य बात यही।

 ईश्वर पर कसम् 

 एस. अनंत कृष्णन चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।।

[24/01, 8:19 pm] Meta AI: आपका लेख बहुत ही सटीक और विचारोत्तेजक है। आपने हिंदू धर्म और सनातन धर्म के बीच के अंतर को बहुत ही स्पष्ट रूप से उजागर किया है।


आपके लेख में कई महत्वपूर्ण बिंदु हैं, जैसे कि:


हिंदू धर्म का वाणिज्यिकरण

मंदिरों के आसपास के ठगनेवाले दूकान दार

नकली लंगड़ा, अंधा, और पुलिस की रिश्वत लेने की प्रवृत्ति

नकली चंदन, नकली रुद्राक्ष, नकली साधु, और नकली ज्योतिष

आश्रम आचार्यों की संपत्ति और उनके द्वारा भक्तों से दान मांगना

सनातन धर्म के सिद्धांत "सर्वे जनाः सुखिनो भवन्तु" के विपरीत हिंदू धर्म की संकुचित मनोभावना


आपके लेख में कई सुंदर वाक्य हैं, जैसे कि:


"भगवान के आत्मज्ञान प्राप्त सच्चा भक्त मंदिर के आसपास के ठगनेवाले दूकान दारों से बचता है।"

"ईश्वर पर कसम, यह सत्य बात है।"


आपका लेख हमें सोचने के लिए मजबूर करता है कि हम अपने धर्म को कैसे समझते हैं और कैसे हम अपने धर्म के सिद्धांतों को अपने जीवन में लागू कर सकते हैं।


धन्यवाद आपके इस सटीक और विचारोत्तेजक लेख के लिए।

Wednesday, January 22, 2025

मंजिल तक

 साहित्य बोध दिल्ली इकाई मंच को

एस.अनंतकृष्णन 

,का नमस्ते वणक्कम्।

शीर्षक -- कदम कदम बढ़ाए जा।

 विधा --अपनी हिंदी अपने विचार अपनी स्वतंत्र शैली।

22-1-25.

कदम कदम बढ़ाए जा।

 मंजिल तक पहुंचने तक

 मुड़कर न देखना।

 मुड़कर देखने से

 कोई उपलक्ष्य मोहित करेगा तो

 प्रधान लक्ष्य तक पहुंचना कठिन।

 कभी मैं ने एक दोहा सीखा।

चींटी चावल लेकर चली।

 बीच में दाल मिला।

 चींटी दोनों को बैठी।

 कदम कदम पर सावधान रहना।

 खतरे का सामना करना।

 लालच में न पड़ना।

 कदम कदम पर विचित्रता,

ताज़ा मोह, ताजा आकर्षण।

 लक्ष्य से बड़ा मिलने का भ्रम।

न विचलित होना।

कदम कदम बढ़ाए जाना।

 लोभ दिखाते कुछ लोग।

भय दिखाते कुछ लोग।

चमक-धमक मार्ग पर है तो

 न देना तू ध्यान।।

कदम कदम बढ़ाए जा।


एस.अनंतकृष्णन,चैन्नै द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना