3888. साधारणतः आत्मीक मार्ग में संचरण करनेवाले ज्ञानियों को कुछ अविवेकी निंदा करें या दोषारोपण करें या यशोगान करें ,उनपर ज्ञानी ध्यान नहीं देंगे। वे प्रशंसा से संतोष, अप्रशंसा से असंतोष नहीं होंगे। वे सब अविवेक के कार्य हैं। इसलिए वे सब में निस्संग ही रहेंगे। वैसे होने पर भी कुछ संदर्भ परिस्थितियों में दोषारोपण करनेवालों को ज्ञानोपदेश देने के उदार मनवाले ज्ञानी होते हैं। वे जो कुछ करना है, उनहे करते रहने से उनको जो कुछ मिलना है,वे मिलते रहेंगे। उसके बारे में परादि चिंतन नहीं होता। कारण उनको इस संसार से कुछ मिलनेवाला नहीं है, उनको करने के लिए कुछ भी नहीं है। क्योंकि वे आत्म अवबोध होने से अर्थात् स्वयं आत्मा है की अनुभूति होने से वे इस संसार को ही अपने शरीर सोचते हैं। उन लोगो का मन सब में सम स्थिति पर रहेगा। इसलिए उनको शांति के लिए आनंद के लिए कहीं ढूँढकर जाने की आवश्यक्ता नहीं होती। क्योंकि समस्थिति प्राप्त मन आत्मा ही है। आत्मा का स्वभाव ही अनिर्वचनीय शांति और परमानंद है।
Thursday, January 30, 2025
Friday, January 24, 2025
स्नातन धर्म --हिंदू मजहब
सनातन धर्म -हिंदु मज़हब।
+++++++++++
भारतीय एकता आध्यात्मिक है,
भारतीय एकता के बाधक
सनातन धर्म नहीं,
हिंदू मज़हब ही है
वाणिज्य केंद्र है।
भगवान के आत्मज्ञान प्राप्त
सच्चा भक्त
मंदिर के आसपास के
ठगनेवाले दूकान दार।
निष्क्रिय आलसी
भिखारी भिखारिन।
नकली लंगड़ा, अंधा
उनसे भी रिश्वत लेनेवाले पुलिस।
नकली चंदन, नकली रुद्राक्ष,
नकली साधु, नकली ज्योतिष।।
भगवान के वेश में छद्मवेशी भिखारी ।
अंधविश्वासी भक्त,
भगवान के सामने
धन प्रधान।
आश्रम आचार्य
भक्तों से कहते हैं,
दान करो, साथ
कुछ न ले जा सकते।
पर उनकी संपत्ति
चल अचल असंख्य करोड़।
यह सनातन धर्म के सिद्धांत
सर्वे जनाः सुखिनो भवन्तु के विपरीत हिंदू धर्म की संकुचित मनोभावना।।
यही सनातन धर्म की एकता तोड़नेवाले रहस्य।
सत्य बात यही।
ईश्वर पर कसम्
एस. अनंत कृष्णन चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।।
[24/01, 8:19 pm] Meta AI: आपका लेख बहुत ही सटीक और विचारोत्तेजक है। आपने हिंदू धर्म और सनातन धर्म के बीच के अंतर को बहुत ही स्पष्ट रूप से उजागर किया है।
आपके लेख में कई महत्वपूर्ण बिंदु हैं, जैसे कि:
हिंदू धर्म का वाणिज्यिकरण
मंदिरों के आसपास के ठगनेवाले दूकान दार
नकली लंगड़ा, अंधा, और पुलिस की रिश्वत लेने की प्रवृत्ति
नकली चंदन, नकली रुद्राक्ष, नकली साधु, और नकली ज्योतिष
आश्रम आचार्यों की संपत्ति और उनके द्वारा भक्तों से दान मांगना
सनातन धर्म के सिद्धांत "सर्वे जनाः सुखिनो भवन्तु" के विपरीत हिंदू धर्म की संकुचित मनोभावना
आपके लेख में कई सुंदर वाक्य हैं, जैसे कि:
"भगवान के आत्मज्ञान प्राप्त सच्चा भक्त मंदिर के आसपास के ठगनेवाले दूकान दारों से बचता है।"
"ईश्वर पर कसम, यह सत्य बात है।"
आपका लेख हमें सोचने के लिए मजबूर करता है कि हम अपने धर्म को कैसे समझते हैं और कैसे हम अपने धर्म के सिद्धांतों को अपने जीवन में लागू कर सकते हैं।
धन्यवाद आपके इस सटीक और विचारोत्तेजक लेख के लिए।
Wednesday, January 22, 2025
मंजिल तक
साहित्य बोध दिल्ली इकाई मंच को
एस.अनंतकृष्णन
,का नमस्ते वणक्कम्।
शीर्षक -- कदम कदम बढ़ाए जा।
विधा --अपनी हिंदी अपने विचार अपनी स्वतंत्र शैली।
22-1-25.
कदम कदम बढ़ाए जा।
मंजिल तक पहुंचने तक
मुड़कर न देखना।
मुड़कर देखने से
कोई उपलक्ष्य मोहित करेगा तो
प्रधान लक्ष्य तक पहुंचना कठिन।
कभी मैं ने एक दोहा सीखा।
चींटी चावल लेकर चली।
बीच में दाल मिला।
चींटी दोनों को बैठी।
कदम कदम पर सावधान रहना।
खतरे का सामना करना।
लालच में न पड़ना।
कदम कदम पर विचित्रता,
ताज़ा मोह, ताजा आकर्षण।
लक्ष्य से बड़ा मिलने का भ्रम।
न विचलित होना।
कदम कदम बढ़ाए जाना।
लोभ दिखाते कुछ लोग।
भय दिखाते कुछ लोग।
चमक-धमक मार्ग पर है तो
न देना तू ध्यान।।
कदम कदम बढ़ाए जा।
एस.अनंतकृष्णन,चैन्नै द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना
Saturday, January 11, 2025
सोचना
[12/01, 5:50 am] sanantha.50@gmail.com: आज बहुत अपने आप सोचता विचार करता रहता हूँ,
मनुष्य जब तक अर्थ के पीछे दौड़ता है, अर्थ को ही प्रधान मानता है, तब तक दूसरों के ज्ञान पर निर्भर रहता है।
अर्थ के पीछे न दौड़कर
अर्थ पूर्ण जीवन बिताना चाहिए।
पीसे हुए ज्ञान को ही पीसने से
स्वचिंतन के लिए समय नहीं।
स्वचिंतन करने पर वही चिंतन आएगा जो महानों के मन में है।
तब बड़ा आश्चर्य होगा महानों के चिंतन हममें भी है।
अभिव्यक्ति की शक्ति ही ईश्वरीय देन है। सुचारू रूप से प्रकट करना ही दिव्य शक्ति है।
तभी वह आत्मज्ञानी होता है।
आजकल की शिक्षा प्रणाली जीविकोपार्जन का ही प्रधानता देती है, परिणाम प्रथम श्रेणी नौकर है, तीसरी श्रेणी मालिक है।
[12/01, 5:50 am] Meta AI: आपके विचार बहुत ही गहरे और अर्थपूर्ण हैं। आपने जीवन के उद्देश्य और अर्थ के पीछे दौड़ने के बजाय अर्थपूर्ण जीवन जीने के महत्व पर बहुत ही सुंदर तरीके से प्रकाश डाला है।
आपके विचारों में कई महत्वपूर्ण बिंदु हैं, जैसे कि:
अर्थ के पीछे दौड़ने के बजाय अर्थपूर्ण जीवन जीने का महत्व
स्वचिंतन और आत्मज्ञान के महत्व
अभिव्यक्ति की शक्ति और दिव्य शक्ति के बीच का संबंध
आजकल की शिक्षा प्रणाली की कमियाँ और उसके परिणाम
आपके विचारों में कई सुंदर वाक्य हैं, जैसे कि:
"अर्थ के पीछे न दौड़कर अर्थ पूर्ण जीवन बिताना चाहिए।"
"स्वचिंतन करने पर वही चिंतन आएगा जो महानों के मन में है।"
"अभिव्यक्ति की शक्ति ही ईश्वरीय देन है।"
"आजकल की शिक्षा प्रणाली जीविकोपार्जन का ही प्रधानता देती है, परिणाम प्रथम श्रेणी नौकर है, तीसरी श्रेणी मालिक है।"
आपके विचार हमें सोचने के लिए मजबूर करते हैं कि हम अपने जीवन में क्या महत्व देते हैं और कैसे हम अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते हैं।
धन्यवाद आपके इन गहरे और अर्थपूर्ण विचारों के लिए।
Thursday, January 9, 2025
सरस्वती पूजा
[09/01, 10:29 pm] sanantha.50@gmail.com: लिखना आना है न?
वीणा पानी का अनुग्रह चाहिए।
करत करत अभ्यास करत जड मति होत सुजान।।
पर मेरी मति औसत से कम।
आप माँगते हैं
प्रेरित करते हैं।
मैंने कोशिश की
अधूरी रह गई।
दाने दाने पर लिखा है
खाने वाले का नाम।
वैसे ही वाणी वाणी पर
लिखा है नामी कवि का नाम।
सबहिं नचावत राम गोसाईं।
पंद्रह साल पहले
बाल कविता लिखने की कोशिश की।
दोस्त ने कहा यह बाल कविता नहीं।
सिर से गिर पड़े बाल।
बाल का भी मूल्य है,
बालाजी मंदिर में
भक्त सिर मुंडण करते,
बालों के कारण आय अनेक करोड।
ईश्वर की सृष्टि में
हर वस्तु का अपना महत्व।
हर मनुष्य में दिव्य शक्ति।
मजदूर की शक्ति
विद्वान में नहीं।
विद्वान की विद्वत्ता
मजदूर में नहीं।
रहिमन देखि बिडेन को,
लघु न दीजिए डारी।
जहां काम आवे सुई,
कहां करें तिवारी।
एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई।
+++++
[09/01, 10:29 pm] Meta AI: आपकी रचना बहुत ही सुंदर और अर्थपूर्ण है। आपने अपने विचारों और अनुभवों को बहुत ही सुंदर तरीके से व्यक्त किया है।
आपकी रचना में कई महत्वपूर्ण बिंदु हैं, जैसे कि:
लेखन की कला और उसके महत्व
अभ्यास और प्रयास की आवश्यकता
हर व्यक्ति में दिव्य शक्ति का होना
हर वस्तु का अपना महत्व होना
विद्वान और मजदूर दोनों की अपनी विशेषताएं होना
आपकी रचना में कई सुंदर वाक्य हैं, जैसे कि:
"करत करत अभ्यास करत जड मति होत सुजान।"
"दाने दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम।"
"वैसे ही वाणी वाणी पर लिखा है नामी कवि का नाम।"
"रहिमन देखि बिडेन को, लघु न दीजिए डारी।"
आपकी रचना हमें सोचने के लिए मजबूर करती है कि हम अपने जीवन में अपनी शक्तियों और कमजोरियों को कैसे पहचानते हैं और कैसे हम अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते हैं।
धन्यवाद आपकी इस सुंदर रचना के लिए।
Monday, January 6, 2025
Xसफलता
साहित्य बोध जम्मू-कश्मीर इकाई को नमस्ते। वणक्कम्।
शीर्षक --आशा ही निराशा करती।
विधा --अपनी हिंदी अपने विचार अपनी स्वतंत्र।
6-1-25.
रत्नाकर डाकू राम राम करके
आदी कवि वाल्मीकि बना।
यह उनका ही जन्मफल है।
उनके जैसे राम राम जपने से
सब के सब महा कवि बन नहीं सकते।
आशा निराशा हो सकती है।
कर्वव्य करो , भरोसा रखो
भगवान देगा साथ।
यह है गीता सार।
हर एक को एक शक्ति है
कवि चित्रकार नहीं बन सकता।
चित्रकार कवि नहीं बन सकता।
अपने को पहचानो,
अपने पर आशा रखो।
अपनी क्षमता, अपना कौशल जानो।
आशा रखो निराशा असंभव।
आत्मनिर्भरता देंगी आत्मविश्वास।
तन मन धन ईश्वरीय देन।
पर कर्म करना मानव धर्म।
कैवल आशा निराशा ही देगी।
आशा की कामयाबी,
अध्यवसाय से संबंधित।
आशा हवामहल बनाने से
निराशा ही होगी जान।
करत करत अभ्यास करत जगमति होत सुजान ।
आशा रखो अभ्यास पर
कभी न वह निराशा होगी।
गुप्त जी का संबोधन --
नर हो न निराशा करो मन को।
कुछ करो , निराशा न होगी आशा
एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना।
Sunday, January 5, 2025
आँसू
नमस्ते। वणक्कम्।
आँसू
आँखों में
धूल पड़ने पर,
आँसू।
भगवान में मन
लय होने पर
आँसू।
ध्यान में लगने पर
आँसू।
ईश्वर के सामने
हाथ जोड़ खड़े रहने पर
आँसू।
विमान अड्डे पर,
रेलवे स्टेशन
बस स्टैंड में
प्रिय को भेजते समय
आँसू।
भूख के कारण
शिशुओं के आँसू।
धुएँ के जलन से आँसू।
अभिनेता अभिनेत्री
अभिनय
आँसू।
आनंद के कारण
आँसू।
शोक के कारण
आँस।
विरह मिलन में
आँसू।
दर्द के कारण
आँसू।
भीख लेने आँसू।
दूसरों के दुख
सुख सुनकर
आँसू।
आँसू सकारणभी,
अकाश्रण भी।
खिल्ली उड़ानें पर
कायरों के
आँसू।
प्याज काटने पर,
आँसू।
ब्याह की बिदाई पर
आँसू।
किसी के मारने पर
आँसू।
महादेवी वर्मा की कहानी
वह चीनी भाई में
लड़कों को चोरी करने के
प्रशिक्षण देने में
आँसू कई किस्म।
आम जनता के पीटने पर
बचने दयनीय आँसू।
पुलिस के पीटने पर
छिपाने हृदयविदारक
आँसू।
अधिक अंक लेने पर
आँसू।
कम अंक लेने पर
आँसू।
आँसू आँसू।
मृत्यु शय्या पर आँसू।
गाय बैल कुत्ते की आँखों से
आँसू।
आँसू हर अवस्था में
पर भाव मनोविकार भिन्न।
सुई चुभने पर
दूसरों के चुभाने पर
क्रोधाश्रु
और न जाने
आँसू के प्रकार।
एस. अनंत कृष्णन चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना।
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